NEWS4NATION DESK : आज से 39 साल पहले यूपी के कानपुर जिले में एक ऐसा नरसंहार हुआ था, जिससे पूरे देश में भूचाल आ गया था। कानपुर जिले के अंतर्गत आने वाले बेहमई गांव में 14 फरवरी 1981 को 20 लोगों को गोली मारकर उनकी हत्या कर दी थी। मारे गए लोगों में से 17 लोग ठाकुर बिरादरी से थे। नरसंहार को
आज यानी 18 जनवरी को एक बार फिर से इस मामले की स्थानीय अदालत में सुनवाई होनी है। उम्मीद जताई जा रही है कि लंबे समय से चल रहे इस मामले में अब फैसला आ सकता है। दरअसल, बचाव पक्ष ने हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की कुछ नजीरें देने के लिए अर्जी दी थी। कोर्ट ने इसके लिए 16 जनवरी तक की मोहलत दी थी।
उस कांड से पूरे देश ने फूलन देवी को जाना था
39 साल पहले हुए उस नरसंहार की मुख्य आरोपी फूलन देवी है। उस घटना के बाद से ही फूलन देवी की पूरे देश ने खुंखार दस्यु सुंदरी के रुप में जाना था। हालांकि फूलन देवी अब इस दुनिया में नहीं है। उनकी हत्या की जा चुकी है। 2001 में शेर सिंह राणा नामक व्यक्ति ने दिल्ली में फूलन देवी की गोली मारकर हत्या कर दी थी।
आरोप है कि अपने साथ हुए गैंगरेप का बदला लेने के लिए फूलन देवी और उनके गैंग के अन्य लोगों ने 14 फरवरी 1981 को बेहमई में 20 लोगों को गोली मारकर उनकी हत्या कर दी थी। मारे गए लोगों में से 17 लोग ठाकुर बिरादरी से थे।
1983 में फूलन देवी ने किया था आत्मसमर्पण सपा की टिकट पर पहुंची थी लोकसभा
नरसंहार के दो साल बाद तक पुलिस फूलन देवी को गिरफ्तार नहीं कर पाई थी। 1983 में फूलन ने मध्य प्रदेश में आत्मसमर्पण कर दिया था। 1993 में फूलन देवी जेल से छूटकर आईं। उन्हें समाजवादी पार्टी (एसपी) ने लोकसभा का टिकट दिया और मीरजापुर से चुनाव जीतकर वह लोकसभा भी पहुंचीं। साल 2001 में शेर सिंह राणा ने फूलन देवी के दिल्ली स्थित आवास पर उनकी हत्या कर दी थी। 2011 में स्पेशल जज (डकैत प्रभावित क्षेत्र) की कोर्ट में राम सिंह, भीखा, पोसा, विश्वनाथ उर्फ पुतानी और श्यामबाबू के खिलाफ आरोप तय होने के बाद ट्रायल शुरू हुआ। राम सिंह की जेल में मौत हो गई। फिलहाल पोसा ही जेल में है।
पीड़ित पक्ष की महज 8 विधवाएं ही बची हैं जिंदा
बेहमई हत्याकांडकी मुख्य आरोपी फूलन देवी समेत कई आरोपियों की अलग-अलग कारणों से मौत हो चुकी है लेकिन अभी तक इस मामले में फैसला नहीं आ सका है। इस साल छह जनवरी को इस मामले में फैसला आना था लेकिन बचाव पक्ष की दलीलों के चलते 18 जनवरी की तारीख दे दी गई और मामला एक बार फिर से टल गया।
इस हत्याकांड में मारे गए लोगों की विधवाएं न्याय की बाट जोहती रहीं। इनमें से आज महज 8 ही जीवित रह गई हैं। ये भी किसी तरह जानवरों को पालकर अपना जीवन-यापन कर रही हैं। उनसे विधवा पेंशन का वादा किया गया था, लेकिन वह वादा ही रहा। इतना ही नहीं यह गांव आज भी विकास से कोसो दूर है। गांव में बिजली कुछ समय ही आती है, रात में गांव अंधेरे में डूब जाता है। नजदीकी बस स्टैंड यहां से 14 किलोमीटर दूर है। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तक जाने में करीब दो घंटे लगते हैं। 300 घरों के इस गांव में रह रही इन विधवाओं के पास गरीबी में जीने के अलावा कोई और रास्ता नहीं बचा।