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Aligarh Muslim University - अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा बरकरार, सुप्रीम कोर्ट में सात जजों की पीठ ने सुनाया फैसला

Aligarh Muslim University - सुप्रीम कोर्ट ने अलीगढ़ मुस्लिम विवि को अल्पसंख्यक विवि की मान्यता को बरकरार रखा है। इस मामले में शीर्ष न्यायालय ने 18 साल पहले प्रयागराज हाईकोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया है।

Aligarh Muslim University - अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा बरकरार, सुप्रीम कोर्ट में सात जजों की पीठ ने सुनाया फैसला
AMU को मिली अल्पसंख्यक विवि की मान्यता- फोटो : NEWS4NATION

NEW DELHI - सुप्रीम कोर्ट ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक होने के दर्जे को बरकरार  रखा है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 2006 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया है। जिसमें कोर्ट ने एएमयू को अल्पसंख्यक विश्वविद्यालय मानने से इनकार कर दिया था।

आज 43 साल पुराने विवाद में सुप्रीम कोर्ट के सात जजों की पीठ ने 4-3 के मत से अपना फैसला सुनाया। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ में से खुद सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस जेडी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा ने संविधान के अनुच्छेद 30 के मुताबिक अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक संस्थान के दर्जे के कायम रखने के पक्ष में फैसला दिया।

18 साल पहले मनमोहन सरकार ने की अपील

बता दें कि साल 2006 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना था। जिसके बाद मनमोहन सिंह सरकार ने उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई, जिस पर सुनवाई पूरी कर सुप्रीम कोर्ट ने बीते 1 फरवरी को फैसला सुरक्षित रख लिया था।अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद छह दशक पुराने विवाद पर विराम लग गया है।

 1875 में एएमयू की हुई स्थापना

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की स्थापना 1875 में सर सैयद अहमद खान द्वारा 'अलीगढ़ मुस्लिम कॉलेज' के रूप में की गई थी, जिसका उद्देश्य मुसलमानों के शैक्षिक उत्थान के लिए एक केंद्र स्थापित करना था। 1920 में इसे विश्वविद्यालय का दर्जा मिला और इसका नाम 'अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय' रखा गया।

अल्पसंख्यक यूनिवर्सिटी मानने से किया इनकार

एएमयू अधिनियम 1920 में साल 1951 और 1965 में हुए संशोधनों को मिलीं कानूनी चुनौतियों ने इस विवाद को जन्म दिया। सुप्रीम कोर्ट ने 1967 में कहा कि एएमयू एक सेंट्रल यूनिवर्सिटी है। कोर्ट के फैसले का अहम बिंदू यह था कि इसकी स्थापना एक केंद्रीय अधिनियम के तहत हुई है ताकि इसकी डिग्री की सरकारी मान्यता सुनिश्चित की जा सके। 

कानून में किया गया संशोधन

सर्वोच्च अदालत के इस फैसले के बाद देशभर में मुस्लिम समुदाय ने विरोध प्रदर्शन किए जिसके चलते साल 1981 में एएमयू को अल्पसंख्यक का दर्जा देने वाला संशोधन हुआ।

दो दशक तक मान्यता बरकरार

साल 2005 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 1981 के एएमयू संशोधन अधिनियम को असंवैधानिक करार देते हुए इसे रद्द कर दिया। जिसके बाद 2006 में मनमोहन सिंह सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी। फिर 2016 में केंद्र ने अपनी अपील में कहा कि अल्पसंख्यक संस्थान की स्थापना एक धर्मनिरपेक्ष राज्य के सिद्धांतों के विपरीत है।

साल 2019 में तत्कालीन CJI रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने मामले को सात जजों की बेंच के पास भेजा था, जिस पर आज फैसला आया।



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