PATNA : पटना में बिहार विधानमंडल परिसर में 85 वें अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारी सम्मेलन (एआईपीओसी) शुरुआत हो गयी। इस बार बिहार को दो दिवसीय सम्मेलन की मेजबानी मिली है। 43 वर्षों बाद पटना में यह आयोजन होने जा रहा है। जिसका उद्घाटन लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने किया। इस मौके पर लोक सभा अध्यक्ष ने विधानमंडलों की बैठकों की घटती संख्या और उनकी गरिमा और मर्यादा में कमी की प्रवृत्ति पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि विधानमंडल चर्चा- संवाद के मंच हैं और जनप्रतिनिधियों से अपेक्षा की जाती है कि वे लोगों की आशाओं और आकांक्षाओं को पूरा करें। लोक सभा अध्यक्ष ने आगाह किया कि बैठकों की संख्या कम होने के कारण विधानमंडल अपने संवैधानिक दायित्वों को पूरा करने में विफल हो रहे हैं। उन्होंने विधि निर्माताओं से आग्रह किया कि वे महत्वपूर्ण राष्ट्रीय मुद्दों के समाधान के लिए कुशलता से कार्य करते हुए सदन में समय का उपयोग प्रभावी ढंग से करने को प्राथमिकता दें और सुनिश्चित करें कि जनता की आवाज पर्याप्त रूप से उठाई जाए । उन्होंने यह भी कहा कि हमारे सदनों की गरिमा और प्रतिष्ठा को बढ़ाना अति आवश्यक है। उन्होंने सुझाव दिया कि सभी दलों को सदन में सदस्यों के आचरण के संबंध में अपनी आचार संहिता बनानी चाहिए ताकि लोकतांत्रिक मूल्यों का सम्मान हो। बिरला ने कहा कि जनप्रतिनिधियों को राजनीतिक विचारधारा और संबद्धता से ऊपर उठकर संवैधानिक मर्यादा का पालन करना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि जनप्रतिनिधियों को अपनी विचारधारा और दृष्टिकोण व्यक्त करते समय स्वस्थ संसदीय परंपराओं का पालन करना चाहिए। इस बात पर जोर देते हुए कि पीठासीन अधिकारियों को संविधान की भावना और उसके मूल्यों के अनुरूप सदन चलाना चाहिए। बिरला ने कहा कि पीठासीन अधिकारियों को सदनों में अच्छी परंपराएं और परिपाटियाँ स्थापित करनी चाहिए और लोकतांत्रिक संस्थाओं को मजबूत बनाना चाहिए। लोकतांत्रिक संस्थाओं को मजबूत करते हुए पीठासीन अधिकारियों को विधानमंडलों को लोगों के प्रति अधिक जवाबदेह बनाना चाहिए और उनके माध्यम से लोगों की अपेक्षाओं और आकांक्षाओं को पूरा करना चाहिए। उन्होंने आग्रह किया कि एआईपीओसी की तरह राज्य विधान सभाओं को भी अपने स्थानीय निकायों के लिए प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण के मंच तैयार करने चाहिए।
विधानमंडलों को अधिक प्रभावी और कुशल बनाने पर जोर देते हुए बिरला ने पीठासीन अधिकारियों से विधानमंडलों के कामकाज में प्रौद्योगिकी, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) और सोशल मीडिया के उपयोग को बढ़ावा देने का आग्रह किया। इस बात पर ज़ोर देते हुए कि संसद और राज्य विधानमंडलों को जनता के लिए अधिक सुलभ बनाना समय की मांग है, उन्होंने सुझाव दिया कि तकनीकी नवाचारों के माध्यम से विधायी कार्यों की जानकारी आम जनता को उपलब्ध कराई जा सकती है। यह टिप्पणी करते हुए कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) आधारित साधनों से संसदीय और विधायी कार्यवाही में पारदर्शिता और प्रभावशीलता बढ़ाई जा सकती है। बिरला ने कहा कि भारत की संसद ने इस प्रक्रिया की शुरुआत पहले से ही कर दी है जिसके सकारात्मक परिणाम मिल रहे हैं। इस संदर्भ में बिरला ने बताया कि 2025 के अंत तक ‘एक राष्ट्र, एक विधायी मंच’ का कार्य पूरा हो जाएगा। बिरला ने इस बात पर बल दिया कि सहमति और असहमति के बीच सदनों में अनुकूल वातावरण में काम होना चाहिए ताकि कार्योत्पादकता अधिक हो। उन्होंने बेहतर जवाबदेही और पारदर्शिता के लिए सदनों और समितियों की दक्षता में सुधार करने पर भी जोर दिया। अध्यक्ष ने कहा कि हमारी संसदीय समितियों की कार्यकुशलता बढ़ाने के लिए सभी विधानमंडलों की समितियों के बीच संवाद होना चाहिए तथा समितियों का कार्य वास्तविक तथ्यों पर आधारित होना चाहिए ताकि जनता के धन का उपयोग बेहतर ढंग से हो तथा अधिक से अधिक लोगों का कल्याण हो। राज्य विधान सभाओं की स्वायत्तता को संघीय ढांचे का आधार बताते हुए श्री बिरला ने कहा कि संविधान की सातवीं अनुसूची में उल्लिखित यह शक्ति तभी सार्थक होगी जब राज्य विधानमंडल निष्पक्षता और सत्यनिष्ठा के साथ अपना कार्य करें। अध्यक्ष ने कहा कि राज्यों के विधायी निकायों को अपनी शक्तियों का उपयोग इस प्रकार की नीतियां बनाने में करना चाहिए जो स्थानीय आवश्यकताओं और लोगों की अपेक्षाओं के अनुरूप हों तथा देश की सर्वांगीण प्रगति में भी सहायक हों। भारत को मजबूत बनाने के लिए सामूहिक प्रयासों का आह्वान करते हुए बिरला ने कहा कि राष्ट्रीय हित के मुद्दों पर केंद्र और राज्यों दोनों को ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ की भावना के साथ मिलकर काम करना चाहिए। इस संबंध में विधानमंडलों की भूमिका का उल्लेख करते हुए बिरला ने इस बात पर ज़ोर दिया कि राष्ट्र को विकसित और आत्मनिर्भर बनाने में विधानमंडलों को सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए।
इस अवसर पर बोलते हुए राज्य सभा के उप सभापति हरिवंश ने बिहार के समृद्ध इतिहास को याद किया। उन्होंने कहा कि यह इतिहास बिहार के लोगों के स्वतंत्रता संग्राम और संविधान निर्माण में योगदान में भी स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। उन्होंने आगे कहा कि देश अपनी विकास यात्रा के एक महत्वपूर्ण चरण पर है और हमारे विधायी संस्थानों को गतिशील होना होगा ताकि संवैधानिक मूल्यों को भविष्य के लिए प्रासंगिक रखा जा सके। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि भारतीय संविधान समय के साथ लचीला हुआ है और समय की कसौटी पर खरा उतरा है। उन्होंने जोर देकर कहा कि आने वाले वर्षों में देश के विधायी संस्थानों को देश की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए भविष्य की ओर देखना होगा।
सत्र को संबोधित करते हुए, बिहार विधान परिषद् के सभापति अवधेश नारायण सिंह ने सभी प्रतिनिधियों का बिहार में स्वागत किया और कहा कि बिहार चार दशकों बाद AIPOC का आयोजन करके गौरवान्वित है। उन्होंने उल्लेख किया कि लोक सभा अध्यक्ष ने लोकतंत्र को सशक्त करते हुए और लोकतांत्रिक संस्थाओं के बीच संवाद को बढ़ावा देने के लिए निरंतर कार्य किया है। उन्होंने कहा कि बिरला की अध्यक्षता में AIPOC सभी पीठासीन अधिकारियों को उनके कर्तव्यों का पालन करने में बहुमूल्य मार्गदर्शन प्रदान कर रहा है। उन्होंने बिहार के गौरवमयी इतिहास और राष्ट्र निर्माण में बिहार के योगदान का भी जिक्र किया। सिंह ने आशा व्यक्त की कि दो दिवसीय सम्मेलन के दौरान होने वाली बहस और चर्चाएं पीठासीन अधिकारियों के साथ सम्पूर्ण राज्य विधायिका के कार्यों में दक्षता लाने में सहायक होंगी। बिहार विधान सभा के अध्यक्ष नंद किशोर यादव ने स्वागत भाषण दिया। उन्होंने कहा कि बिहार को भारत की सांस्कृतिक,ऐतिहासिक और बौद्धिक धरोहर का केंद्र माना जाता है। बिहार का सीतामढ़ी माँ सीता का जन्मस्थान है, जो एक धार्मिक, ऐतिहासिक और आधुनिक पर्यटन स्थल है। यादव ने कहा कि बिहार भगवान बुद्ध, महावीर और गुरु गोबिंद सिंह जी की जन्मभूमि भी है। बिहार वही भूमि है जहाँ चाणक्य ने राजनीति के सिद्धांतों का प्रतिपादन किया और सम्राट अशोक ने शासन में शिष्टता का संदेश दिया। यह जिक्र करते हुए कि AIPOC एक प्रभावी मंच है जो लोकतंत्र को मजबूत करने और जनप्रतिनिधियों के बीच संवाद और समन्वय को बढ़ावा देने में सहायक है। यादव ने कहा कि विधायी संस्थानों की लोकतांत्रिक मूल्यों को बढ़ावा देने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है। उन्होंने कहा कि AIPOC केवल विचारों के आदान-प्रदान का मंच नहीं है, बल्कि यह अनुभव साझा करने और विधायिका को अधिक प्रभावी बनाने के उपायों पर चर्चा करने का एक अवसर भी है।
वंदना की रिपोर्ट