Sleep Time Study: आज कल के बच्चों में नींद की कमी काफी देखने को मिल रही है। इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह है लंबे समय की स्क्रीन टाइम। इसको लेकर माता-पिता और स्वास्थ्य विशेषज्ञ लंबे समय से बच्चों को सोने से पहले स्क्रीन का इस्तेमाल करने के खतरों के बारे में आगाह करते रहे हैं, यह सोचकर कि देर रात तक सोशल मीडिया पर स्क्रॉल करने या अत्यधिक वीडियो देखने से नींद में खलल पड़ता है और अगले दिन बच्चे थके हुए, चिड़चिड़े हो जाते हैं।
हालांकि, न्यूज़ीलैंड के एक नए स्टडी से पता चलता है कि इस सलाह पर पुनर्विचार करने का समय आ गया है। शोधकर्ताओं ने पाया कि सोने से पहले दो घंटों में स्क्रीन पर बिताए गए समय का किशोरों की नींद पर न्यूनतम प्रभाव पड़ता है। अधिक महत्वपूर्ण बात यह थी कि क्या वे बिस्तर पर जाने के बाद स्क्रीन का इस्तेमाल करते थे। JAMA पीडियाट्रिक्स में प्रकाशित, नया स्टडी इस बात की अधिक जानकारी देता है कि अलग-अलग तरह के स्क्रीन का यूज युवा लोगों में नींद को कैसे प्रभावित करते हैं।
स्क्रीन टाइम और नींद के बीच संबंध
रिसर्च ने कुछ लंबे समय से चली आ रही मान्यताओं को चुनौती देने का काम किया है। जैसे सोने से पहले दो घंटों के भीतर स्क्रीन टाइम का नींद के स्वास्थ्य के अधिकांश पहलुओं पर बहुत कम प्रभाव पड़ा। इस दौरान किशोर औसतन लगभग 56 मिनट स्क्रीन पर बिताते हैं। हालांकि यह उपयोग बाद में सोने के समय से जुड़ा था, लेकिन बाद में जागने के समय तक यह संतुलित हो गया, जिससे नींद की टाइम में कोई खासा बदलाव देखने को नहीं मिला। इसका सीधा मतलब था कि बेड पर जाने से पहले फोन का इस्तेमाल नींद में कोई ज्यादा प्रभाव नहीं देता है। वहीं बेड पर जाने के बाद मोबाइल का इस्तेमाल करना नींद को आधे घंटे कम कर देता है।