Bihar Teacher News:शिक्षा विभाग की सख़्त कार्रवाई, 14 पदाधिकारियों पर गिरी गाज,बड़का साहब ने नाप दिया

Bihar Teacher News: बिहार के शिक्षा महकमे में बड़ा फसाद खड़ा हो गया है। सरकारी स्कूलों के मासूम गुरुओं का हक़ वेतन अब अफसरों की लापरवाही के जाल में फंस चुका है।

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शिक्षा विभाग के 14 पदाधिकारियों पर गिरी गाज- फोटो : social Media

Bihar Teacher News:बिहार की शिक्षा व्यवस्था एक बार फिर बेअदबी और बेरुख़ी की चपेट में है। सरकारी स्कूलों के मासूम मास्टरों की पगार अटक गई है  और कसूरवार कोई और नहीं, बल्कि वही प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी  हैं जिन पर वेतन बिल भेजने की ज़िम्मेदारी थी। बिहार के शिक्षा महकमे में बड़ा फसाद खड़ा हो गया है। सरकारी स्कूलों के मासूम गुरुओं का हक़, वेतन, अब अफसरों की लापरवाही के जाल में फंस चुका है। प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी  नाम के अफसरों ने अपनी ड्यूटी से ऐसा मुंह मोड़ा कि हजारों शिक्षक तनख्वाह के लिए तरस गए। मामला इतना तूल पकड़ चुका है कि अब शिक्षा विभाग के बड़े अफसर खुद गद्दी से कूद पड़े हैं।

जिला कार्यक्रम पदाधिकारी इंद्र कुमार कर्ण ने सीधे तौर पर सभी लापरवाह BEOs को 24 घंटे का अल्टीमेटम थमा दिया है। चेतावनी साफ है या तो जवाब दो या कार्रवाई झेलो। आदेश तो बार-बार जारी हुए—हर महीने की 25 तारीख तक वेतन बिल जमा करना है, छह महीने में पांच बार सख्त हिदायत दी गई। लेकिन हर बार वही ढाक के तीन पात!अब इस लापरवाही ने सरकारी सिस्टम की पोल खोल दी है। शिक्षक, जो बच्चों के भविष्य की नींव रखते हैं, खुद आज तन्ख्वाह के लिए मोहताज हैं। अपर मुख्य सचिव भी कई बार VC में चेतावनी दे चुके हैं, पर नतीजा ढाक के पत्तों जैसा ही निकला।

सवाल उठता है—क्या ये सिर्फ अफसरों की सुस्ती है, या इसके पीछे कोई संगठित उदासीनता की साजिश चल रही है? शिक्षक संघों में भी रोष है और अगर वक्त रहते कार्रवाई नहीं हुई, तो ये चिंगारी किसी बड़े आंदोलन का आगाज़ बन सकती है।

छह महीनों में पांच बार आदेश जारी हुआ, हर बार डेडलाइन तय की गई, मगर फिर भी लापरवाह BEO साहबान अपनी सीट से टस से मस नहीं हुए। नतीजा ये कि मास्टरों की जेबें खाली, और उनका सब्र अब लहूलुहान हो चुका है।जिला कार्यक्रम पदाधिकारी (स्थापना) इंद्र कुमार कर्ण ने अब मोर्चा संभाल लिया है। उन्होंने कहा है कि बिल जमा न करने वालों को अब 24 घंटे के अंदर जवाब देना होगा, वरना सीधा कार्रवाई की सिफारिश होगी।उनका पत्र ना सिर्फ चेतावनी था, बल्कि एक कानूनी तमाचा भी था, जिसमें साफ लिखा गया कि "यह उच्चाधिकारी के आदेश की अवहेलना, मनमानी और शिक्षक हित के विरुद्ध मानसिकता को दर्शाता है।"

अब कार्रवाई होगी, और सबसे पहले वेतन रोकने का आदेश दे दिया गया है  सिर्फ मुशहरी और मोतीपुर BEO बचे हैं, जिन्होंने समय पर बिल जमा किया।सवाल ये उठता है कि  क्या 24 घंटे में जवाब देकर ये अफ़सर अपने गुनाह को सफेदपोश तर्कों में लपेट देंगे? या फिर ये मामला वेतन वृद्धि पर रोक, निलंबन या कदाचार जांच तक पहुंचेगा?

परिवर्तनकारी प्रारंभिक शिक्षक संघ के तिरहुत प्रमंडल प्रभारी लखन लाल निषाद की टिप्पणी ने इस पूरे सिस्टम की पोल खोल दी।सिर्फ वेतन रोकने से कुछ नहीं होगा, असली असर तब पड़ेगा जब वेतनवृद्धि की राह बंद की जाएगी।सरकारी स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षक पहले ही नियोजन की राजनीति, स्थानांतरण की साज़िशें और स्थायी बहाली के वादों से जूझ रहे हैं। अब ऊपर से वेतन की लटकती तलवार ने उन्हें हताश कर दिया है।सवाल ये है कि जब एक शिक्षक अपने घर का चूल्हा नहीं जला सकता, तो वो बच्चों को तालीम का उजाला कैसे देगा?ये कोई मामूली लापरवाही नहीं, बल्कि एक प्रशासनिक गुनाह है जो सीधे-सीधे शिक्षकों की रोज़ी और शिक्षा की नींव पर हमला करता है। अगर इस बार अफसरशाही को सबक नहीं मिला, तो ...