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गेहूं खरीदी में सरकारी व्यवस्था पर भारी पड़े कंपनियों के एजेंट, किसानों से सीधे खरीद लिया अनाज, लक्ष्य तक पहुंचना नामुमकिन

गेहूं खरीदी में सरकारी व्यवस्था पर भारी पड़े कंपनियों के एजेंट, किसानों से सीधे खरीद लिया अनाज, लक्ष्य तक पहुंचना नामुमकिन

PATNA : देश में गेहूं के निर्यात पर केंद्र सरकार ने रोक लगा दी है। ताकि यहां के लोगों के लिए पर्याप्त अनाज उपलब्ध हो सके। लेकिन इस बीच किसानों से गेहूं खरीदी में सरकारी व्यवस्था पूरी तरह से फेल हो गई है। देश के प्रमुख गेहूं उत्पादक राज्यों से कंपनियों के एजेंट ने सीधे किसानो से महंगे कीमत पर सारा अनाज खरीद लिया। वहीं सरकार का समर्थन मूल्य कम होने के कारण किसानों ने भी प्राइवेट कंपनियों को ही तरजीह दी है
 आंकड़े बताते हैं कहानी

इस साल बिहार में 10 लाख टन गेहूं खरीदी का लक्ष्य रखा गया था। जो कि पिछले साल की तुलना में दोगुना था। पिछले साल पांच लाख टन के लक्ष्य की तुलना में सरकार ने किसानों 4.5 लाख टन गेहूं की खरीदी की थी। लेकिन इस साल स्थिति बिल्कुल बदल गई है। इस साल दस लाख टन के लक्ष्य में सिर्फ 3521 टन गेहूं की खरीद सरकार कर सकी है। जहां पिछले साल 98 हजार किसानों ने अपनी फसल सरकार को बेची थी, वहीं इस साल अब तक सिर्फ 642 किसान ही सरकार के पास पहुंचे थे। सरकार और किसानों की दूरी बड़ी चिंता का विषय है। सरकारी विभागों की नाकामी के कारण इस बार अधिकांश सरकारी गोदाम खाली रह गए हैं।

बिहार में कंपनियों ने डाला डेरा

देश में गेहूं की कमी के कारण दूसरे राज्यों में संचालित कंपनियों ने बिहार का रूख कर लिया। वह न सिर्फ किसानों से सीधे खेत से ही अनाज खरीद रहे हैं, बल्कि सरकार से अधिक कीमत दे रहे हैं। साथ ही भुगतान में किसी प्रकार की देरी नहीं हो रही है। कंपनियों द्वारा किसानों को   इस साल 2000-2200 रुपए प्रति क्विंटल की दर से भुगतान किया है। जबकि सरकार सिर्फ 2015 रुपए दे रही है।

बिहार के कई जिलों की हालत खराब

राज्य में इस साल लगभग 66 लाख टन गेहूं का उत्पादन हुआ है। जो कि पिछले साल की तुलना में तीन लाख टन अधिक है। ऐसे में सरकार को भी उम्मीद थी कि इस बार गेहूं खरीदी में नया रिकॉर्ड बन सकता है। लेकिन आंकड़े कुछ और कहाना बयां कर रहे है। लक्ष्य की तुलना में अब तक चार हजार टन गेहूं की खरीदी नहीं हो सकी है। बिहार के 26 जिले ऐसे हैं, जहां सरकारी केंद्रों पर गेहूं बेचनेवाले किसानों की संख्या दो अंक में भी नहीं पहुंच सकी है। जबकि बांका और सारण में यह संख्या जीरो है। आठ जिले ऐसे हैं, जहां सिर्फ एक किसान ही सरकारी केंद्र तक पहुंचा। 

क्यों फेल हुआ सरकार तंत्र

गेहूं खरीदी में अब तक सरकारी व्यवस्था पुराने तंत्र पर ही चल रहा है। जिसमें किसान अपनी फसल लेकर केंद्र तक पहुंचते हैं, जिसके बाद वह उसे बेच पाते हैं। केंद्र तक गेहूं पहुंचाने का खर्च किसानों को उठाना पड़ता है। जबकि प्राइवेट कंपनियों ने सिर्फ खेत से ही फसल का उठाव किया, वहीं कई बड़ी कंपनियों ने फसल काटने का पैसा भी दिया है। ऐसे में किसानों को फायदा होने पर सरकार खुश हो सकती है। लेकिन यह चिंता की भी बात है।

कंपनियों पर होना पड़ेगा निर्भर

गेहूं खरीदी में अगर लक्ष्य तक नहीं पहुंचते हैं तो यह सरकार के लिए बड़ी परेशानी बन सकती है। अगर कोई संकट की स्थिति आती है, तो सरकार को इन कंपनियों की तरफ देखना होगा, जिसके लिए उन्हें बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है।



 





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