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Independence Day Special : 103 साल के हो गए हैं नवादा के बाबू बटोरन सिंह, आज़ादी के लिए उखाड़ दी थी रेल की पटरियां

Independence Day Special : 103 साल के हो गए हैं नवादा के बाबू बटोरन सिंह, आज़ादी के लिए उखाड़ दी थी रेल की पटरियां

NAWADA : आज हम देश की आज़ादी का 75 वां जश्न मना रहे हैं. लेकिन इस आज़ादी को पाने के लिए देश के कई लोगों ने अपनी जान कुर्बान कर कर दी. जबकि कई लोगों ने इस आज़ादी को पाने के लिए अपना सबकुछ कुर्बान कर दिया. इन्हीं लोगों में शामिल है नवादा जिले बाबू बटोरन सिंह. जिन्होंने आज़ादी की लड़ाई में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. आज उनकी उम्र करीब 103 साल हो चुकी है. बताया जा रहा है की आज वे जिले के एकमात्र जीवित स्वतंत्रता सेनानी हैं. लेकिन हर साल की तरह उन्होंने आज किसी कार्यक्रम में भाग नहीं लिया. इसलिए जिला प्रशासन ने उन्हें उनके घर जाकर सम्मानित किया है. 

विद्यालय के प्रमाण पत्र में उनका जन्मदिन 2 जनवरी 1917 है. स्वतंत्रता सेनानी उत्तराधिकारी संगठन के जिला उपाध्यक्ष नरेंद्र कुमार शर्मा उर्फ कार्यानंद शर्मा के पास जिले के सभी स्वतंत्रता सेनानियों का ब्योरा है. शर्मा बताते हैं कि नवादा जिले में कुल 306 स्वतंत्रता सेनानी थे. सभी ताम्रपत्र धारी थे. इनमें से 267 को सरकार प्रदत्त पेंशन व अन्य सुविधाओं का लाभ मिल रहा था. 39 भूमिगत स्वतंत्रता सेनानियों को ताम्रपत्र मिला था. लेकिन कुछ को पेंशन नहीं मिल पाई थी तो कुछ ने पेंशन नहीं ली थी. शर्मा बताते हैं कि हमारे पिताजी स्व बच्चू सिंह स्वतंत्रता सेनानी संघ के जिलाध्यक्ष और प्रदेश महासचिव रहे थे. ऐसे में काफी कुछ दस्तावेज संभाल रखे हैं.  अब मात्र एक स्वतंत्रता सेनानी बटोरन बाबू जीवित हैं. 

बताया जाता है की 1942 के आंदोलन में बाबू बटोरन सिंह ने फरारी कार्यकर्ता के रूप में क्रांतिकारी भूमिका निभाई थी. वे बचपन से ही अंग्रेजी शासन की खिलाफत किया करते थे. बटोरन सिंह जब मध्य विद्यालय साम्बे में पढ़ते थे. उसी समय छात्रों की टोली के साथ मिलकर रेल की पटरियों का उखाड़ दिया था. इस आरोप में तब पकरीबरवां थाना के दारोगा रहे मो. फकरुज्जमां ने गिरफ्तार कर उन्हें गया जेल भेज दिया था. जिसके बाद पाली गांव के रहनेवाले  वासुदेव सिंह ने उनकी जमानत करवाई थी. जेल से आने के बाद भी आजादी मिलने तक क्षेत्रवासियों में अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध क्रांति फैलाने के लिए बटोरन सिंह पर्चे बांटा करते थे.  प्रधानमंत्री रहते इंदिरा गांधी ने जब स्वतंत्रता सेनानियों के लिए पेंशन की शुरुआत की तो इन्हें भी उसका लाभ मिला. साल 1971 से 1978 तक ग्राम पंचायत सुभानपुर के निर्वाचित सरपंच रहे. बाबू बटोरन सिंह की समाजसेवी के रूप में पहचान रही है. 

नवादा से अमन सिन्हा की रिपोर्ट

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