Zakir Hussain Death: जब जाकिर के पिता ने कानों में पहली बार सुनाया था तबले की धुन! जानें इसके पीछे की अनसुनी कहानी

जाकिर हुसैन ने अपने पिता से संगीत के साथ जुड़ाव और समर्पण सीखा। अल्ला रक्खा ने तबले को न केवल एक वाद्ययंत्र के रूप में, बल्कि साधना का एक माध्यम मानकर अपने बेटे को इसे सौंपा।

Zakir Hussain Death: जब जाकिर के पिता ने कानों में पहली बार
तबला वादक जाकिर हुसैन की अनोखी कहानी- फोटो : social media

Zakir Hussain Death: भारत के प्रसिद्ध तबला वादक जाकिर हुसैन का जीवन और उनकी कला प्रेरणा का स्रोत है। उनकी यादें, विशेष रूप से उनके पिता अल्ला रक्खा के साथ जुड़े अनुभव, उनकी संगीत यात्रा की नींव को दर्शाती हैं। जाकिर हुसैन ने अपने जीवन का एक खास वाकया साझा किया था। जब वह पैदा हुए, तो उनके पिता और गुरू अल्ला रक्खा ने उन्हें गोद में लिया और परंपरानुसार प्रार्थना के बजाय तबले की लय उनके कानों में सुनाई। जाकिर ने कहा था, "पिता ने प्रार्थनाओं के बजाय तबले की ताल से मेरा स्वागत किया। जब मेरी मां ने गुस्से में कहा कि यह प्रार्थना नहीं है, तो पिता ने जवाब दिया, 'यह मेरी प्रार्थना है। मैं सरस्वती और गणेश की पूजा करता हूं, और यह ज्ञान मैं अपने बेटे को देना चाहता हूं।'"

संगीत साधना की शुरुआत और परिवार का प्रभाव

जाकिर हुसैन ने अपने पिता से संगीत के साथ जुड़ाव और समर्पण सीखा। अल्ला रक्खा ने तबले को न केवल एक वाद्ययंत्र के रूप में, बल्कि साधना का एक माध्यम मानकर अपने बेटे को इसे सौंपा। यही दृष्टिकोण जाकिर को विश्वभर में भारतीय संगीत के सबसे प्रतिष्ठित दूतों में से एक बनाने में मददगार साबित हुआ।

साधारण शुरुआत, असाधारण यात्रा

9 मार्च 1951 को मुंबई में जन्मे जाकिर हुसैन ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा माहिम के सेंट माइकल स्कूल में पूरी की और सेंट जेवियर्स कॉलेज से स्नातक किया। उनका शुरुआती जीवन साधारण था। ट्रेन में यात्रा करते हुए, अगर उन्हें सीट न मिलती, तो वे अखबार बिछाकर फर्श पर सो जाते थे। संगीत के प्रति उनकी निष्ठा इतनी थी कि तबले को अपनी गोद में लेकर सोते थे, ताकि कोई उसका अनादर न कर सके।

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सम्मान और उपलब्धियां

जाकिर हुसैन को भारतीय संगीत के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से नवाजा गया। उन्हें 1988 में पद्मश्री, 2002 में पद्म भूषण और 2023 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया।

अंतिम विदाई

जाकिर हुसैन का निधन इडियोपैथिक पल्मोनरी फाइब्रोसिस के कारण हुआ। सैन फ्रांसिस्को के एक अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था। उनकी विरासत और संगीत के प्रति उनकी भक्ति आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणादायक रहेगी।

संगीत के प्रति एक अद्वितीय भक्ति

जाकिर हुसैन का जीवन संगीत के प्रति असीम भक्ति और साधना का प्रतीक है। उनके पिता द्वारा दिए गए संस्कार और शिक्षा ने उन्हें एक महान कलाकार बनाया। जाकिर ने अपने संगीत से भारत की संस्कृति को वैश्विक मंच पर गर्व के साथ प्रस्तुत किया।