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बाबा विश्वनाथ की नगरी में चिता की भस्म के साथ होली शुरु

बाबा विश्वनाथ की नगरी में चिता की भस्म के साथ होली शुरु

DESK: होली रंगों का त्योहार है लेकिन भारत में एक जगह जहां होली चिता के भस्म के साथ खेली जाती है जी हां हम काशी की बात कर रहें हैं. काशीवासी अपने ईष्ट देवों के देव बाबा भोले के साथ महाश्मसान पर चिता भस्म के साथ होली खेल कर होली की शुभ आरम्भ करते हैं. आप को बता दें मोक्षदायिनी काशी नगरी के महाश्मशान हरिश्चंद्र घाट पर कभी चिता की आग ठंडी नहीं पड़ती. चौबीस घंटे चिताओं के जलने और शवयात्राओं के आने का सिलसिला चलता ही रहता है. चारों ओर पसरे मातम के बीच वर्ष में एक दिन ऐसा आता है जब महाश्मशान पर होली खेली जाती है. वे भी रंगों के अलावा चिता के भस्म से होली. रंगभरी एकादशी पर महाश्मशान में खेली गई इस अनूठी होली के पीछे एक प्राचीन मान्यता है. 

कहा जाता है कि जब रंगभरी एकादशी के दिन भगवान विश्वनाथ मां पार्वती का गौना कराकर काशी पहुंचे तो उन्होंने अपने गणों के साथ होली खेली थी. लेकिन वो अपने प्रिय श्मशान पर बसने वाले भूत, प्रेत, पिशाच और अघोरी के साथ होली नहीं खेल पाए थे. इसीलिए रंगभरी एकादशी से विश्वनाथ इनके साथ चिता-भस्म की होली खेलने महाश्मशान पर आते हैं. इस दिन से पंचदिवसीय होली पर्व शुरू हो जाता है. इसकी शुरुआत हरिश्चंद्र घाट पर महाश्मशान नाथ की आरती से होती है. इसके पहले एक भव्य शोभायात्रा भी निकाली जाती है.

इस अनूठे आयोजन को कराने वाले डोम राजा परिवार के बहादुर चौधरी ने बताया कि यह सदियों पुरानी परंपरा चली आ रही है. मान्यता है कि बाबा मां पार्वती का गौना कराने के बाद भूत प्रेत और अपने गणों के साथ मसान में होली खेलने आते हैं और इसी के बाद से होली की शुरुआत हो जाती है. बाबा की शोभायात्रा कीनाराम आश्रम से निकलकर महाश्मशान हरिश्चंद्र घाट तक आती है. इसके बाद महाश्मशान नाथ की पूजा और आरती होती है. इसके बाद बाबा अपने गणों के साथ चिताभस्म की होली खेलते हैं. इस मौके पर मौजूद बीएचयू के पूर्व छात्र डॉक्टर मनीष मिश्रा ने चिता भस्म की होली की पौराणिकता के बारे में बताया कि जब दक्ष के यज्ञ में सती जी ने अपने प्राणों को त्याग दिया था तभी से भोलेनाथ और देवगढ़ खुश नहीं थे. कामदेव के भस्म होने के बाद माता पार्वती का विवाह शिव जी के साथ हुआ. मान्यता अनुसार रंगभरी एकादशी के दिन ही भोलेनाथ माता पार्वती का गौना कराकर काशी ले आए जिससे शिवजी के गणों को काफी खुशी हुई और गण मानव भस्म से उमंग मनाते है यहीं से ये परंपरा आई है.     


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