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बिहार बीजेपी का पंचायतों पर फोकस,पंचायती राज व्यवस्था को सत्ता तंत्र की धुरी इसे मजबूत बनाएं कार्यकर्ता-जायसवाल

बिहार बीजेपी का पंचायतों पर फोकस,पंचायती राज व्यवस्था को सत्ता तंत्र की धुरी इसे मजबूत बनाएं कार्यकर्ता-जायसवाल

पटना: पंचायत सत्ता की बुनियाद हैं लिहाजा इसे मजबूत कर ही हम सत्ता में आ सकते हैं। पंचायती राज प्रकोष्ठ की बैठक को संबोधित करते हुए भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने पंचायती राज व्यवस्था को सत्ता तंत्र की धुरी बताते हुए कहा कि यह विकेंद्रीकरण की बुनियाद है और हमारे कार्यकर्ताओं को इसे मजबूत करने में जुट जाना चाहिए। 

उन्होंने कहा कि ‘एनडीए सरकार ने प्रशासन के विकेंद्रीकरण के लिए बिहार में पंचायती राज में अनुसूचित जाति, जनजाति व महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था की। बिहार में ग्राम-कचहरी की व्यवस्था की गयी है। आज बिहार ने महिला आरक्षण के जरिए न सिर्फ पंचायतों को बल्कि, महिलाओं को भी सशक्तीकृत किया है। जिस राज्य में पहले महिलाओं को कुछ बोलने की आज़ादी नहीं थी, वे आज पूरे पंचायत के फैसले ले रही हैं, निर्णय कर रही हैं, विकास की योजनाएं बना रही हैं।‘

डॉ जायसवाल ने पंचायती राज के पदाधिकारियों एवं कार्यकर्ताओं का आह्वान किया कि ‘वो 5-5 पंचायत का भ्रमण कर उनके प्रतिनिधि से मिलें (हारे व जीते) एवं उनको अपनी विचारधारा से जोड़ें, NDA सरकार द्वारा पंचायतों के विकास के लिए की जाने कार्यों एवं जन भागीदारी के लिए प्रेरित करें। पंचायतें यदि सुदृढ़ रहेंगी, तो गांव सुखी-समृद्ध बनेंगे और गांव-समाज सुखी रहेगा तो हमारा प्रदेश और देश भी प्रगति-पथ पर सदैव चलता रहेगा।‘

बिहार भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘मन की बात’ की भी चर्चा की और कहा कि उनको सुनना हमेशा आह्लादक रहा है। यह एक ओर जनता से जुड़ना सिखाता है तो दूसरी तरफ देश के पीएम के मन में क्या चल रहा है, किन मसलों को लेकर वह चिंतन कर रहे हैं, इसकी भी जानकारी देता है। आज मोदी जी ने हमारे पर्व और पर्यावरण पर भी चर्चा की। उन्होंने इन दोनों के बीच एक बहुत गहरा नाता रहने की बात की। 

डॉ जायसवाल ने कहा कि पीएम की इस बात से वह पूर्णतया सहमत है कि जहां एक ओर हमारे पर्वों में पर्यावरण और प्रकृति के साथ सहजीवन का सन्देश छिपा होता है तो दूसरी ओर कई सारे पर्व प्रकृति की रक्षा के लिये ही मनाए जाते हैं। आज, पीएम ने बिहार के पश्चिमी चंपारण का जिक्र करते हुए एक खूबसूरत परंपरा की जानकारी दी। उन्होंने कहा, ‘सदियों से थारु आदिवासी समाज के लोग 60 घंटे के lockdown या उनके ही शब्दों में कहें तो ’60 घंटे के बरना’ का पालन करते हैं। प्रकृति की रक्षा के लिये बरना को थारु समाज ने अपनी परंपरा का हिस्सा बना लिया है और सदियों से बनाया है। 

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