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बड़ा खुलासा: IGIMS के इमरजेंसी लैब की आड़ में चल रहे फर्जीवाड़े का जिम्मेवार कौन, सरकारी खाते के बजाए थर्ड पार्टी की जेब में कौन भेज रहा है पैसा

बड़ा खुलासा: IGIMS के इमरजेंसी लैब की आड़ में चल रहे फर्जीवाड़े का जिम्मेवार कौन, सरकारी खाते के बजाए थर्ड पार्टी की जेब में कौन भेज रहा है पैसा

Patna: आईजीआईएमएस में इमरजेंसी लैब की आड़ में बड़ा फर्जीवाड़ा सामने आया है. संस्थान में करीब 6 करोड़ की लागत से अत्याधुनिक लैब स्थापित होने और तत्कालीन बॉयोकेमेस्ट्री विभागाध्यक्ष के द्वारा निदेशक को कई पत्र लिखने के बावजूद पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप में इमरजेंसी लैब का संचालन अब तक बंद नहीं किया गया है. कायदे से टेस्ट से होने वाली आय सरकार के खाते में जाना चाहिए जबकि वह राशि थर्ड पार्टी के जेब में पिछले 6 साल से जा रहा है. जानकारों की माने तो दरअसल 6 मई 2014 तत्कालीन मेडिकल सुपरीटेंडेट एस के शाही ने एमएस इंट्रीग्रेटेड मैनेजमेंट सविर्सेज के साथ इमरजेंसी लैब का एकरारनामा किया गया. जिसमे बल्ड टेस्ट से प्रतिमाह प्राप्त कुल राशि का 50 फीसद प्राइवेट पार्टी को देना था. एकरानामा दो साल के लिए किया गया था और उस समय से मई 2020 तक बगैर रिटेंडरिंग किए सभी नियम कानून को ताक पर रख कर उक्त कंपनी को ही अनवरत अवधि विस्तार दिया गया जबकि संस्थान में बॉयोकेमेस्ट्री पैथोलॉजी, माइक्रो बॉयोलॉजी आदि विभाग पूरी तरह काम कर रहा है.

इन्ही विभागों में डॉक्टरों के परामर्श के बाद मरीजों का सभी टेस्ट किया जाता है. संस्थान सूत्रों की माने तो ट्रिपल पी मोड पर इमरजेंसी लैब का संचालन करना वित्तीय अनियमतता का मामला है और इसके साथ कई विकासात्मक कार्यों की विजिलेंस जांच कराने के बाद करोंडों की अनियमितता उजागर होगी. प्राइवेट कंपनी के साथ के गए एकरारनामे के बाद से ही तत्कालीन बॉयोकेमेस्ट्री विभाग के अध्यक्ष डॉ उदय कुमार ने संस्थान के निदेशक डॉ एन आर विश्वास को कई पत्र लिखकर ट्रिपल पी मोड पर संचालित के जा रहे इमरजेंसी लैब पर सवाल उठाया है और तत्काल बंद करने का अनुरोध किया है. 


तत्कालीन बायोकेमेस्ट्री विभागाध्यक्ष ने निदेशक डॉ एनआर विश्वास को पत्र लिखकर संस्थान में विभाग की ओर से संचालित सुपरस्पेशलिटी लैब 365 दिन 24 घंटे काम करता है इसके लिए आवश्यक मशीन की डिमांड की थी लेकिन विभाग में टेस्ट के लिए एक भी मशीन उपलब्ध नहीं कराया गया और तो और इमरजेंसी प्राइवेट लैब को भी एक प्राइवेट पार्टी को बगैर प्रक्रिया के पालन कए दे दिया गया.

डॉ उदय ने निदेशक को लिखा कि विभाग में रह साल 7 से 8 लाख के करीब टेस्ट किए जा रहे हैं. जिसमे संस्थान को हर साल 5 से 6 लाख रूपए का राजस्व मिल रहा है. क्या उस राशि से मशीनों की खरीद नहीं हो सकती थी. हालांकि इस बावत जब निदेशक एनआर विश्वास के सरकारी नंबर पर मैसेज किया गया पर उन्होंने कुछ भी नहीं किया.  

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