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गंगा नदी में दिखा रेलवे ट्रैक, तो लोगों ने पूछा- यहां ट्रेन चलती थी क्या, जानें क्या है पूरा माजरा...

गंगा नदी के जलस्तर में अचानक कमी आने से हर की पैड़ी और वीआईपी घाट पर एक अद्भुत नजारा सामने आया है। जहां पहले गंगा की लहरें दिखती थी, वहां अब सूखी धरती पर पुराने जमाने की रेलवे पटरियां दिखाई दे रही हैं।

गंगा नदी में दिखा रेलवे ट्रैक, तो लोगों ने पूछा- यहां ट्रेन चलती थी क्या, जानें क्या है पूरा माजरा...

हरिद्वार के हर की पैड़ी और वीआईपी घाट पर बहने वाली गंगा नदी की धारा अचानक सूखने के बाद जो नजारा सामने आया, उसने सबको हैरान कर दिया। वहां गंगा की तलहटी पूरी तरह नजर आने लगी है, और इसके साथ ही एक पुरानी रेलवे ट्रैक जैसी लोहे की पटरियां दिखने लगी हैं। जो घाट पहले गंगा के लबालब पानी से भरे रहते थे, अब वहां सूखा पड़ा है, और लोगों के मन में सवाल उठने लगे हैं—क्या यहां कभी ट्रेन चली थी? दरअसल, गंगा नहर के मेंटेनेंस के लिए हर साल की तरह इस बार भी यूपी सिंचाई विभाग द्वारा गंग नहर का पानी बंद किया गया है, जिससे गंगा की धारा अस्थायी रूप से सूख गई है। इस दौरान हर की पैड़ी के पास दिखाई दे रही पटरियों ने सोशल मीडिया पर तहलका मचा दिया है। लोग इसको लेकर तरह-तरह के दावे और कयास लगा रहे हैं। कुछ लोगों का मानना है कि यह पटरियां एक समय यहां छोटी ट्रेन के संचालन के लिए इस्तेमाल की जाती थीं।


क्या है इन पटरियों का इतिहास?

हरिद्वार के पुराने जानकारों और इतिहासकारों के अनुसार यह पटरियां 1850 के आसपास गंग नहर के निर्माण के दौरान बिछाई गई थीं। उस समय इन पर चलने वाली छोटी हाथगाड़ियां निर्माण सामग्री जैसे पत्थर, ईंट, और लोहे को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने के लिए इस्तेमाल की जाती थीं। भीमगौड़ा बैराज से लेकर डाम कोठी तक के बांध और तटबंधों के निर्माण में इन गाड़ियों की अहम भूमिका थी। अंग्रेज अफसर निरीक्षण के दौरान इन्हीं पटरियों का इस्तेमाल करते थे। इतिहासकार बताते हैं कि यह ट्रैक गंग नहर के निर्माण का हिस्सा था, जिसे लॉर्ड डलहौजी के कार्यकाल में इंजीनियर कोटले की देखरेख में बनाया गया था। इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य गंगा नदी से सिंचाई व्यवस्था को बेहतर बनाना था। यह ब्रिटिश काल का एक महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट था, जिसने आधुनिक भारत में सिंचाई प्रणाली की नींव रखी।


पहली रेल लाइन का अनछुआ इतिहास

इतिहास के जानकारों का मानना है कि भारत की पहली रेल लाइन भी हरिद्वार के पास रुड़की-कलियर के बीच बिछाई गई थी। हालांकि, इसे आधिकारिक रूप से पहली रेलवे लाइन के रूप में मान्यता नहीं मिली। गंगा नहर के निर्माण में इस्तेमाल होने वाली पटरियां इसी ऐतिहासिक परियोजना का हिस्सा थीं, जिसे अब सूखने के बाद देखा जा सकता है।


गंगा का नजारा: एक ऐतिहासिक रहस्य की परतें

हर साल गंग नहर की सफाई और मरम्मत के लिए पानी बंद किया जाता है, लेकिन इस बार जो नजारा सामने आया है, उसने इतिहास के पन्नों को एक बार फिर से खोल दिया है। सूखी गंगा के तलहटी में दिख रही ये पटरियां ब्रिटिश काल की इंजीनियरिंग का एक नमूना हैं। यह पटरियां आज भी उस दौर की तकनीकी कौशल को दर्शाती हैं, जब हाथगाड़ियों से बड़े-बड़े प्रोजेक्ट्स को सफलतापूर्वक अंजाम दिया जाता था। इस खोज ने हरिद्वार आने वाले पर्यटकों और स्थानीय लोगों के लिए एक नया आकर्षण पैदा कर दिया है। लोग इन पटरियों को देखकर उस दौर की कल्पना कर रहे हैं जब यहां नहर निर्माण के लिए अफसर हाथगाड़ियों पर बैठकर निरीक्षण किया करते थे।


नहर बंद, लेकिन उत्सुकता चरम पर

गंगा के सूखने के साथ ही हर की पैड़ी पर यह अद्वितीय दृश्य सामने आना, एक ऐतिहासिक रहस्य की तरह है जो समय-समय पर अपनी कहानी सुनाने के लिए सामने आता है। चाहे यह निर्माण सामग्री ढोने की पुरानी तकनीक हो या ब्रिटिश कालीन निर्माण की एक झलक, यह ट्रैक न केवल हरिद्वार के इतिहास को फिर से जीवंत करता है बल्कि आने वाले समय में यहां आने वाले लोगों के लिए चर्चा का विषय बना रहेगा।

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