Bihar Vidhansabha chunav 2025: 35 साल का अजेय किला, फिर चुनावी रणभूमि में प्रेम कुमार, गया में गिनीज मिशन की जंग शुरू
भाजपा के डॉ. प्रेम कुमार 1990 से अब तक वे हर बार विधानसभा पहुँचते रहे हैं। इस बार वे नौवीं बार विधायक बनते हैं तो गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में अपना नाम दर्ज कराने की दिशा में बढ़ेंगे।
                            Bihar Vidhansabha chunav 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के रण में कई चेहरे पुराने हैं, लेकिन चर्चा सबसे ज़्यादा एक ऐसे सियासी खिलाड़ी की हो रही है, जिसने लगातार आठ बार जनता का भरोसा जीता है। नाम है डॉ. प्रेम कुमार, बीजेपी के वरिष्ठ नेता और गया टाउन विधानसभा क्षेत्र के निर्विवाद चेहरा।1990 से अब तक वे हर बार विधानसभा पहुँचते रहे हैं। इस बार यदि जनता ने उन्हें एक और मौका दिया, तो वे नौवीं बार विधायक बनकर न सिर्फ़ नया इतिहास रचेंगे, बल्कि गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में अपना नाम दर्ज कराने की दिशा में बढ़ेंगे।
गया नगर विधानसभा सीट पर पिछले 35 वर्षों से भाजपा का कब्ज़ा कायम है। 1990 से पहले यहाँ कांग्रेस का दबदबा था 1952 से 1985 तक कांग्रेस के ही उम्मीदवार यहाँ से जीतते रहे। लेकिन मंडल लहर के बाद जब 1990 में राजनीतिक हवा बदली, तब डॉ. प्रेम कुमार ने भाजपा की नींव इस सीट पर मज़बूती से जमा दी।इसके बाद हर चुनाव में नतीजा एक जैसा रहा प्रेम कुमार विजेता।
लेकिन 2025 का चुनाव अब तक का सबसे कठिन माना जा रहा है। इस बार मैदान में हैं —
डॉ. प्रेम कुमार (भाजपा)
अखौरी ओंकार नाथ (कांग्रेस)
धीरेन्द्र अग्रवाल (जन सुराज)
अनिल कुमार (आप)
रफ़ताली ख़ान (बसपा)
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस बार मुकाबला त्रिकोणीय हो सकता है, क्योंकि जन सुराज ने भाजपा के वैश्य वोट बैंक में सेंध लगाने की पूरी कोशिश की है। धीरेन्द्र अग्रवाल खुद भी वैश्य समाज से आते हैं और भाजपा के पूर्व सांसद रह चुके हैं।गया टाउन सीट की सियासत जातीय गणित और धर्मीय संतुलन दोनों पर टिकी रहती है।यहाँ वैश्य, कायस्थ और भूमिहार समाज के मतदाता लगभग प्रत्येक 30-30 हज़ार हैं, जबकि अल्पसंख्यक मतदाताओं की संख्या लगभग 80 हज़ार है।डॉ. प्रेम कुमार जिस समाज से आते हैं, उनकी अपनी जातीय पकड़ मज़बूत मानी जाती है। इसके अलावा भाजपा का कोर वोट भी उनके साथ परंपरागत रूप से जुड़ा रहता है।हालांकि इस बार वोट पोलराइजेशन का असर साफ़ दिख रहा है। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि यहाँ चुनावी बहस विकास और विज़न से ज़्यादा धर्म और जाति आधारित भावनाओं की ओर मुड़ जाती है।चुनाव के आख़िरी दौर में माहौल बदल जाता है, और यही अनिश्चितता हर बार गया टाउन को रोमांचक बना देती है।डॉ. प्रेम कुमार ने कहा कि गया जी की जनता ने मुझे लगातार 8 बार आशीर्वाद दिया है। इस बार 9वीं बार जीतकर मैं गया का नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज कराऊँगा।
उन्होंने यह भी कहा कि उनके लिए राजनीति सत्ता नहीं, सेवा का माध्यम है। भाजपा में वे कई अहम पदों पर रह चुके हैं कृषि, पर्यटन और नगर विकास जैसे विभागों में मंत्री रहते हुए उन्होंने गया के बुनियादी ढांचे में सुधार की कई योजनाएँ चलाईं।हालाँकि एंटी-इनकंबेंसी का साया कई बार मंडराया, लेकिन उनके व्यक्तिगत संबंध और संगठनात्मक नेटवर्क ने हर चुनौती को मात दी।
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि गया सिर्फ़ एक विधानसभा सीट नहीं, बल्कि सांस्कृतिक एकता का प्रतीक है। यहाँ धर्म, जाति या सम्प्रदाय की दीवारें आम दिनों में नहीं दिखतीं। यह बुद्ध, महावीर और विष्णु की भूमि है जहाँ सनातन और सह-अस्तित्व की परंपरा गहरी है।लेकिन चुनावी मौसम आते ही राजनीतिक दल इस संतुलन को अपने-अपने वोट बैंक के हिसाब से तोड़ने की कोशिश करते हैं।
बिहार में एक और दिग्गज हैं जो लगातार जीत के रिकॉर्ड के क़रीब हैं हरिनारायण सिंह (जदयू), जो हरनौत विधानसभा से अब तक 9 बार जीत चुके हैं और इस बार 10वीं बार मैदान में हैं।अगर दोनों नेताओं को इस बार जीत मिलती है, तो बिहार विधानसभा इतिहास में पहली बार दो नेता एक दशक से ज़्यादा का निर्वाचित सिलसिला कायम करेंगे।
गया टाउन में इस बार वोटिंग 11 नवंबर को दूसरे चरण में होगी, और नतीजे 14 नवंबर को घोषित किए जाएँगे।अब सबकी निगाहें इस बात पर हैं कि क्या प्रेम कुमार अपने ‘गया मॉडल’ के दम पर नौवीं बार जीत का परचम लहराएंगे या 35 साल पुराने गढ़ में पहली बार कोई सेंध लगेगी?बिहार की सियासत का ये पन्ना गवाह बनेगा “जहाँ विरासत और विकास, दोनों की परीक्षा एक साथ होगी।
रिपोर्ट- बंदना कुमारी