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राम मंदिर vs जननायक को भारत रत्न : बिहार में जाति की ‘सियासी दीवार’ भेद रही भाजपा, प्रभु श्रीराम के बाद जननायक पर जताया भरोसा

राम मंदिर vs जननायक को भारत रत्न : बिहार में जाति की ‘सियासी दीवार’ भेद रही भाजपा, प्रभु श्रीराम के बाद जननायक पर जताया भरोसा

पटना. देश की सियासत में यह मशहूर किस्सा है की दिल्ली की गद्दी का रास्ता बिहार से होकर जाता है। कई मायनों में इसे सही भी माना जाता है। पहली बात यह की बिहार की भूमि आन्दोलन की भूमि रही है। जहाँ से लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने सम्पूर्ण क्रांति की बदौलत कांग्रेस को देश की सत्ता से उतार दिया था। इस आन्दोलन के बाद दिल्ली में पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनी थी। दूसरी वजह यह है कि अविभाजित बिहार में लोकसभा की 54 सीटें थी। बिहार के बंटवारे के बाद अब यहाँ लोकसभा की 40 सीटें है। जो किसी भी पार्टी को केंद्र में सरकार बनाने में काफी मददगार साबित होती है. आगामी लोकसभा चुनाव की बात करें तो एक बार फिर बिहार राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों के दलों के लिए राजनीतिक रणक्षेत्र बन गया है। बिहार से ही विपक्षी दलों को एकजुट करने की मुहिम शुरू हुई। जिसकी अगुवाई बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राजद सुप्रीमो लालू यादव ने की। इस मुहिम को कई सफलताएं भी मिली। करीब 26 दल एक छत के नीचे आये। आज भले कुछ दल इससे अलग हो रहे हों. लेकिन अभी भी विपक्ष के इंडिया की ताकत कमतर नहीं आंकी जा रही है. बिहार को लेकर जो हालिया सर्वे आए हैं. उससे विशेषकर एनडीए और भाजपा की चिंता बढ़नी लाजमी है. इन सबके बीच अब कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की घोषणा भी एक बड़े राजनीतिक मकसद को साधने की रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है. 

एनडीए को लगेगा झटका : भाजपा नीत एनडीए ने वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में बिहार की 40 में 39 सीटों पर जीत हासिल की थी. उस समय एनडीए में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जदयू भी थी. अब सियासी हालत बदल चुके हैं. नीतीश मुख्य विपक्षी नेता के तौर पर भाजपा के सामने हैं. इन सबके बीच हालिया सर्वे रिपोर्टों में यह बात सामने आई कि एनडीए के मुकाबले इंडिया बिहार में जोरदार टक्कर देने को तैयार है. कसी भी सूरत में एनडीए (भाजपा, मांझी की पार्टी हम, चिराग और पशुपति की लोजपा, उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी) 39 सीट नहीं जीतेगी. यानी जिस बिहार के रास्ते दिल्ली की गद्दी मिलने की बातें कही जाती है, उस बिहार में एनडीए को कड़ी चुनौती मिलनी तय है. 

राम नहीं जाति की राजनीति : अयोध्या में राम मंदिर निर्माण और रामलला प्राण प्रतिष्ठा के बाद जो उत्साह देश भर में देखा गया वह भाजपा के लिए वोट बैंक में बदलेगा, इस पर भी संदेह है. बिहार के सामाजिक तानेबाने में जातियों की अहम भूमिका रहती है. जातियों का वोटों पर भी असर रहता है. यहां तक कि लालू यादव, नीतीश कुमार, चिराग पासवान, पशुपति पारस, जीतन राम मांझी, उपेंद्र कुशवाहा जैसे तमाम राजनेताओं का जातियों पर आधारित एक कोर वोट बैंक है. इस वोट बैंक में ज्यादा बड़े स्तर पर सेंधमारी भी नहीं होती है. यही भाजपा की सबसे बड़ी चिंता है. उस पर नीतीश सरकार ने जातीय गणना कराकर और आरक्षण का दायरा बढ़ाकर एक और चुनौती दे दी है. भाजपा भी वोटों के लिहाज से इस चुनौती को समझ रही है. 

कर्पूरी दिलाएंगे ईबीसी वोट : कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की घोषणा के पीछे भी एक बड़ा मकसद वोटों को साधना माना जा रहा है. जातीय गणना से साफ हुआ कि बिहार में सर्वाधिक आबादी अत्यंत पिछड़ा वर्ग यानी ईबीसी का है. बिहार की कुल आबादी का 36 फीसदी ईबीसी है. कर्पूरी ठाकुर इसी ईबीसी वर्ग आते हैं. बिहार में यादव और कुर्मी जैसी जातियां अन्य पिछड़ा वर्ग से आती हैं. पिछले तीन दशक से ज्यादा समय से इन्हीं ओबीसी जातियों का दबदबा रहा है जबकि सर्वाधिक वोटर ईबीसी से हैं. अब कर्पूरी ठाकुर के बहाने केंद्र की मोदी सरकार भाजपा के लिए इसी ईबीसी वर्ग पर नजरें गड़ाए है. भाजपा के साथ पहले से ही सवर्णों का मजबूत साथ है. वहीं दलितों में पासवान और मुसहर जाति के दो बड़े चेहरे चिराग और जीतन राम मांझी भी एनडीए के साथ हैं. अब ईबीसी में अगर भाजपा की पकड़ मजबूत होती है तो उसे बड़ा लाभ हो सकता है. 

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