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स्मार्ट 'सिम्बल मैनेजर' निकले अखिलेश, जिसे चाहा उसे दिलाया टिकट

स्मार्ट 'सिम्बल मैनेजर' निकले अखिलेश, जिसे चाहा उसे दिलाया टिकट

PATNA : लोकसभा चुनाव के दौरान सेटिंग-गेटिंग का खेल बदस्तूर जारी है। बिहार की 40 लोकसभा सीटों पर उम्मीदवारी के लिए दोनों गठबंधनों के घटक दलों ने खूब रस्साकस्सी की है। यह अलग बात है कि किसी को सिम्बल मिलने के बाद खुशी हासिल हुई तो कोई खाली हाथ मलता रह गया। चुनावी सिम्बल के लिए लायजनिंग का खेल कई माह पहले से चल रहा था। सिम्बल का हर दावेदार किसी न किसी के कंधे पर सवार होकर चुनावी धारा को पार करने के जुगाड़ में था। 

बिहार की एक-दो सीटों को छोड़ दें बाकी सभी सीटों पर उम्मीदवारों की तस्वीर साफ हो चुकी है। बिहार की सियासत के बड़े चेहरों के बीच मौजूदा चुनाव में कांग्रेस सांसद अखिलेश प्रसाद सिंह का चेहरा स्मार्ट 'सिम्बल मैनेजर' के तौर पर उभरा है। बिहार में कांग्रेस के चुनाव अभियान समिति की कमान संभाल रहे अखिलेश सिंह ने जिन चेहरों को उम्मीदवार बनाना चाहा उन्हें सिम्बल दिलाकर ही दम लिया। 

दिल्ली दरबार में मजबूत पकड़ रखने वाले अखिलेश ने लोकसभा के सबसे पहला दांव मुंगेर सीट पर अनंत सिंह के लिए लगाया। महागठबंधन में भारी विरोध के बावजूद अखिलेश सिंह ने ना केवल अनंत सिंह को कांग्रेस की जन चेतना रैली में लॉन्च कराया बल्कि पुराने दोस्त रहे ललन सिंह के खिलाफ अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी को कांग्रेस का सिम्बल भी दिला दिया। अखिलेश का स्मार्ट मैनेजमेंट यहीं खत्म नहीं हुआ। सियासी गलियारे में लगातार इस बात की चर्चा है कि पूर्वी चंपारण से सांसद रह चुकने के बावजूद अखिलेश सिंह ने यह सीट तालमेल के दौरान पहले रालोसपा के कोटे में जाने दी और फिर बाद में अपने बेटे आकाश सिंह को रालोसपा का सिम्बल दिलवा दिया। बिहार की सियासत में अखिलेश सिंह के 'सिम्बल मैनेजमेंट' स्किल की खूब चर्चा है। बताया जा रहा है कि अखिलेश सिंह ने मोतिहारी की सीट रालोसपा के पाले में जाने के बाद उपेंद्र कुशवाहा को अपने इसी मैनेजमेंट स्किल के जरिये शीशे में उतार लिया। मुंगेर और मोतिहारी के चुनाव नतीजे चाहे जो भी हों लेकिन अखिलेश सिंह का जलवा सिम्बल बंटवारे में जरूर दिख है।

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