Religion: मैं समय हूं: ईश्वर की दिव्य देन – मुझे पहचानो, संजोओ और साधो

Religion: मैं समय हूं... मैं चेतावनी भी हूं, और वरदान भी,तुम्हारी हर सांस की कीमत मेरे पास दर्ज है,आंख उठाकर मेरी तरफ देखो...कौशलेंद्र प्रियदर्शी की कहानी मे पढ़े आत्मा के उस दरबार के बारे में जहां सबका न्याय होता है।

कौशलेंद्र प्रियदर्शी
मैं समय हूं- फोटो : meta

Religion: मैं समय हूं, मैं अमूल्य हूं, मैं अनमोल हूं, फिर भी मैं तुम्हारे लिए निशुल्क हूं, बिना कुछ खर्च किए उपलब्ध हूं। ईश्वर ने मुझे तुम्हारे पास एक खास उद्देश्य से भेजा है। इसलिए मुझे अच्छे से जानो। मेरा सही से इस्तेमाल करो। क्योंकि एक बार अगर मैं गुजर जाऊंगा तो तुम किसी भी मूल्य पर मुझे वापस नहीं ला पाओगे। अंततः तुम्हे आना मेरे हीं पास है। तुम्हारे हर कर्मों का हिसाब किताब एकदम न्यायपूर्वक होगा। सावधान रहो अभी भी.... संसार में ज्यादातर लोग मुझे बर्बाद कर रहे हैं और करते भी रहेंगे चुकी उनकी आंख पर ऐसा पर्दा चढ़ा है को वो मानने के लिए तैयार नहीं। उन्हें सबक मिलता भी है तो लेने को तैयार नहीं रहते। गलती से सीखने को तैयार नहीं रहते।वहीं कुछ लोग मेरे एक-एक अंश का सही इस्तेमाल कर रहे हैं। सधे हुए ढंग से मेरा सही से उपयोग कर रहे। मेरा बेहतर इस्तेमाल कर लो।  इस लोक को भी और पर लोक को भी सुधार लो। मैं सबके लिए एक समान हूं मित्र.... फिर चाहे वह अमीर हो या फिर गरीब हो। बच्चा हो जवान हो या वृद्ध हो। मैं तुम्हारा समय हूं मुझे क्रोध,काम,अहंकार,वासना द्वेष के चक्कर में ऐसे ही बर्बाद मत करो। यह संसार है इसका छूटना तय है। वक्त का आना भी तय है। मुलाकात हर कीमत पर होगी....और बात भी होगी...एक-एक पल का हिसाब करेंगे..तुमने किया क्या? जवाब देना?...भूलना नहीं....तुम पर हमारी पल-पल नजर है...थोड़ा मेरी तरफ आंख उठाकर देखो...मेरे साथ न्याय की बात छोड़ दो...तुम अपने साथ तो न्याय करो

(मैं समय हूं" एक गहन और चेतनापूर्ण आत्ममंथन है, जो समय के ईश्वरीय स्वरूप, उसके महत्व और जीवन में उसकी भूमिका को उजागर करता है। समय स्वयं को पहचानते हुए कहता है कि वह अमूल्य और अनमोल है, परंतु फिर भी मनुष्य को निशुल्क और सहज रूप में प्राप्त है। यह मानव जीवन की सबसे बड़ी पूंजी है, जिसे धन से नहीं खरीदा जा सकता। ईश्वर ने समय को मानव जीवन में एक विशिष्ट उद्देश्य के साथ भेजा है — ताकि मनुष्य उसका सही उपयोग करके अपना और संसार का कल्याण कर सके। जो समय एक बार बीत गया, वह कभी लौट कर नहीं आता, चाहे कोई कितनी भी कीमत चुकाए। जीवन का अंतिम पड़ाव समय के ही पास है — वही हर कर्म का साक्षी है, वही अंततः न्याय करेगा। इसीलिए समय की उपेक्षा नहीं, उसकी आराधना करनी चाहिए।

आज की वास्तविकता यह है कि अधिकांश लोग समय को बर्बाद कर रहे हैं, क्योंकि उनके मन और आँखों पर अज्ञान, मोह और अंधविश्वास का पर्दा पड़ा है। वे गलतियों से भी नहीं सीखते, चेतावनियों को अनदेखा करते हैं। वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो समय के हर क्षण का सार्थक उपयोग करते हैं — वे ही जीवन की सच्ची राह पर हैं।

समय सबके लिए समान रूप से उपलब्ध है — न इसमें किसी अमीर-गरीब का भेद है, न उम्र का कोई बंधन। यह सभी को एक ही तरह से मिलता है। परंतु इसका उपयोग कौन कैसे करता है, यही असल परीक्षा है।

समय अंत में आग्रह करता है कि क्रोध, काम, अहंकार, वासना, द्वेष जैसी नकारात्मक प्रवृत्तियों में इसे व्यर्थ न गंवाया जाए। संसार नश्वर है, और समय का अंत आना निश्चित है। हर व्यक्ति से मुलाकात होगी, और हर क्षण का हिसाब लिया जाएगा।

समय कहता है — "मेरे साथ न्याय की बात मत करो, तुम अपने साथ न्याय करो। मुझे पहचानो, मेरी ओर देखो, क्योंकि मैं ही वह शक्ति हूं जो तुम्हें इस लोक से परलोक तक ले जाएगी।आत्मनिरीक्षण करो कि क्या हम वास्तव में समय का सही उपयोग कर रहे हैं?)

कौशलेंद्र प्रियदर्शी की कलम से....