गयाः पितृपक्ष, जिसे श्राद्ध पक्ष भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण समय है जब लोग अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। यह अवधि आमतौर पर 15 दिनों की होती है और इसे आश्विन मास की पूर्णिमा से लेकर अमावस्या तक मनाया जाता है। इस दौरान, परिवार के सदस्य अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान और श्राद्ध कर्म करते हैं। चार लाख से अधिक पिडदानी गया जी पहुंच चुके हैं।
सातवें दिन विशेष रूप से विष्णुपद की 16 वेदियों पर पिंडदान करने का महत्व है। यह मान्यता है कि इन वेदियों पर पिंडदान करने से पूर्वजों को स्वर्ग की ओर ले जाने में सहायता मिलती है। प्रत्येक वेदी का अपना विशेष महत्व होता है
हिंदू धर्म में यह विश्वास किया जाता है कि जब पिंडदान और श्राद्ध कर्म सही तरीके से किए जाते हैं, तो इससे पूर्वजों की आत्मा को मोक्ष प्राप्त होता है। यह प्रक्रिया उन्हें स्वर्ग की ओर ले जाती है, जहां वे सुखी रहते हैं।
पितृपक्ष मेला के सातवें दिन विष्णुपद की 16 वेदियों पर पिंडदान और श्राद्ध कर्म करना धार्मिक अनुष्ठान का हिस्सा होता है, इससे पितरों को शांति मिलती है।विष्णुपद परिसर में 16 वेदियाँ स्थित हैं, जिन्हें हाथी के आकार में बनाया गया है। इन वेदियों पर विभिन्न प्रकार के अनुष्ठान किए जाते हैं। प्रत्येक वेदी का अपना विशेष महत्व होता है और यहाँ पर पिंडदान करने से श्रद्धालुओं को विश्वास होता है कि उनके पितर विष्णु लोक में जाएंगे।
श्रद्धालु फल्गु नदी में जल तर्पण भी करते हैं, जिससे उन्हें अपने पितरों की मुक्ति की कामना होती है। तर्पण के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है। पितृपक्ष के दौरान, विशेषकर छठे दिन से यहाँ तीर्थयात्रियों की भारी भीड़ उमड़ती है। श्रद्धालु सुबह से ही कतार में खड़े होकर अपनी बारी का इंतजार करते हैं। चार लाख से अधिक पिडदानी गया जी पहुंच चुके हैं। लोग अपने पितरों का पिंडदान कर रहे हैं।