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पार्टी में प्रतिष्ठा-सम्मान, सांसद और मंत्री का पद सब छीन गया, अब शुरू हुआ जदयू के रामचंद्र का राजनीतिक वनवास

पार्टी में प्रतिष्ठा-सम्मान, सांसद और मंत्री का पद सब छीन गया, अब शुरू हुआ जदयू के रामचंद्र का राजनीतिक वनवास

PATNA : एक साल पहले तक उनके पास  सबकुछ था, लेकिन  फिर वक्त ने ऐसा करवट लिया कि जिस पार्टी को खड़ा करने में बड़ी भूमिका निभाई, उसी से किनारे कर दिए गए, सांसद के साथ केंद्रीय मंत्री  होने  का पद भी कल छीन गया। अब पार्टी में न तो उनके पास कोई जिम्मेदारी है और न ही वह सम्मान, जो अब तक नजर आता था। यह कहानी है बिहार के कद्दावर नेताओं में शामिल आरसीपी सिंह(राजचंद्र प्रसाद सिंह) की। कहा जाए कि अब इस रामचंद्र को भी वनवास मिल गया है। हालांकि यह वनवास राजनीतिक है।

केंद्र में मंत्री बनने से पहले तक जदयू में नंबर दो की हैसियत रखने वाले आरसीपी सिंह की राजनीति में यह दुर्गति होगी, इसका अनुमान भी शायद किसी ने नहीं लगाया होगा। वह न तो केन्द्र में मंत्री रह पाए और न पार्टी में अपनी जगह बचा पाए। आज उनके पास न सत्ता रही न पार्टी में साख। केंद्र में बतौर मंत्री उनका कार्यकाल सिर्फ 12 महीने का रहा।

मंत्री बनने के बाद से ही शुरू हुआ बुरा दौर

आरसीपी सिंह ने पिछले साल केंद्रीय मंत्री पद की जिम्मेदारी संभाली थी। केंद्र में मंत्री बननेवाले वह इकलौते शख्स थे। कहा जाता है कि जदयू के सर्वमान्य नेता मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सहमति से उन्होंने केंद्र में मंत्री पद की शपथ ली। जिससे नीतीश कुमार नाराज थे। इसी नाराजगी के कारण आरसीपी के बुरे दिन शुरू हो गए। हालांकि खुद नीतीश कुमार ने कभी भी खुलकर अपनी नाराजगी नहीं दिखाई। 

लेकिन ललन सिंह के पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद से जदयू में उनकी जगह सिकुड़ती गई। पार्टी ने अनेक ऐसे सख्त कदम उठाए, जिसका लब्बोलुआब यही था कि आरसीपी से निकटता रखने वालों के लिए भी जदयू में जगह नहीं है।

राज्य सभा चुनाव ने कर दिया सब साफ

आरसीपी को बड़ा झटका तब लगा जब राज्यसभा के लिए उन्हें फिर से टिकट नहीं दिया गया। हालांकि उन्हें उम्मीद थी कि कि जदयू नेतृत्व उन्हें तीसरी बार राज्यसभा जाने का मौका अवश्य देगा। राज्यसभा चुनाव के दौरान वह पटना में जमे रहे और पार्टी के फैसले का इंतजार करते रहे। अंतत: उन्हें निराशा हाथ लगी। पार्टी नेतृत्व ने फैसला लेने से पहले उन्हें विश्वास में लेने की भी आवश्यकता नहीं समझी।

क्या बंद हो गए सारे रास्ते

आरसीपी सिंह ने कभी पार्टी या नेतृत्व के खिलाफ न प्रत्यक्ष रूप से कोई काम किया और न कभी कोई बयान ही दिया। सियासत में बने रहने के लिए आरसीपी सिंह के सामने अब दो ही विकल्प बचे हैं। पहला तो यह कि वह जदयू में फिर से अपनी जगह बनाने के लिए नेतृत्व का भरोसा जीतें या फिर कोई अलग राह पकड़ें। पहला विकल्प उनके लिए आसान हो सकता है, क्योंकि अभी तक सार्वजनिक रूप से उन्होंने पार्टी के खिलाफ न तो कोई काम किया है और ऐसी न कोई प्रतिक्रिया कभी दी। दूसरा कोई भी रास्ता भाजपा की हरी झंडी के बगैर उनके लिए खुलता फिलहाल नजर नहीं आ रहा है।

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