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Holi 2025: पहली बार यहां हुआ था होलिका दहन? सतयुग से है संबंध, इस जगह जलकर खाक हुई थी होलिका

Holi 2025: श्रीमद् भागवत और स्कंद पुराण के अनुसार बिहार में पहला होलिका दहन हुआ था।यहां भक्त प्रहलाद के आह्वान पर भगवान नरसिंह प्रकट हुए और हिरण्यकश्यपु का वध किया।

 Holi 2025:
जहां पहली बार हुआ था होलिका दहन- फोटो : Hiresh Kumar

Holi 2025: होलिका दहन की पहली घटना बिहार के पूर्णिया जिले के सिकलीगढ़ में हुई थी। यह स्थान भक्त प्रहलाद के आह्वान पर भगवान नरसिंह के अवतार से जुड़ा हुआ है, जहां असुर राजा हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को प्रहलाद को अग्नि में जलाने के लिए कहा था। इस घटना का उल्लेख श्रीमद्भागवत और स्कंद पुराण में मिलता है।

श्रीमद् भागवत और स्कंद पुराण के अनुसार हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रहलाद को भगवान नारायण की भक्ति से दूर करने का प्रयास किया, लेकिन प्रहलाद ने अपने पिता की बात नहीं मानी। इससे क्रोधित होकर हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को आदेश दिया कि वह प्रहलाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाएं, क्योंकि होलिका को वरदान प्राप्त था कि आग उसे नहीं जला सकती। जब होलिका और प्रहलाद अग्नि में बैठे, तो हवा के कारण वरदान उलट गया और होलिका जल गई, जबकि प्रहलाद सुरक्षित बच गए। इस घटना की स्मृति में हर साल होलिका दहन किया जाता है।

सिकलीगढ़ वही स्थान है जहां यह ऐतिहासिक घटना घटी थी। यहां आज भी उस खंभे का अवशेष मौजूद है, जिससे भगवान नरसिंह प्रकट हुए थे।श्रीमद भागवत और स्कंद पुराण में इस कथा का उल्लेख मिलता है। श्रीमद भागवत में भगवान के अवतार के प्रसंग में वर्णित है कि असुर राजा हिरण्यकश्यपु ने अपने पुत्र भक्त प्रहलाद को भगवान नारायण से शत्रुता रखने के लिए समझाने का प्रयास किया, लेकिन प्रहलाद ने इस बात को नहीं माना। हिरण्यकश्यपु, जो अत्यंत परेशान हो गया, ने अपनी बहन होलिका को अपनी गोद में लेकर चिता में आग लगाई। चूंकि होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि आग उसे नहीं जला सकती, इसलिए सभी को लगा कि प्रहलाद का अंत निश्चित है, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। चिता की आग में होलिका स्वयं जल गई और भक्त प्रहलाद सुरक्षित रहे। तभी से हर वर्ष बुराई पर अच्छाई की विजय के प्रतीक के रूप में होलिका दहन की परंपरा शुरू हुई। वह स्थान जहां होलिका की चिता जली थी, बिहार के पूर्णिया जिले के बनमनखी प्रखंड के सिकलीगढ़ में स्थित है। यहीं पर प्रहलाद के आह्वान पर भगवान नारायण नरसिंह के रूप में प्रकट हुए। 

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