Bihar Crime: खाकी की गुंडागर्दी! रुपए छीन कर पर्यावरण संरक्षक को बीच सड़क पर पीटने का आरोप, इंसाफ के लिए दर दर भटक रहा पीड़ित

Bihar Crime: पुलिस की बर्बरता की एक चौंकाने वाली घटना सामने आई है, जिसने आमजन के बीच पुलिस व्यवस्था पर भरोसे को गंभीर रूप से झकझोर दिया है।

Khaki s hooliganism
खाकी की गुंडागर्दी! - फोटो : reporter

Bihar Crime: बिहार के गया जिले में सिविल लाइंस थाना क्षेत्र से पुलिस की बर्बरता की एक चौंकाने वाली घटना सामने आई है, जिसने आमजन के बीच पुलिस व्यवस्था पर भरोसे को गंभीर रूप से झकझोर दिया है। पर्यावरण संरक्षण की दिशा में अब तक 17 हजार से अधिक पौधे लगाने वाले अभय कुमार, जिनकी पहचान एक समाजसेवी, ज़ुम्बा ट्रेनर और मैरिज ब्यूरो संचालक के रूप में होती है, को सरेआम सड़क पर पुलिस द्वारा बेरहमी से पीटे जाने और लूटे जाने का आरोप है।

दिनांक 24 जून की रात करीब 8 बजे, डीआईजी ऑफिस के पास अभय को हेलमेट नहीं पहनने के कारण पुलिस ने रोका। उसने जब व्हाट्सएप पर बाइक के सभी वैध दस्तावेज दिखाए, तब भी दो वर्दीधारी पुलिस कर्मियों ने 2000 रुपये की रिश्वत मांगनी शुरू कर दी। अभय ने जब रिश्वत देने से इनकार किया और कहा कि वह 500 रुपये का चालान भुगतने को तैयार है, तो पुलिस वाले बौखला गए और उसे पीटना शुरू कर दिया।टी-शर्ट फाड़ी गई,चंदन की माला तोड़ी गई,लात-घूंसों से पीटा गया,कान में गंभीर चोट आई,पीछे हाथ मोड़कर अपराधी की तरह जीप में डालने की कोशिश की गई।

घटना के दौरान थाने से और पुलिस कर्मियों को बुलाया गया, जिन्होंने बीच सड़क पर अभय को घेर कर पीटा। पीड़ित का आरोप है कि जेब में रखे 25,000 रुपये भी छीन लिए गए। जब अभय ने रकम की वापसी की मांग की, तो पुलिस वालों ने पल्‍ला झाड़ लिया।

अभय ने इस पूरी घटना का वीडियो अपने मोबाइल में रिकॉर्ड किया है और दावा किया है कि मौके पर लगे CCTV फुटेज भी सच्चाई उजागर कर सकते हैं। लेकिन जब वह अगले दिन सिविल लाइंस थाना गया, तो आवेदन तक नहीं लिया गया। इंस्पेक्टर शमीम अहमद से मिलने पर उन्हें समझाया गया कि "मैनेज" कर लो, 50 हजार रुपये ऑफर किए गए, लेकिन अभय ने इंकार कर दिया।

इंस्पेक्टर शमीम अहमद ने फोन पर बातचीत में घटना की जानकारी से साफ इनकार कर दिया। लेकिन पीड़ित अभय का कहना है कि वह दो बार खुद शमीम अहमद से मिल चुका है, और वे मामले को शांत कराने का दबाव बना रहे हैं।

सबसे बड़ा सवाल है कि किस कानून के तहत एक सिपाही बाइक के कागज चेक कर रहा था?हेलमेट चालान का अधिकार किसी सक्षम अधिकारी को होता है, तो फिर ये अधिकार किसे दिया गया?जब दस्तावेज वैध थे, तो पिटाई और रिश्वत क्यों?क्या पुलिस अब लूट और मारपीट की ‘ठेकेदार’ बन चुकी है?

यह घटना सिर्फ एक युवक की नहीं है, यह पुलिसिया मनमानी और सत्ता के संरक्षण में पल रही बर्बरता का आईना है। जब पेड़ लगाने वाला, समाज का भला चाहने वाला व्यक्ति खुद को सुरक्षित नहीं समझता, तो सोचिए आम नागरिक कितने असुरक्षित हैं।

अब देखना यह है कि बिहार सरकार और पुलिस प्रशासन इस पूरे मामले को दबाते हैं या पीड़ित को न्याय दिलाने के लिए जिम्मेदार कार्रवाई करते हैं। अगर नहीं, तो अदालत की शरण ही आखिरी रास्ता बचेगा—जैसा कि अभय ने भी ठाना है।

रिपोर्ट- मनोज कुमार