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विदेश में लहराएगा भारतीय संस्कृति का पताका, 4 धाम के बाद कम्बोडिया में बनेगा पांचवा धाम

विदेश में लहराएगा भारतीय संस्कृति का पताका, 4 धाम के बाद कम्बोडिया में बनेगा पांचवा धाम

"भारत" यह नाम जुबान पर आते ही इसके लाखो वर्ष पुराने संस्कृति और अविस्मरणीय इतिहास जेहन में एक दृश्य की तरह घूमने लगते हैं. माना जाता है कि भारतीय संस्कृति हड़प्पा और मोहन जोदड़ो से भी लाखो वर्ष पुराणी है. लेकिन पश्चिमी इतिहासकारो की वजह से इसे दुनिया के सामने आने नहीं दिया गया. इसके बावजूद दुनिया के अलग-अलग राष्ट्रों में भारतीय संस्कृति और धर्म के हजारो-लाखो वर्ष पुराने सुबूत मिलते रहे हैं. ताजा मामला कम्बोडिया के सिमरिप शहर का है. कम्बोडिया के अंकोरवाट से 25 किलोमीटर की दुरी पर पहाड़ो के बीच बहती नदी में एक-दो नहीं बल्कि 1 हजार 8 शिवलिंग मिले हैं. जो हजारो वर्षो से यहां स्थापित है. वहीं  गुरुकुमारन स्वामी और कम्बोडिया सरकार की मदद से अब इस ऐतिहासिक जगह को एक शिव धाम के रूप में विकसित करने की तैयारी की जा रही है.

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धर्म गुरु गुरुकुमारन स्वामी ने कहा कि भारत एक ऐसा देश हैं जो प्राचीन काल से ही अपने धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताओं के चलते दुनिया में अपनी एक अलग पहचान रखता है. यह दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है जहां विविधता में एकता का अनूठा संगम देखने को मिलता है. आज के जिस आधुनिक भारत में हम रहते हैं. दरअसल अतीत में हमारा भारत इससे बिल्कुल अलग हुआ करता था. प्राचीन काल में हमारी संस्कृति जितनी विशाल हुआ करती थी उतना ही ज्यादा उसका विस्तार हुआ करता था. एक समय भारतीय संस्कृति पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, तिब्बत, श्रीलंका, म्यांमार, ईरान, कम्बोडिया, वियतनाम, मलेशिया, इंडोनेशिया, फिलीपींस और आफ्गानिस्तान तक फैली थी. लेकिन समय के साथ इन राष्ट्रों से भारतीय संस्कृति और सभ्यता नष्ट होती चली गई. इसके बावजूद आज भी इन देशों में भारतीय संस्कृति, धर्म और सभ्यता तीनों के पदचिन्ह मौजूद है, कम्बोडिया में सिमरिप शहर एक ऐसा ही शहर है जहा हिन्दू धर्म, संस्कृति और सभ्यता एक इमारत की शक्ल में आज भी आसमान छू रही है. यहाँ के आकाश, धरती, नदिया, पहाड़, जंगल सभी जगह भारतीय संस्कृति के पदचिन्ह मौजूद है. खास कर अंकोरवाट कम्बोडिया में एक मंदिर परिसर दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक स्मारक है. 162.6 हेक्टेयर में फैला यह खमेर साम्राज्य द्वारा बनाया गया भगवान विष्णु का विशाल मंदिर है. जो धीरे-धीरे 12 वी शताब्दी के अंत में बौद्ध मंदिर के रूप में परिवर्तित हो गया. यह अंकोर मंदिर कभी यशोधरपुर के नाम से जाना जाता था. इसका निर्माण सम्राट सूर्यवर्मन द्वितीय के शासनकाल में हुआ. लेकिन इसके पहले यहाँ के शासक भगवन शिव के उपासक माने जाते थे. वो प्रायः शिवालयों का निर्माण करवाया करते थे. मीकांग नदी के किनारे सिमरिप शहर में सैकड़ो मिल में फैला यह विश्व का सबसे बड़ा हिन्दू मंदिर शिव और उसके उपासको की  स्मृतियां और उसके सुबूत सहेजे हुए हैं.

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इंद्रेश कुमार आरएसएस नेता ने कहा कि इस जगह लगभग 25 किलोमीटर दूर पहाड़ो और प्राकृतिक वादियों के बीच बहती यह पवित्र नदी एक ऐसी ही इतिहास को अपने अंदर सहेजे हुए है जो हजारो वर्ष पुराने शिव और शिव भक्तो के यहाँ होने और उन्हें आपस में जोड़े रखने का सुबूत देती है. यहाँ मौजूद 1 हजार 8 शिवलिंगो का जलाभिषेक हर पल यह पावन नदी करती रहती है. इस नदी के बीचो-बीच स्थापित इन शिवलिंगो को कब और किसने यहाँ स्थापित किया इसका उल्लेख तो कही नहीं मिलता, लेकिन हां अनादि शिव की तरह उनका अस्तित्व भी इस पृथ्वी पर अनादि काल से मौजूद है इसका प्रमाण यहाँ जरूर मिल जाता है. इनकी माने तो इस दिशा में कम्बोडिया की सरकार से लगातार बातचीत का दौर जारी है. यदि यहाँ की सरकार के साथ सहमति बनी तो यह जगह एक पांचवे धाम के रूप में विकसित किया जाएग. दूसरी गंगा के नाम से प्रसिद्ध इस नदी के किनारे 2 सौ फिट ऊँची शिव प्रतिमा और 75 फिट ऊँची भगवान गणेश और भगवान बुद्ध की प्रतिमा लगाने की भी योजना है,  ताकि यह स्थल सिर्फ हिन्दुओं के लिए ही नहीं, बल्कि बौद्ध धर्म को मानने वालो के लिए भी एक पवित्र भूमि के रूप में जाना जाएगा. 

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कम्बोडिया के सिमरिप की आबोहवा में एक बार पुनः पंचाक्षरी मंत्री "ॐ नमः शिवाय" गूंजने लगा है. यहाँ हर साल आने वाले हजारो विदेशी सैलानी और यहाँ के धर्म गुरु-,अब इस जगह को पुनः शिव धाम के रूप में विकसित करने की दिशा में कार्य शुरू कर चुके है. देश विदेश के नामचित ग्रामों के साथ इनके अलावा भारत के झारखंड से पर्यटन मंत्री अमर कुमार बाउरी और मीडिया प्रभारी प्रशांत मल्लिक ने भी हर संभवता मदद करने का ऐलान किया है. 


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