Teachers Day:क्यों मनाया जाता है 5 सितंबर को शिक्षक दिवस? जानिए इसके पीछे की पूरी कहानी

Teachers Day:शिक्षक वह शक्ति है, जो अज्ञानता के अंधकार को मिटाकर ज्ञान का दीपक जलाती है। वह वह मार्गदर्शक है, जो जीवन के हर मोड़ पर सही राह दिखाता है। ...

Teachers Day
शिक्षक दिवस - फोटो : Meta

Teachers Day:शिक्षक दिवस मात्र एक औपचारिक उत्सव नहीं, बल्कि उस विराट दायित्व और निस्वार्थ तपस्या का स्मरण है, जो एक शिक्षक अपने जीवन भर निर्वाह करता है। भारत जैसे ज्ञान और संस्कृति प्रधान देश में शिक्षक का स्थान हमेशा से अत्यंत पवित्र और पूजनीय रहा है। कोई भी राष्ट्र तभी प्रगति कर सकता है, जब उसके नागरिक शिक्षित, जागरूक और संस्कारवान हों। और इन तीनों का आधार तैयार करने वाले व्यक्ति हैं – शिक्षक।

शिक्षक केवल किताबों के ज्ञान तक सीमित नहीं होते, वे जीवन जीने की कला भी सिखाते हैं। जिस प्रकार दीपक स्वयं जलकर दूसरों को प्रकाश देता है, उसी प्रकार शिक्षक अपने परिश्रम और ज्ञान से छात्रों के जीवन को आलोकित करते हैं। मां को जीवन का प्रथम गुरु कहा गया है, किन्तु समाज और संसार की गहरी समझ देने वाला शिक्षक ही होता है। शिक्षक की शिक्षा केवल परीक्षाओं तक सीमित नहीं रहती, बल्कि वह चरित्र-निर्माण, नैतिक मूल्यों और आदर्श नागरिक बनाने की प्रक्रिया है।एक शिक्षक अपनी कक्षा में केवल डॉक्टर, इंजीनियर, अधिकारी या व्यापारी नहीं गढ़ता, बल्कि राष्ट्र का भविष्य गढ़ता है। किसान से लेकर वैज्ञानिक तक, हर पेशे की नींव एक शिक्षक ही रखता है। यही कारण है कि उन्हें समाज का वास्तविक शिल्पकार कहा जाता है।

भारत में शिक्षक दिवस मनाने की परंपरा 1962 से प्रारंभ हुई। यह दिन देश के द्वितीय राष्ट्रपति, महान शिक्षाविद और दार्शनिक डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन पर मनाया जाता है। उनका जन्म 5 सितंबर 1888 को तमिलनाडु के तिरुतनि नामक छोटे से गांव में हुआ था। राजनीति में सक्रिय होने से पहले उन्होंने लगभग चार दशक तक अध्यापन कार्य किया। वे मानते थे कि शिक्षा केवल रटने की प्रक्रिया नहीं, बल्कि बौद्धिक चेतना और चिंतन को विकसित करने का माध्यम है।डॉ. राधाकृष्णन का कहना था कि “जहां कहीं से भी कुछ सीखने को मिले, उसे जीवन में उतार लेना चाहिए।” वे पढ़ाई को रोचक, प्रेरणादायी और सृजनात्मक बनाने में विश्वास रखते थे। उनके छात्र उनसे गहरा स्नेह रखते थे और उनका जन्मदिन मनाने का प्रस्ताव लेकर उनके पास पहुंचे। किंतु उन्होंने विनम्रता से कहा कि “यदि आप मेरे जन्मदिन को अलग से मनाने के बजाय इस दिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाएं, तो यह मेरे लिए गर्व की बात होगी।” इस प्रकार वर्ष 1962 में पहली बार भारत में 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया गया।

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन न केवल एक महान शिक्षक थे, बल्कि एक दूरदर्शी दार्शनिक और विचारक भी थे। भारतीय संस्कृति और दर्शन को विश्व पटल पर प्रतिष्ठित करने में उनका विशेष योगदान रहा। 1954 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया। उन्होंने पश्चिमी चिंतन और भारतीय अध्यात्म का अद्भुत संगम प्रस्तुत किया।उनका जीवन इस सत्य का उदाहरण है कि शिक्षक का कार्य केवल विद्यालय की चारदीवारी तक सीमित नहीं होता। वह समाज को सही दिशा दिखाने और जीवन मूल्यों को स्थापित करने का निरंतर प्रयास करता है।

हालांकि विभिन्न देशों में शिक्षक दिवस अलग-अलग तिथियों पर मनाया जाता है, किंतु भारत में इसे 5 सितंबर को ही मनाने की परंपरा है। यूनेस्को ने भी शिक्षकों के सम्मान हेतु 5 सितंबर को महत्वपूर्ण तिथि के रूप में मान्यता दी है। आज विश्व के लगभग 100 देश इस दिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाते हैं।

आज जब समाज तेजी से तकनीकी और भौतिक प्रगति की ओर बढ़ रहा है, तब भी नैतिकता, अनुशासन और संस्कार की जिम्मेदारी शिक्षकों के कंधों पर ही है। शिक्षक दिवस हमें यह स्मरण कराता है कि समाज में शिक्षकों का योगदान केवल पढ़ाने तक सीमित नहीं, बल्कि वे जीवन का मार्गदर्शन करते हैं।यह दिन हमें यह भी सोचने पर विवश करता है कि क्या हम अपने शिक्षकों को वह सम्मान दे रहे हैं, जिसके वे वास्तविक हकदार हैं? क्योंकि केवल पुरस्कार या भाषण से उनका योगदान पूरा नहीं होता। वास्तविक सम्मान तब होगा जब हम उनके दिखाए मार्ग पर चलें और समाज को बेहतर बनाने का प्रयास करें।

शिक्षक दिवस उन सभी गुरुओं के प्रति कृतज्ञता का दिन है, जिन्होंने हमें जीवन की दिशा दिखाई। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने इस परंपरा की शुरुआत करके हमें यह सिखाया कि शिक्षक का सम्मान ही राष्ट्र का सम्मान है।

शिक्षक वह शक्ति है, जो अज्ञानता के अंधकार को मिटाकर ज्ञान का दीपक जलाती है। वह वह मार्गदर्शक है, जो जीवन के हर मोड़ पर सही राह दिखाता है। इसलिए हमें न केवल 5 सितंबर को, बल्कि प्रतिदिन अपने हृदय में शिक्षकों के प्रति आदर और कृतज्ञता का भाव संजोकर रखना चाहिए।