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बालू माफिया के आगे सुशासन का सरेंडर, 31 मार्च तक बढ़ाई गयी लीज की अवधि से साबित हो गया खनन में भ्रष्टाचार का खेल

बालू माफिया के आगे सुशासन का सरेंडर, 31 मार्च तक बढ़ाई गयी लीज की अवधि से साबित हो गया खनन में भ्रष्टाचार का खेल

PATNA : मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुआई में हुई कैबिनेट की बैठक में पुराने बालू खनन लीज़ को आगामी 31 मार्च 2021 तक बढाने का निर्णय सरकार की गले की फांस बनता दिख रहा है. इस निर्णय से 2015 से राज्य में बालू खनन कर रही कम्पनियां खुश हैं. वहीं नये टेंडर प्रक्रिया में साल भर से भी अधिक समय से अपना लाखो‌‌- करोडो रुपया सरकारी खजाने में जमा कर खनन का अधिकार पाने की बाट जोहने वाले हजारों नये लोग फिर से ठगा महसूस कर रहे हैं.

पट्टे की अवधि समाप्त होने के  बाद भी लगातार होता रहा है बालू खनन

 ध्यान रहे कि पुरानी खनन व्यवस्था दिसम्बर 2019 में ही खत्म हो जानी थी. लेकिन तब से कई बार लीज को बढाया जाता रहा है. वर्तमान लीज 31 अक्टूबर 2020 को खत्म होनी थी. जिसे चुनाव पूर्व बढाकर 31 दिसम्बर 2020 कर दिया गया  था. अब सरकार ने पुन: इसे आगामी 31 मार्च 2021 तक बढा दिया है.  सरकार ने कहा है कि नये लीज को 50 % अधिक राशि बढाकर की गयी है. अब इस फैसले से प्रदेश में नये वर्ष में बालू और कई निर्माण सम्बंधी सामग्री के महंगा होने की सम्भावना है. 

 नये टेंडर में पट्टा हासिल करने वालों में व्यापक रोष

हमारे संवाददाता ने इस निर्णय के आलोक में हो रही विरोध का पक्ष जानने की कोशिश की. इस संदर्भ में बात करते हुए नये टेंडर के अंतर्गत भोजपुर में एक घाट चलाने का अधिकार पाये बिहटा निवासी रोहित कुमार ने सरकार पर गम्भीर आरोप लगाया. इनका आरोप है कि सरकार में शामिल कद्दावर लोग और बालू माफिया की आपसी मिलीभगत का यह खेल है. रोहित का कहना है कि इन्होने अपनी जमीन और घर के गहने बेच पैसे लगाये थे. आज इनका परिवार सड्क पर आ चुका है. और सरकार ने जल्द न्याय नहीं किया तो वो और उन जैसे सैकडों युवा मुख्यमंत्री आवास के सामने आत्महत्या करने को मजबूर होंगे. एक अन्य टेंडर पाये गया जिले के रहने वाले हरेंद्र कुमार ने मुख्यमंत्री से सवाल किया कि जब एनजीटी को पुराने खनन पट्टे को बार बार बढाये जाने से दिक्कत नही है तो कानूनी तौर पर आवंटित नये पट्टों से क्या परेशानी है? भोजपुर में ही नया पट्टा हासिल किये प्रकाशचंद्र ने आरोप लगाया कि बालू माफिया के लोग सरकार में और अधिकारियों के बीच मौजूद हैं, जो उनके अनुसार डीएसआर को तकनीकी तौर पर कमजोर कर इस खेल को खेल रहे हैं. इन्होने सबूत के तौर पर कहा कि दो दिन पूर्व ही एक प्रतिनिधिमंडल सेक्रेट्री मैडम से इस सिलसिले में मिला था. जहाँ हंगामा होते देख उन्होने पुराने पट्टे को आगे नहीं बढाने का आश्वासन भी दिया था.

 सरकार के फैसले से विभिन्न एक्स्पर्ट भी नाखुश, फैसले के खिलाफ कोर्ट जाने की तैयारी

वर्तमान स्थिति पर हमारे संवाददाता ने अधिकारियों का भी पक्ष जानने का प्रयास किया. लेकिन कोई भी कुछ बोलने को तैयार नही हुआ. उधर कई एक्स्पर्ट ने भी सरकार की मंशा पर गम्भीर सवाल उठाये हैं. पर्यावरण मामले के जानकार पी.के. सुंदरम का मानना है कि सरकार की ओर से घोर लापरवाही का नतीजा है कि पुराने डीएसआर के आधार पर मनमाने तरीके से नये टेंडर प्रक्रिया को अंजाम दिया गया. वहीं पटना उच्च न्यायलय के वकील और मानवाधिकार कार्यकर्ता धनंजय कुमार ने कहा कि सरकार द्वारा हजारों लोगों का पैसा इस तरह रखना संवैधानिक तौर पर भी गलत है.उन्होनें कहा कि नये टेंडर को रोक कर पुराने टेंडर को बार-बार आगे बढाना सरकार द्वारा वैधानिक शक्तियों का गलत इस्तेमाल है. उन्होने सवाल किया कि जिस नये टेंडर प्रक्रिया से आपने कई गुना अधिक रेव्न्यु प्राप्त किया. उसमें शामिल आम जनता का इसमें क्या दोष? इन्होनें नये टेंडर जितने वालों के पक्ष में और सरकार और बालू माफिया के खिलाफ कोर्ट जाने की भी घोषणा की.

आरजेडी और कांग्रेस का सरकार के फैसले के खिलाफ हल्ला बोल

ऐसा लगता है कि अब यह मसला राजनीतिक रंग भी लेता जा रहा है. आरजेडी और कांग्रेस इस मामले में सरकार को घेरने की तैयारी में है. कांग्रेस नेता शशिरंजन सिंह ने कहा कि यह वही सरकार है जिसने बालू माफिया –बालू माफिया का डंका पीट 2019 में कथित क्रांतिकारी खनन ऐक्ट लाने का दम्भ भरा था. लेकिन सच्चाई है कि जेडीयू और भाजपा के लोग कम्बल ओढ कर घी पीने का काम कर रहे हैं. उन्होने कहा कि कैसी राक्षसी प्रवृति वाली सरकार है कि आम जनता का पैसा खाकर माफिया का साथ दे रही है?

 अब वर्तमान सरकार की नाकामी कहें या सरकारी तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार का खेल,प्रदेश में अवैध बालू खनन का अवैध कारोबार को रोकने में अभी असफलता ही मिली है. 2019 में जिस गाजे‌‌‌‌-बाजे के साथ नीतीश सरकार ने नये खनन नीति को लागू कर भ्रष्टाचार मुक्त खनन की बात की थी. आज वह नीति ही भ्रष्टाचार की भेंट चढ्ता दिख रहा है. जबकि बालू माफिया के खेल में अफसर व सफेदपोश मालामाल होते रहे हैं. इधर नये टेंडर प्रक्रिया में जिन्होने अपना सबकुछ बेचकर पट्टा हासिल किया है. वे सरकार की नाकामी और बालू माफिया और अफसरों के खेल को महज दर्शक बन देखने को मजबूर हैं.

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