Bihar Vidhansabha Chunav 2025: मधेपुरा में यादव बहुल्य आबादी के खेल का नया मोड़ ,जेडीयू ने BP Mandal के पोता निखिल मंडल का टिकट काटा, राजद ने शांतनु शरण यादव को सिंबल देकर खेला मास्टर स्ट्रोक

Bihar Vidhansabha Chunav 2025: निखिल मंडल का टिकट कटना और शांतनु शरण यादव का चुनावी मैदान में प्रवेश इस सीट को बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की “गुरुत्वाकर्षण केंद्र” बना देता है।

Bihar Vidhansabha Chunav 2025: मधेपुरा में यादव बहुल्य आबादी
मधेपुरा में यादव बहुल्य आबादी के खेल का नया मोड़- फोटो : social Media

Bihar Vidhansabha Chunav 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की पृष्ठभूमि में सीटों की जंग अब चरम पर है। टिकट कटने की बेचैनी ने नेताओं के दिलों में हलचल पैदा कर दी है और मधेपुरा विधानसभा सीट इस बेचैनी का ताज़ा मिसाल बन गई है। जनता दल (यूनाइटेड) ने अपने युवा नेता निखिल मंडल का टिकट काटकर राजनीतिक गलियारों में सनसनी मचा दी है। उनके स्थान पर मुख्य पार्षद कविता कुमारी साहा को उम्मीदवार बनाया गया है, जिससे राजनीतिक हवा बदल गई है।

मधेपुरा का राजनीतिक समीकरण सदियों से यादव बहुल्य आबादी के इर्द-गिर्द बुना गया है। यहाँ की मशहूर कहावत है: “रोम पोप का और मधेपुरा गोप का”, यानी इस क्षेत्र में किसे विधायक या सांसद बनना है, यह यादव समुदाय की इच्छा तय करती है। शरद यादव और पप्पू यादव जैसे बड़े नेता इसी मिट्टी से उठकर संसद तक पहुंचे हैं। वर्तमान विधायक प्रो चंद्रशेखर भी राजद के प्रतिनिधि हैं, जो रामचरितमानस पर विवादित बयान देकर सुर्खियों में आए थे।

बात करें 2020 के चुनाव की तो साल 2020  में जेडीयू ने निखिल मंडल को प्रत्याशी बनाया था। उस समय वे जेडीयू प्रवक्ता के पद पर थे और विपरीत परिस्थितियों में भी पार्टी का पक्ष मजबूती से रखते आए थे। राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि निखिल मंडल केवल पार्टी कार्यकर्ता नहीं हैं, बल्कि मंडल आयोग की रूपरेखा तय करने वाले बीपी मंडल के पोते हैं। इस वंशज पहचान ने उन्हें मधेपुरा की राजनीतिक परंपरा में विशेष स्थान दिलाया।

2020 के चुनाव में मधेपुरा में कुल 2 लाख 2 हजार वोट पड़े थे। इनमें से एक चौथाई से अधिक वोट निखिल मंडल ने अकेले हासिल किए थे, और यह तब हुआ जब एनडीए की सहयोगी लोजपा (चिराग पासवान) भी उनके खिलाफ मैदान में थी। यह आंकड़ा उनके स्थानीय जनाधार और राजनीतिक पकड़ का परिचायक है।

लेकिन इस बार का चुनावी समीकरण पूरी तरह बदल गया। जेडीयू ने निखिल मंडल का टिकट काटते हुए गैर यादव कविता कुमारी साहा को मौका दिया है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह कदम पार्टी के भीतर और गठबंधन समीकरणों को संतुलित करने की रणनीति का हिस्सा है। राजद ने इस अवसर का लाभ उठाते हुए शरद यादव के पुत्र शांतनु शरण यादव को टिकट थमाया। यह कदम यादव बहुल्य आबादी को साधने के लिए मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है। कथित तौर पर मधेपुरा के लोग वर्तमान विधायक प्रो चंद्रशेखर से संतुष्ट नहीं थे, और तेजस्वी यादव ने यह महसूस किया कि यादव समुदाय के हित में शांतनु शरण को मैदान में उतारा जाना चाहिए।

विशेषज्ञों का मानना है कि निखिल मंडल का टिकट कटना राजद के लिए बड़ी सौगात साबित हो सकता है। यह सीधे-सीधे शांतनु शरण यादव की राह आसान करता है। मधेपुरा की राजनीतिक हलचल बताती है कि यह चुनाव केवल उम्मीदवारों के नाम तक सीमित नहीं है, बल्कि जातीय समीकरण, पारिवारिक पहचान और जनता की निष्ठा का भी खेल है।

जेडीयू का कदम यह संकेत देता है कि पार्टी अब गैर यादव उम्मीदवारों को अवसर देने का प्रयास कर रही है, जबकि राजद ने अपने पारंपरिक वोट बैंक और यादव समुदाय में पकड़ बनाए रखने की रणनीति अपनाई है। इस बदलाव से राजनीतिक हल्कों में चर्चा तेज हो गई है। राजद समर्थक इसे सुनियोजित कदम मान रहे हैं, जो यादव वोट बैंक को एकजुट करने में सहायक साबित होगा। वहीं, जेडीयू के भीतर युवा नेतृत्व के नजरअंदाज होने से असंतोष की लहर उठ रही है।

मधेपुरा अब फिर से “जनाधार और सत्ता की जंग” का मैदान बन गया है। आने वाले दिनों में हर गली, नुक्कड़ और मोहल्ले में राजनीतिक गतिविधियां बढ़ेंगी। उम्मीदवारों की जनसभा, घर-घर संपर्क और वोटरों के बीच पैठ बनाने की होड़ चुनावी माहौल को और गरमाएगी।

मधेपुरा की इस सीट पर जेडीयू और राजद का मुकाबला केवल पार्टी हित और उम्मीदवारों के नाम का नहीं है, बल्कि यह यादव बहुल्य क्षेत्र की राजनीति, जातीय समीकरण और परिवारिक पहचान का समग्र परिदृश्य है। निखिल मंडल का टिकट कटना और शांतनु शरण यादव का चुनावी मैदान में प्रवेश इस सीट को बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का गुरुत्वाकर्षण केंद्र बना देता है।

इस चुनावी जंग में जनता का फ़ैसला तय करेगा कि मधेपुरा का नया चेहरा कौन होगा  क्या राजद का मास्टर स्ट्रोक काम करेगा या जेडीयू का नया दांव वोटरों को रिझा पाएगा। हर मोड़ पर अब सियासत का नया रंग उभर रहा है, और मधेपुरा की राजनीति फिर एक बार अपने ऐतिहासिक संघर्ष और जनता की उम्मीदों के संगम में जी उठी है।