पटना. इतिहास में बक्सर का युद्ध' का जिक्र वर्ष 1764 में हुई जंग को लेकर की जाती है. लेकिन 2024 में बक्सर की लड़ाई लोकसभा चुनाव को लेकर रोचक बनी हुई है. 1764 के बक्सर युद्ध में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेनाओं और बनारस राज्य के महाराजा बलवंत सिंह की संयुक्त सेनाओं के बीच लड़ाई हुई थी जिसमें मीर कासिम , बंगाल के नवाब ; शुजाउद्दौला , अवध के नवाब ; और मुगल साम्राज्य के सम्राट शाह आलम द्वितीय एक साथ थे. अब इस बार लोकसभा चुनाव में भी संसदीय चुनाव की लड़ाई कुछ वैसी ही है जिसमें भाजपा के मजबूत गढ़ पर जीत हासिल करने के लिए एक ओर महागठबंधन से राजद के सुधाकर सिंह हैं तो दूसरी ओर निर्दलीय प्रत्याशियों में पूर्व आईपीएस आनंद मिश्रा और ददन पहलवान भी भाजपा के मिथिलेश तिवारी को टक्कर दे रहे हैं.
बक्सर सीट पर वर्ष 1996 से भाजपा का कब्जा है. सिर्फ 2009 में ही राजद के जगदानंद सिंह ने जीत हासिल की थी. 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में वह हार गए थे। भाजपा की मजबूती का पता इसी से चलता है कि बीजेपी को 2009 में जहाँ 20.91 फीसदी वोट आया था वहीं 2014 में वोटों का प्रतिशत बढ़कर 35.92 प्रतिशत हो गया जबकि 2019 में 47.94 फीसदी वोट भाजपा को आया. यानी भाजपा का वोट प्रतिशत दस साल में करीब 27 फीसदी बढ़ा है. जगदानंद सिंह आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव के करीबियों में शामिल हैं. बिहार राजद के अध्यक्ष हैं. उनके ही बेटे सुधाकर वर्तमान में रामगढ़ सीट से विधायक हैं और बक्सर से राजद के उम्मीदवार हैं.
वहीं भाजपा के मिथिलेश तिवारी भी 2015 के विधानसभा चुनाव में बक्सर के ही बैकुंठपुर सीट से विधायक बने थे. इन दोनों के अलावा आईपीएस आनंद मिश्रा को जब भाजपा ने टिकट नहीं दिया तो वे निर्दलीय ही मैदान में उतर गये हैं. इसी तरह ददन पहलवान भी किस्मत आजमा रहे हैं. ददन पहलवान ने 2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा के टिकट पर यहां से 1.84 लाख वोट हासिल किया था. ददन सिंह यादव उर्फ ददन पहलवान डुमरांव विधानसभा सीट से चार बार विधायक भी रह चुके हैं. ऐसे में उनके चुनाव मैदान में उतरने से राजद के परम्परागत यादव वोट बैंक में सेंधमारी से इंकार नहीं किया जा सकता है. वहीं आनंद मिश्रा भले ही राजनीती में नए हों लेकिन वे बक्सर के स्थानीय हैं और यूथ आइकॉन के रूप में जाने जाते हैं. ब्राह्मण जाति से आते हैं. साथ ही भाजपा के तिवारी को बाहरी बताकर स्थानीय बनाम बाहरी की हवा को भी जोर दे रहे हैं. ऐसे में आनंद मिश्रा अगर बड़े स्तर पर ब्राह्मण वोटों में सेंधमारी करते हैं तो यह भाजपा को बड़ा नुकसान हो सकता है.
बक्सर भले ही भाजपा का मजबूत गढ़ रहा हो लेकिन वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव में बक्सर की सभी छह विधानसभा सीटों पर महा गठबंधन के प्रत्याशियों ने जीत हासिल की थी. बक्सर, ब्रह्मपुर, राजपुर, डुमरांव, रामगढ़ और दिनारा की 6 सीटों में से 3 सीटें आरजेडी, दो सीटें कांग्रेस और एक सीट सीपीआई(एमएल) के पास है. ऐसे में राजद को उम्मीद है कि इस बार सुधाकर सिंह फिर से 2009 वाला करिश्मा कर सकते हैं. राजद यहाँ अपने लिए कुछ जातीय समीकरणों को साधकर जीत की उम्मीद पाले है.
ब्राह्मïणों और राजपूतों की बहुलता वाले बक्सर में असली लड़ाई भी इन दो जातियों के बीच ही केन्द्रित रही है. वहीं भूमिहार वोटर भी जीत हार में अहम भूमिका निभाते हैं. ऐसे में सवर्णों के तीन प्रमुख धड़ों की यहाँ के चुनाव में खास अहमियत हो जाती है. बक्सर संसदीय क्षेत्र में ब्राह्मण 3.75 लाख हैं, तो यादव मतदाता लगभग 3.40 लाख हैं. वहीं राजपूत जाति के 2.90 लाख के करीब मतदाता है. भूमिहार मतदाता 2.20 लाख के करीब हैं. मुसलमान मतदाता की आबादी करीब 1.30 लाख है. कुर्मी, वैश्य, दलित, कुशवाहा का वोट भी जीत हार में अहम रोल अदा करता रहा है.