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बंगाल चुनाव : कोलकाता की पहचान हाथ रिक्शा वालों की आवाज़ चुनावी शोर में गुम,आज तक क्या किया ममता ने

बंगाल चुनाव : कोलकाता की पहचान हाथ रिक्शा वालों की आवाज़ चुनावी शोर में गुम,आज तक क्या किया ममता ने

कोलकाता :आज का कोलकाता आधुनिक भारत के इतिहास की कई गाथाएँ अपने आप में समेटे हुए है. शहर को जहाँ भारत के शैक्षिक एवं सांस्कृतिक परिवर्तनों के प्रारम्भिक केन्द्र बिन्दु के रूप में पहचान मिली है वहीं दूसरी ओर इसे भारत में साम्यवाद आंदोलन के गढ़ के रूप में भी मान्यता प्राप्त है. आप को बता दें एक समय कोलकाता की शान रहे हाथ रिक्शे अब उनकों पूछने वाला कोई नहीं है.पश्चिम बंगाल के चुनावी शोर में उनकी सुनवाई करने वाला कोई नहीं है कोई राजनितिक दल इनका ना हाल पूछने आ रही है न कोई खोज खबर लेने.

हाथ रिक्शा चलाने वाले ज्यादातर प्रवाशी मजदूर हैं जो रोजी-रोटी की तलाश में कोलकाता पहुंचे है इसमें ज्यादातर बिहार के लोग, किसी राजनितिक दल का इनमें इंटरेस्ट इसलिए नहीं है क्यों की वो यहां के वोटर नहीं है. मतलब अगर आप से किसी राजनितिक दल को फायदा नही है तो वो आप को पूछेंगा भी नहीं, राजनीती में इंसान से ज्यादा वोट की कद्र की जाती है इसको देख कर तो यही लगता है. आप को बता दें ये लोग भाड़े पर रिक्शा ले कर रिक्शा ढोते है और अब ये बोल रहें है रिक्शे का मालिक अब 200 रुपये पगड़ी मांगता है. कोरोना में धंधा है नहीं कहां से लाएं इतना पैसा.

दिन भर मेहनत के बाद डेढ़ सौ या दो सौ मिलता है. आदमी आदमी को खींचता है यह अमानवीय तो है लेकिन यह करेंगे क्या इनकी गलती ये है की ये गरीब पैदा हुए हैं अगर आप वोटर नहीं हैं तो कोई भी राजनितिक विचारधारा आपकी मदद नहीं करेगी क्यों करेगी आप से जब उनको फायदा नहीं है तो आप की मदद क्यों करेगी कभी कभी लगता है राजनीती का नाम ही स्वार्थ है पर क्या कीजियेगा साहब ज्यादातर लोग तो स्वार्थी ही होंगे इसलिए तो राजनीती का इतना बोलवाला है.      


 

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