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एनजीटी के बाद राज्य सरकार को एक और बड़ी जीत, नई बालू नीति को लेकर दायर सभी याचिका को SC ने किया खारिज

एनजीटी के बाद राज्य सरकार को एक और बड़ी जीत, नई बालू नीति को लेकर दायर सभी याचिका को SC ने किया खारिज

NEWS4NATION DESK : नई बालू नीति और खनन नियमावली मामले में राज्य सरकार को एक और बड़ी जीत हुई है। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार की नई बालू नीति व छोटे बालू घाटों की बंदोबस्ती के मामले में दायर सभी याचिकाएं शुक्रवार को सुनवाई के बाद खारिज कर दीं। 

सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से राज्य सरकार की नई बालू नीति व नदियों को छोटे-छोटे घाटों में बांटकर बालू की बंदोबस्ती करने का रास्ता साफ हो गया है। इस फैसले से सभी जिलों में बालू घाटों की बंदोबस्ती की प्रक्रिया आसान हो जाएगी। बंदोबस्ती में भाग लेने नए आवेदक सामने आ सकेंगे। अगले पांच साल के लिए बालू खनन के लिए पट्टे दिए जा सकेंगे।

नई खनन नीति व नियमावली

बता दें सरकार ने गत वर्ष अगस्त में नई खनन नीति और सितंबर माह में नियमावली को मंजूरी दी थी। इसमें खास बात थी- पूरे राज्य में सभी बड़े-बड़े बालू घाटों को छोटे-छोटे घाटों में बदलना। पहले बड़े-बड़े बालू घाटों की बंदोबस्ती होती थी, जिससे कुछ बड़ी कंपनियां और एजेंसियां ही सारे टेंडर हासिल करने में सफल हो जाती थीं। इससे चंद बंदोबस्तधारी और ट्रांसपोर्टरों का दबदबा रहता था। उनकी मिलीभगत से बालू खनन में मनमानी से लेकर उसे ऊंची कीमत पर बेचने का धंधा होता था। नई नीति से उनका एकाधिकार टूट रहा था और वे अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे थे।

इधर सुप्रीम कोर्ट में याचिका खारिज होने के बाद बिहार के खान एवं भूतत्व मंत्री ब्रज किशोर विंद ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय में दायर याचिकाओं का खारिज होना सरकार और जनभावनाओं की जीत है। यह फैसला सरकार के पक्ष में आया है। यह सरकार की नीतियों की जीत है। 

उन्होंने कहा कि सरकार शुरू से बालू के कारोबार में एकाधिकार को खत्म करना चाहती है। कोर्ट के फैसले के बाद राज्यहित व जनहित में काम होगा। अफसर पूरी दक्षता से काम करेंगे। सरकार के राजस्व में काफी वृद्धि होगी।

सरकार की है यह दूसरी बड़ी जीत

गौरतरलब है कि नई बालू नीति और खनन नियमावली के खिलाफ पुराने बंदोबस्तधारी गत वर्ष सितंबर में ही एनजीटी में गए थे। याचिका में प्रावधान संख्या पांच के क्लॉज 1 और 2 को चैलेंज किया गया था। इसमें मुख्यत: छोटे बालू घाटों के निर्धारण को गलत व पर्यावरणीय नियमों के प्रतिकूल होने का आरोप लगाया गया था। एनजीटी ने पूरी सुनवाई के बाद सरकार के पक्ष में फैसला दिया। इसके बाद पुराने कारोबारियों ने सर्वोच्च न्यायालय की शरण ली।


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