RJd: महागठबंधन के करारी शिकस्त पर पहली बार बोली राजद, कहा- ‘हार में ग़म नहीं, जनसेवा जारी रहेगी’

बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों ने सियासी नज़ारे को पूरी तरह बदल दिया है।

RJD spoke for the first time
महागठबंधन के करारी शिकस्त पर पहली बार बोली राजद- फोटो : social Media

RJd:बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों ने सूबे की सियासत में बड़ा उलटफेर कर दिया है। एनडीए ने उम्मीद से कहीं ज्यादा शानदार प्रदर्शन करते हुए 202 सीटों पर कब्ज़ा जमाया और एक बार फिर से सत्ता की दहलीज़ पर मज़बूत क़दम रखा। दूसरी तरफ इंडिया महागठबंधन को तगड़ा झटका लगा और उसका पूरा कुनबा सिर्फ 35 सीटों पर सिमट गया। जिस मुक़ाबले को कांटे की टक्कर बताया जा रहा था, वह नतीजों में एकतरफ़ा साबित हुआ।

चुनावी नतीजों में करारी शिकस्त के बाद भी राष्ट्रीय जनता दल के तेवर नरम नहीं पड़े हैं। आरजेडी ने अपनी पहली प्रतिक्रिया में कहा कि राजनीति एक लगातार चलने वाली प्रक्रिया है —जनसेवा एक अनवरत और बेमिसाल सफ़र है, इसमें न जीत पर घमंड, न हार पर मायूसी! पार्टी ने सोशल मीडिया पर पोस्ट कर ऐलान किया कि हम ग़रीबों की पार्टी हैं, उनकी आवाज़ बुलंद करते रहेंगे। हार ज़रूर मिली है, पर हौंसला बरकरार है।

महागठबंधन को उम्मीद थी कि सत्ता की चाबी इस बार तेजस्वी यादव के हाथ लगेगी। पूरा गठबंधन एकजुट था, पोस्टरों में तेजस्वी ही मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट किए गए थे, लेकिन जमीनी सच्चाई ने अलग कहानी लिख दी। आरजेडी की सीटें जहाँ पिछले चुनाव में 75 थीं, वहीं इस बार घटकर सिर्फ़ 25 रह गईं  2010 के बाद यह सबसे निराशाजनक प्रदर्शन माना जा रहा है। वोट शेयर और सीटों का ग्राफ़ तेज़ी से नीचे गिरा और महागठबंधन 40 सीटों के आँकड़े से भी नीचे रुक गया।

इसके उलट बीजेपी एनडीए का सबसे बड़ा स्तंभ बनकर उभरी। पार्टी ने रिकॉर्ड 89 सीटों पर जीत दर्ज की — बिहार में यह बीजेपी का अब तक का सबसे बड़ा जनादेश है। नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली जेडीयू भी 85 सीटों के साथ मज़बूती से खड़ी दिखाई दी। वहीं चिराग पासवान की एलजेपी (रालोद) ने 29 सीटों पर लड़कर 19 सीटों पर शानदार जीत हासिल करके अपने दमख़म का एहसास करा दिया। जीतन राम मांझी की HAM ने 5 और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी ने 4 सीटों के साथ एनडीए की जीत में सहयोग दिया।

कुल मिलाकर इस चुनाव ने साबित कर दिया कि बिहार की राजनीति अभी भी अप्रत्याशित मोड़ों से भरी है। जीत का जश्न एनडीए में है तो महागठबंधन में आत्ममंथन लेकिन दोनों ही खेमों में चुनावी जंग का सिलसिला जारी रहने वाला है।इन नतीजों ने साफ़ कर दिया है कि बिहार की जनता ने इस बार स्थिरता, विकास और क़ायदे-क़ानून के नाम पर एनडीए को भारी जनसमर्थन दिया, जबकि महागठबंधन को अपनी रणनीति और संगठन दोनों पर नए सिरे से विचार करना होगा।