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आइसा ने किया विरोध मार्च का आयोजन, सीबीएसई परीक्षा में शुल्क वृद्धि वापस लेने की मांग

आइसा ने किया विरोध मार्च का आयोजन, सीबीएसई परीक्षा में शुल्क वृद्धि वापस लेने की मांग

BETIAH : बेतिया में आज सीबीएसई परीक्षा में की गई शुल्क वृद्धि वापस लेने की मांग को लेकर आइसा की ओर से विरोध मार्च का आयोजन किया गया. इस मौके पर जनता सिनेमा चौक पर सभा को संबोधित करते हुए आइसा राज्य परिषद के सदस्य मंतोष पासवान ने कहा कि मोदी सरकार शिक्षा से आम छात्रों  खासकर दलित, आदिवासी कमजोर समुदाय से आने वाले छात्रों को बेदखल करने की साजिश कर रही है. 

एक ओर सरकार दलित हितैषी होने का नौटंकी कर रही है वहीं दूसरी ओर दलित आदिवासी छात्रों के सीबीएसई परीक्षा शुल्क में 24 गुणा की अप्रत्याशित वृद्धि करती है. सरकार जान बूझकर शिक्षा को महंगी करने के साथ ही निजीकरण एवं बाजारीकरण कर रही है. वहीँ इंकलाबी नौजवान सभा के जिला संयोजक सुरेन्द्र चौधरी ने सभा को संबोधित करते हुए सबसे पहले सीबीएसई की परीक्षा शुल्क में की गई भारी फीस वृद्धि की कड़ी निंदा की इसे अविलंब वापस लेने की मांग की. उन्होंने कहा कि एससी-एसटी छात्रों की फीस में 24 गुना और सामान्य छात्रों की परीक्षा फीस में 2 गुने की भारी वृद्धि करके मोदी सरकार ने यह साबित कर दिया है कि वह शिक्षा और रोजगार का पूरी तरह निजीकरण कर देना चाहती है. 

खासकर दलित-कमजोर -ओबीसी- आदिवासी समुदाय से आने वाले छात्रों को निशाना बनाया जा रहा है. दलित हितैषी का दावा करने वाली मोदी सरकार दरअसल कमजोर वर्ग के छात्रों को शिक्षा के अधिकार से पूरी तरह वंचित करने की साजिश रच रही है. जिसके खिलाफ उन्होंने आंदोलन तेज करने की अपील किया. इनके अलावा आइसा के पूर्व  नेता सह भाकपा माले के वरिष्ठ नेता सुनील कुमार राव ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि मोदी सरकार विकास की खूब चर्चा कर रही है. 

उन्होंने कहा की सरकार सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास का नारा लगा रही है. लेकिन कश्मीर में अलोकतांत्रिक तरीके से अनुच्छेद 370 और 35 (ए) को समाप्त कर दिया गया. उनहोंने कहा कि इस कदम से जम्मू-कश्मीर में अलगाव की मानसिकता को बढ़ावा मिलेगा. इसे खत्म कर भाजपा ने उस पुल को नष्ट कर दिया है, जो शेष भारत से कश्मीर को जोड़ता था. विडंवना यह कि मोदी सरकार विकास के नाम पर जम्मू-कश्मीर की स्वायत्ता नष्ट कर रही है. लेकिन मानव सूचकांक के कई आंकड़ें शेष भारत की तुलना में वहां बेहतर हैं. इसे खत्म करना ठीक वैसा ही है, जैसा कि सामाजिक समानता के नाम पर आरक्षण को खत्म करने की कोशिश करना. 370 के संदर्भ में 2017 में उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि कि 370 अस्थायी नहीं बल्कि एक स्थायी प्रावधान है. इसलिए अस्थायी प्रावधान कहकर इसे ऐसे ही खारिज नहीं किया जा सकता है.

बेतिया से आशीष कुमार की रिपोर्ट 




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