संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) की सिविल सेवा परीक्षा देश की सबसे कठिन परीक्षाओं में से एक मानी जाती है। हर साल लाखों छात्र इसमें अपनी किस्मत आजमाते हैं, लेकिन कुछ ही इसे पास कर पाते हैं। ऐसे में अगर कोई लगातार चार बार असफल होने के बाद भी हार नहीं मानता और पांचवें प्रयास में सफलता हासिल कर लेता है, तो यह कहानी प्रेरणा से भरी है। रांची की रहने वाली आकांक्षा सिंह ने ऐसा ही किया। चार बार प्रीलिम्स (PT) में असफल होने के बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और 2023 में 44वीं रैंक हासिल कर IAS बनीं।
रांची में असिस्टेंट प्रोफेसर थीं आकांक्षा सिंह
UPSC परीक्षा की तैयारी के साथ-साथ आकांक्षा सिंह रांची के एसएस मेमोरियल कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत थीं। दिनभर कॉलेज में पढ़ाने के बाद उन्हें अपने लिए बहुत कम समय मिलता था, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। उन्होंने सुबह 4 घंटे और शाम को 4 घंटे यानी रोजाना 8 घंटे पढ़ाई की और इसी रणनीति के दम पर मुश्किल UPSC परीक्षा पास की। आकांक्षा सिंह के पिता चंद्र कुमार सिंह झारखंड सरकार के कल्याण विभाग में संयुक्त सचिव के पद पर कार्यरत थे और अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं। पिता को प्रशासनिक सेवा में काम करते देख आकांक्षा ने आईएएस बनने का सपना देखा। हालांकि, यह सफर आसान नहीं था। चार बार प्रीलिम्स में फेल होने के बावजूद उन्होंने आखिरी मौके में पूरी मेहनत की और सफल हुईं।
भूगोल से गहरा नाता, वैकल्पिक विषय बना वरदान
आकांक्षा सिंह ने यूपीएससी परीक्षा में भूगोल को वैकल्पिक विषय के तौर पर चुना। दिलचस्प बात यह है कि उन्होंने कॉलेज में बतौर प्रोफेसर भूगोल भी पढ़ाया, जिसकी वजह से उनकी अपने विषय पर मजबूत पकड़ थी। यही वजह है कि जब उन्होंने प्रीलिम्स पास किया तो मेन्स और इंटरव्यू में अच्छा प्रदर्शन किया और 44वीं रैंक के साथ आईएएस बनने का सपना पूरा किया। आकांक्षा सिंह की शुरुआती शिक्षा राजेंद्र विद्यालय, जमशेदपुर में हुई। इसके बाद उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस से ग्रेजुएशन और फिर जेएनयू से पोस्ट ग्रेजुएशन और एमफिल की पढ़ाई पूरी की। पढ़ाई में हमेशा अव्वल रहने वाली आकांक्षा को यूपीएससी की राह में कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा, लेकिन अंत में उन्होंने सफलता की कहानी लिखी।
आकांक्षा सिंह की कहानी उन सभी उम्मीदवारों के लिए प्रेरणा है जो यूपीएससी जैसी कठिन परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं। उन्होंने साबित कर दिया कि संघर्ष और मेहनत कभी बेकार नहीं जाती। 4 बार असफल होने के बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी और आखिरी प्रयास में जीत हासिल कर आईएएस बनीं। उनकी सफलता उन सभी छात्रों के लिए एक सबक है कि अगर सही दिशा में मेहनत की जाए तो कोई भी लक्ष्य हासिल किया जा सकता है।