Sarhul festival News: झारखंड में आदिवासियों के सबसे बड़े पर्व सरहुल की हुई शुरुआत, आदिवासी नववर्ष का माना जाता है प्रतीक

Sarhul festival News: झारखंड में आदिवासियों का सबसे बड़ा पर्व सरहुल की शुरुआत आज से हो चुकी है। आदिवासी समाज के लोग इस पर्व के साथ ही अपने नए साल की शुरुआत करते हैं।...पढ़िए आगे

Sarhul festival News: झारखंड में आदिवासियों के सबसे बड़े पर्
आदिवासी नववर्ष का माना जाता है प्रतीक- फोटो : SOCIAL MEDIA

Ranchi: आदिवासियों का सबसे बड़ा पर्व सरहुल की शुरुआत 31 मार्च से शुरु हो गई है। पारंपरिक नृत्य-संगीत और प्रकृति की उपासना के साथ इस पर्व की शुरुआत की जाती है। पूरे झारखंड में आदिवासी वर्ग के लोग इस त्योहार को बड़े धूम-धाम से मनाते हैं।

मछली और केकड़ा पकड़ने की है परंपरा

इस त्योहार के पहले दिन सरना समुदाय के लोग उपवास करते हैं।पहले दिन की मान्यताओं के अनुसार इस दिन लोग आसपास के जलस्त्रोतों के पास जाकर मछली और केकड़ा पकड़ते हैं। 

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पुरखो को पकवान किया जाता है समर्पित

घर के प्रमुख सदस्य शाम को अपने पुरखों को याद करते हुए उन्हें पुआ-पकवान अर्पित करते हैं और इस दौरान जल रखाई पूजा का भी विधान किया जाता है। इस पूजा के लिए नदी और तालाब से पानी भरकर सरना स्थल पर लाकर रखा जाता है।

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केकड़े के चूर्ण को खेतों में डाला जाता है

इस पूजा में मछली और केकड़ा पकड़ने की भी परंपरा रही है। आदिवासी समाज में ऐसी मान्यता है कि मछली और केकड़ा इस पृथ्वी के पूर्वज है और पृथ्वी पर मिट्टी लाने का काम मछली और केकड़े ने ही सबसे पहले किया था। आदिवासी समाज के मान्यताओं के अनुसार, पकड़े गए केकड़े को रसोईघर में टांगा जाता है और जब यह सूख जाता है तो इसका चूर्ण बनाकर खेतों में इसे खाद की तरह छीटा जाता है। ऐसी मान्यता है कि खेतों में मरे हुए इन केकड़ो के चूर्ण को छिड़कने से अच्छी फसल की उपज होती है।