महाष्टमी तिथि, देवी उपासकों के लिए विशेष महत्व रखती है, क्योंकि इसी तिथि को प्राचीन काल में भगवती भद्रकाली का प्रकट होना बताया गया है। नारदपुराण, भविष्यपुराण, देवीभागवतपुराण और अन्य शास्त्रों में महाष्टमी की विशेष महिमा का वर्णन किया गया है। इस तिथि को किए गए देवी पूजन से साधक को अद्वितीय शक्ति, समृद्धि, और शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है। महाष्टमी 2024 में 11 अक्टूबर, शुक्रवार को पड़ रही है, जो आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी है।
देवी भद्रकाली का प्रकट होना
नारदपुराण के अनुसार, प्राचीन काल में दक्ष के यज्ञ का विध्वंस करने वाली महाभयानक भगवती भद्रकाली करोड़ों योगिनियों सहित इसी अष्टमी तिथि को प्रकट हुई थीं। यह तिथि देवताओं, दानवों, गन्धर्वों, नागों, यक्षों और नर-किन्नरों के लिए भी विशेष पूजनीय मानी गई है। आश्विन शुक्ल अष्टमी को देवी भद्रकाली का पूजन करने से सभी शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है। साथ ही, यह तिथि पुण्य, पवित्रता, धर्म और सुख का प्रदान करने वाली मानी गई है।
महाष्टमी व्रत और पूजा का विधान
नारदपुराण में महाष्टमी के महत्व को विशेष रूप से उल्लेखित किया गया है। इस दिन दुर्गा माता का पूजन सभी प्रकार से विधिपूर्वक किया जाता है। जो व्यक्ति इस दिन उपवास या एकभुक्त व्रत करता है, उसे सर्वत्र वैभव और शांति की प्राप्ति होती है। साथ ही, वह देवताओं के समान चिरकाल तक आनंदमग्न रहता है। यह तिथि विशेष रूप से वैभव और मोक्ष प्रदान करने वाली मानी जाती है। भविष्यपुराण के अनुसार, देवता, दानव, राक्षस, गन्धर्व, नाग, यक्ष, किन्नर, और अन्य सभी अष्टमी और नवमी को भगवती श्रीअम्बिका की पूजा करते हैं। इस दिन चामुंडा और मुंडमालिनी देवी का पूजन अनिवार्य बताया गया है, जिससे सभी शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है और साधक को जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
देवी भागवत पुराण में महाष्टमी की महिमा
देवी भागवत के पञ्चम स्कन्ध में भी अष्टमी तिथि का उल्लेख किया गया है। इस तिथि को देवी का पूजन करने से साधक को अद्वितीय फल प्राप्त होते हैं। निर्धन व्यक्ति धन प्राप्त करता है, रोगी रोगों से मुक्ति पाता है, पुत्रहीन व्यक्ति को पुत्र की प्राप्ति होती है और राज्यच्युत राजा को फिर से राज्य मिल जाता है। शत्रुओं से पीड़ित व्यक्ति शत्रुओं का नाश करता है और विद्यार्थी जो इंद्रियों को वश में करके इस पूजन को करता है, उसे उत्तम विद्या की प्राप्ति होती है।
महागौरी और भद्रकाली की पूजा
नवरात्रि के अष्टमी के दिन महागौरी की पूजा का विशेष विधान है, जिसे सभी जानते हैं। इसके अलावा, अग्निपुराण में भी इस दिन भद्रकाली की पूजा का विधान वर्णित है। स्कन्दपुराण में वत्सेश्वरी देवी की पूजा का विधान बताया गया है, जो आश्विन शुक्ल अष्टमी पर की जाती है। गरुड़पुराण के अनुसार, अष्टमी तिथि को दुर्गा और नवमी तिथि को मातृका तथा दिशाओं की पूजा करने से साधक को अर्थ प्राप्त होता है। महाष्टमी का दिन देवी भद्रकाली और अन्य देवियों के पूजन का विशेष समय होता है। इस दिन उपवास और विधिपूर्वक पूजन करने से साधक को सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है और वह जीवन में सफलता और समृद्धि की प्राप्ति करता है। यह तिथि शक्ति, साहस और विजय का प्रतीक मानी जाती है और जो इस दिन देवी का सच्चे मन से पूजन करता है, उसे चिरकाल तक देवताओं के समान आनंद की प्राप्ति होती है।