Dularchand Yadav Murder: कभी नीतीश, कभी लालू के करीबी, अनंत सिंह के खास से अदावत तक, कौन थे दबंग दुलारचंद यादव, जिनकी हत्या से दहल गया है मोकामा

कभी दुलारचंद यादव राष्ट्रीय जनता दल के सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के क़रीबी रहे, तो कभी जेडीयू अध्यक्ष और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ मंच साझा किया। साल 2022 के मोकामा उपचुनाव में उन्होंने बाहुबली अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी का सम

Dularchand Yadav Murder
कौन थे दबंग दुलारचंद यादव, जिनकी हत्या से दहल गया है मोकामा- फोटो : social Media

Dularchand Yadav Murder: बिहार की राजनीति में गुरुवार की दोपहर फिर एक बार बंदूक की आवाज ने सियासी गलियारों को हिला दिया। पटना जिले के मोकामा विधानसभा क्षेत्र में चर्चित बाहुबली नेता दुलारचंद यादव की हत्या ने पूरे प्रदेश में हलचल मचा दी है। दुलारचंद इन दिनों जन सुराज पार्टी के प्रत्याशी पीयूष प्रियदर्शी के समर्थन में सक्रिय प्रचार कर रहे थे।बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के दौरान हुए इस हत्याकांड ने एक बार फिर साबित कर दिया कि राज्य की राजनीति में अब भी बारूद और बाहुबल की भूमिका ख़त्म नहीं हुई है।

दुलारचंद यादव का राजनीतिक सफ़र कई रंगों और उतार-चढ़ावों से भरा रहा। कभी वे राष्ट्रीय जनता दल के सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के क़रीबी रहे, तो कभी जेडीयू अध्यक्ष और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ मंच साझा किया। साल 2022 के मोकामा उपचुनाव में उन्होंने बाहुबली अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी का समर्थन किया था, जिन्होंने आरजेडी के टिकट पर जीत हासिल की थी।

रिपोर्ट्स के अनुसार, बाढ़ और मोकामा का टाल इलाका दुलारचंद का गढ़ माना जाता था। यादव समुदाय में उनकी पकड़ बेहद मज़बूत थी। लेकिन उनकी पहचान जितनी ‘राजनीतिक प्रभावशाली’ थी, उतनी ही ‘आपराधिक’ भी। हत्या, रंगदारी, अपहरण और ज़मीन कब्ज़े जैसे मामलों में उनका नाम बार-बार उछलता रहा। 2019 में पटना पुलिस ने उन्हें बाढ़ स्थित घर से गिरफ्तार किया था। लेकिन यह कोई पहली बार नहीं था जब दुलारचंद का नाम किसी गंभीर केस में आया हो।

दरअसल, 16 नवंबर 1991 को लोकसभा के मध्यावधि चुनाव के दौरान बाढ़ के पंडारक मतदान केंद्र पर कांग्रेस नेता सीताराम सिंह की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। इस केस में तत्कालीन जनता दल नेता नीतीश कुमार, दुलारचंद यादव समेत चार लोगों पर एफआईआर दर्ज हुई थी। बाद में पुलिस ने नीतीश और एक अभियुक्त पर से आरोप हटा दिए, मगर यह मामला सालों तक राजनीति में जिंदा रहा।

करीब 18 साल बाद, 2009 में, यह केस फिर चर्चा में आया जब बाढ़ कोर्ट ने नीतीश को दोबारा आरोपी बनाकर केस चलाने की अनुमति दी। मामला हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा, जहाँ से 2019 में नीतीश को बरी कर दिया गया।

राजनीतिक जानकार बताते हैं कि 2017 में महागठबंधन टूटने के बाद जब राजद ने नीतीश पर हमला बोला, तब दुलारचंद ही वह नाम थे जिन्होंने इस पुराने केस की जानकारियाँ राजद को दीं। लालू के बेहद क़रीबी माने जाने वाले दुलारचंद ने आरजेडी की ज़मीन मोकामा-बाढ़ के टाल इलाक़े में मजबूत की, लेकिन 2017 के बाद वे नीतीश के करीब आए। 2019 के लोकसभा चुनाव में वे जेडीयू की रैलियों में भी मंच साझा करते दिखे। हालांकि, कुछ ही महीनों बाद उनकी गिरफ्तारी हुई और नीतीश से रिश्तों में दरार आ गई।

राजनीतिक समीकरणों में उतार-चढ़ाव के बीच, 2025 के चुनाव में उन्होंने प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी का झंडा थामे पीयूष प्रियदर्शी का साथ चुना। वे पार्टी के सदस्य नहीं थे, मगर उनके प्रचार में सक्रिय थे। गुरुवार को घोसवरी थाना क्षेत्र में प्रचार के दौरान दो गुटों की झड़प में गोली चल गई और दुलारचंद की ज़िंदगी वहीं थम गई। परिजनों ने जेडीयू प्रत्याशी अनंत सिंह और उनके समर्थकों पर हत्या का आरोप लगाया है। पुलिस जांच में जुटी है, मगर मोकामा का माहौल फिलहाल तनावपूर्ण है।

बिहार की राजनीति में दुलारचंद यादव का नाम एक ऐसे दौर का प्रतीक रहा है जहाँ सत्ता और संगीन साथ-साथ चलते थे। उनकी मौत ने न सिर्फ़ मोकामा को दहलाया है, बल्कि यह भी याद दिलाया है कि बिहार की सियासत अब भी पूरी तरह साफ नहीं हुई है जहाँ चुनावी मैदान में अब भी वोट से ज़्यादा आवाज, गोली की गूंज तय करती है।