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प्राकृतिक सौन्दर्य के साथ धार्मिक महत्व भी है लखीसराय के श्रृंगी ऋषि स्थान का, रामायण में भी है चर्चा, जानिये बिहार पूर्व डीजीपी से

प्राकृतिक सौन्दर्य के साथ धार्मिक महत्व भी है लखीसराय के श्रृंगी ऋषि स्थान का, रामायण में भी है चर्चा, जानिये बिहार पूर्व डीजीपी से

लखीसराय के सूर्यगढ़ा प्रखंड में श्रृंगी ऋषि स्थान है. क्या है इसका धार्मिक महत्व और कैसे इसका नाम श्रृंगी ऋषि पड़ा, पढ़िये बिहार के पूर्व पुलिस महानिदेशक के.एस. द्विवेदी का यह विस्तृत लेख...

Desk. श्रृंगी ऋषि का आश्रम बिहार प्रांत के लखीसराय जिले के सूर्यगढ़ा प्रखंड में स्थित है. जिला मुख्यालय से इस स्थान की दूरी लगभग 22 किलोमीटर है. पठारी क्षेत्र वन, वृक्ष, जलकुण्ड, ठण्डे और गर्म पानी के झरनों से सुशोभित यह स्थान अत्यंत सुरम्य एवं प्राकृतिक सौन्दर्य से सुसज्जित है. स्थानीय लोग इस स्थान को ही श्रृंगी ऋषि कहने लगे हैं.

वस्तुतः श्रृंगी ऋषि एक पौराणिक ऋषि हैं, जिनका वर्णन रामायण, महाभारत और स्कन्दपुराण में आता है. ऋषि कश्यप के पौत्र श्रृंगी ऋषि पुत्रकामेष्टि यज्ञ में अत्यंत पारंगत और प्रसिद्ध थे. इनका विवाह अयोध्या के राजा दशरथ की पुत्री अर्थात् राम की बहन शान्ता से हुआ था. जब काफी समय तक राजा दशरथ को पुत्र प्राप्त नहीं हुआ तो चिन्तित होकर उन्होंने गुरु वशिष्ठ से इस विषय में जिज्ञासा की. गुरु वशिष्ठ ने राजा दशरथ को पुत्रकामेष्टि यज्ञ कराने का सुझाव दिया.

दशरथ ने गुरु वशिष्ठ जी से यज्ञ करने का आग्रह किया. किंतु गुरु वशिष्ठ ने बताया कि वे नहीं श्रृंगी ऋषि ही इस यज्ञ को सम्पन्न कराने के योग्य हैं. तब राजा दशरथ ने सम्मान पूर्वक श्रृंगी ऋषि को बुलाया और पुत्रकामेष्ठि यज्ञ सम्पन्न कराया. राजा दशरथ को राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न चार कीर्तिवान पुत्र प्राप्त हुए.

अपने विवाह के उपरान्त श्रृंगी ऋषि ने अंग देश के राजा रोमपाद के आग्रह पर इस स्थान को अपना निवास स्थल बनाया था. लोक धारणा है कि यदि सन्तान के इच्छुक दम्पति श्रृंगी ऋषि आश्रम पर श्रद्धापूर्वक कुंड-स्नान और संकल्प सहित धारणा करें तो उनको सन्तान प्राप्ति अवश्य होती है. आधुनिकता के प्रभाव एवं कुछ समय तक आश्रम के क्षेत्र के उग्रवाद प्रभावित हो जाने के कारण यह धारणा न्यूनाधिक विस्मृत अवश्य हुयी है, किन्तु जन-आस्था की गहराइयों में यथावत विद्यमान है.

स्थानिक सुरम्यता के कारण सामान्य जन श्रृंगी ऋषि का पर्यटन स्थल के रूप में खूब आनन्द उठा रहे हैं. परम्परा के अनुसार स्थानीय ग्रामीण गंभीर बीमारियों से मुक्ति पाने के लिए श्रृंगी ऋषि के जलकुंडों में स्नान करते हैं और पशुधन की वृद्धि के लिए वृक्षमूल पर दूध चढ़ाते हैं. इस सबके बीच अप्रकट रूप से आस्थावान  ऋषि श्रृंगी की पुत्र प्रदायिनी कृपा से फलीभूत हो रहे हैं.

लेखक- के.एस. द्विवेदी,

पूर्व पुलिस महानिदेशक, बिहार


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