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कहानी आदिवासियों के मसीहा की, जिन्होंने ओलंपिक में भारत के लिए जीता था पहला गोल्ड

जयपाल सिंह मुंडा, भारतीय हॉकी के एक ऐसे नायक हैं जिन्हें इतिहास ने भुला दिया है। उन्होंने 1928 के एम्स्टर्डम ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीम का नेतृत्व किया और भारत को पहला ओलंपिक स्वर्ण पदक दिलाया।

जयपाल सिंह मुंडा,

Jaipal Singh Munda: जब भी भारत के ओलंपिक स्वर्ण पदकों की बात आती है, तो अक्सर ध्यान 1948 के लंदन ओलंपिक में हॉकी टीम की जीत पर जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत का पहला ओलंपिक स्वर्ण 1928 के एम्स्टर्डम ओलंपिक में आया था और उस ऐतिहासिक टीम के कप्तान जयपाल सिंह मुंडा थे, जिनका नाम इतिहास के पन्नों में कहीं खो गया है।



आदिवासी नायक जिन्होंने भारत को उसका पहला स्वर्ण दिलाया

झारखंड के खूंटी जिले में जन्मे जयपाल सिंह मुंडा न केवल हॉकी खिलाड़ी थे, बल्कि एक प्रखर राजनीतिज्ञ, शिक्षाविद् और आदिवासी समुदाय की एक सशक्त आवाज भी थे। उन्होंने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान हॉकी में महारत हासिल की और 1928 के ओलंपिक टीम का नेतृत्व करने के लिए भारत लौट आए। उस समय नीदरलैंड में आयोजित ओलंपिक में भारत ने नीदरलैंड को 8-0 से हराकर इतिहास रच दिया था।


टीम को जिताया लेकिन खुद कप्तानी छोड़नी पड़ी

जयपाल सिंह मुंडा का करियर उतार-चढ़ाव से भरा रहा। 1928 के ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने के बाद भी उन्हें टीम में मतभेदों के कारण टीम छोड़नी पड़ी। उन्होंने ब्रिटिश अधिकारियों के साथ अपने मतभेदों को खुलकर व्यक्त किया, जो उस समय के खिलाड़ियों के लिए असामान्य था।



आदिवासी अधिकारों के लिए बुलंद आवाज

हॉकी से दूर रहने के बाद जयपाल सिंह मुंडा राजनीति में आए और आदिवासी अधिकारों के लिए लड़ाई शुरू की। उन्होंने संविधान सभा में आदिवासी समुदाय की समस्याओं को उठाया और 'आदिवासी महासभा' की स्थापना की। उन्होंने झारखंड राज्य के गठन का सपना देखा, जो सालों बाद साकार हुआ।


इतिहास में खो गए जयपाल सिंह मुंडा

जयपाल सिंह मुंडा की कहानी का सबसे दुखद पहलू यह है कि देश को पहला स्वर्ण दिलाने वाले इस महान नायक का नाम खेल इतिहास में वह स्थान नहीं पा सका जिसके वे हकदार थे। जयपाल सिंह मुंडा का योगदान भारतीय हॉकी के स्वर्णिम इतिहास में कहीं दब गया। आज जब भारत खेलों में नई ऊंचाइयों को छू रहा है, तो जयपाल सिंह मुंडा जैसे गुमनाम नायकों को याद करना और उनका सम्मान करना समय की मांग है। वे न केवल खेलों में बल्कि सामाजिक सुधार और राजनीति में भी बदलाव के प्रतीक थे। "जयपाल सिंह मुंडा का नाम न केवल इतिहास में बल्कि हर भारतीय के दिल में अंकित होना चाहिए।"

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