Sri Ramcharitmanas: हनुमानजी को लंका के समुद्र तक पहुंचाने वाली तपस्विनी स्वयंप्रभा थीं।स्वयंप्रभा भगवान विश्वकर्मा की पुत्री हेमा की सखी थीं। हेमा ने अपनी भक्ति और तप के बल पर भगवान शिव को प्रसन्न किया था, जिसके फलस्वरूप उन्हें दिव्य लोक की प्राप्ति का वरदान मिला। जब हेमा अपनी गुफा से दिव्य लोक में जा रही थीं, तब उन्होंने अपनी सखी स्वयंप्रभा को भी तप करने का उपदेश दिया। उन्होंने कहा कि स्वयंप्रभा गुफा में रहकर निरंतर भगवान राम का चिंतन करें और जब भगवान राम के दूत वहां आएं, तो उनका आदर-सत्कार करें।
जब हनुमानजी वानरों के दल के साथ माता सीता की खोज में निकले, तब रास्ते में उन्हें एक गुफा दिखाई दी। उस गुफा में उन्होंने देखा कि एक सुंदर मंदिर है, जिसमें एक तपस्विनी स्त्री बैठी है। यह तपस्विनी कोई और नहीं, बल्कि स्वयंप्रभा थीं। हनुमानजी और उनके दल ने दूर से ही उनकी पूजा की और अपनी कथा सुनाई।
स्वयंप्रभा ने हनुमानजी को जलपान कराया और उन्हें रसीले फल खाने के लिए आमंत्रित किया। इसके बाद, उन्होंने अपने तपोबल से सभी वानरों को समुद्र तट पर पहुंचाने का आश्वासन दिया। उन्होंने कहा कि वे सब आंखें बंद करें और जब वे आंखें खोलेंगे, तो वे समुद्र के तट पर होंगे, जहां माता सीता गई हैं।
इसके बाद स्वयंप्रभा ने अपने तपोबल से सभी को समुद्र तट पर छोड़ दिया और खुद भगवान राम के पास जाकर उनके चरणों में मस्तक नवाया। उन्होंने प्रभु से विनती की और अंततः परमधाम चली गईं।