Religion: कर्मभूमि में निर्णय स्वयं लो पार्थ, धर्म-पथ पर मैं तुम्हारे साथ हूं-श्रीकृष्ण का अर्जुन को संदेश

Religion:कुरुक्षेत्र में अर्जुन जब युद्ध से पीछे हटने लगते हैं, तब भगवान श्रीकृष्ण उन्हें आत्मबोध कराते हैं कि निर्णय लेना उनका अपना कर्तव्य है। श्रीकृष्ण कहते हैं कि वह केवल सही और गलत का बोध करा सकते हैं, पर कर्म का चयन स्वयं मानव को करना होता है।

Shri Krishna s message to Arjun
श्रीकृष्ण का अर्जुन को संदेश- फोटो : Meta

Religion: कुरुक्षेत्र में रथ पर खड़े अर्जुन जब युद्ध से मुंह मोड़ने लगते हैं और भगवान कृष्ण से पूछता है क्या करें केशव..युद्ध करना हीं होगा क्या? भगवान कृष्ण मुस्कुराते हुए कहते हैं...क्या सोचते हो कि मैं बताऊंगा!...ऐसा कभी नहीं होगा!....यह निर्णय खुद तुम्हे लेना होगा पार्थ,उसका परिणाम भी तुम्हारा होगा।उसमें मैं कुछ नहीं कह सकता। मैं तो मानव को सिर्फ यह बताता हूं कि गलत क्या है और सही क्या है। करना तो उसे खुद होता है।कर्म करने का अधिकार उसका खुद का है पार्थ..निर्णय तुम लो तुम्हे किस रास्ते जाना है। चुकी तुम्हारे प्रत्येक कर्म पर हमारी नजर है इसलिए उसके पाप और पुण्य के भागी भी तुम खुद ही बनोगे...जीवन के कर्म क्षेत्र में मैं अपने शिष्यों को संभलने और संभालने का मौका भी देता हूं...अभी वक्त है संभल जाओ पार्थ...इतना सुनकर कृष्ण युद्ध का निर्णय लेते हैं...फिर अन्याय का अंत कर के हीं दम लेते हैं। 

केशव कहते हैं कि हे पार्थ! धर्म युक्त कर्म करो तुम्हे हर कीमत पर मेरी तरफ से सम्मान मिलेगा...सिर्फ मेरे बताए रास्ते पर चलते हुए तुम अपने दायित्वों का पालन करो मैं तुम्हे खुद संरक्षण दूंगा...इसकी चिंता न कर...आगे बढ़ो...अब वक्त नहीं है..

(कुरुक्षेत्र की रणभूमि में अर्जुन जब अपने ही सगे-संबंधियों के विरुद्ध युद्ध करने से पीछे हटते हैं, तब वे भगवान श्रीकृष्ण से मार्गदर्शन माँगते हैं। वे पूछते हैं, "क्या मुझे युद्ध करना ही होगा केशव?" इस पर श्रीकृष्ण मुस्कुराते हुए उन्हें आत्मनिर्णय का महत्व समझाते हैं। वे कहते हैं कि वे केवल सही और गलत का ज्ञान दे सकते हैं, पर निर्णय स्वयं अर्जुन को ही लेना होगा। प्रत्येक कर्म का फल, चाहे वह पुण्य हो या पाप, व्यक्ति को स्वयं ही भोगना होता है।
श्रीकृष्ण अर्जुन को स्मरण कराते हैं कि यह जीवन कर्मभूमि है, जहाँ प्रत्येक मनुष्य को अपने कर्तव्यों का निर्वाह करना होता है। वे अर्जुन को चेताते हैं कि अब भी समय है संभलने का। धर्म के मार्ग पर चलकर यदि कर्म किया जाए, तो भगवान का संरक्षण निश्चित है।
इस प्रेरणा से अर्जुन में उत्साह जागता है, और श्रीकृष्ण स्वयं युद्ध का संचालन करते हैं, अन्याय का विनाश कर धर्म की स्थापना करते हैं। अंततः वे अर्जुन से कहते हैं—"धर्मयुक्त कर्म करो पार्थ, मैं सदैव तुम्हारे साथ हूं। चिंता मत करो, अब समय है आगे बढ़ने का।"
यह उपदेश केवल अर्जुन ही नहीं, अपितु सम्पूर्ण मानवता के लिए प्रेरणास्रोत है। )

कौशलेंद्र प्रियदर्शी की कलम से....