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बिहार कास्ट सर्वे: कास्ट सेंसस पर सुप्रीम कोर्ट में डेटा के फांस में फंसेगी नीतीश सरकार? ,बिहार सरकार जाति सर्वेक्षण डेटा ब्रेकअप को सार्वजनिक डोमेन में रखे- सर्वोच्च न्यायालय

बिहार कास्ट सर्वे: कास्ट सेंसस पर सुप्रीम कोर्ट में डेटा के फांस में फंसेगी नीतीश सरकार? ,बिहार सरकार जाति सर्वेक्षण डेटा ब्रेकअप को सार्वजनिक डोमेन में रखे- सर्वोच्च न्यायालय

DELHI- बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार ने जाति सर्वेक्षण कराया है। इसके आंकड़े और विवरण सार्वजनिक करने की अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा आदेश सुनाया है। अदालत ने कहा कि सरकार को जाति के आधार पर कराए गए सर्वे का विवरण सार्वजनिक करना होगा। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने 2 अगस्त 2023 के पटना उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 29 जनवरी को सुनवाई तय की, जिसमें जाति-आधारित सर्वेक्षण करने के बिहार सरकार के फैसले को बरकरार रखा गया था। सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार से कहा कि वो कास्ट सर्वे की पूरी रिपोर्ट सार्वजनिक करे, ताकि असंतुष्ट लोग इसके निष्कर्षों को चुनौती दे सकें। जज संजीव खन्ना और जज दीपांकर दत्ता की बेंच ने उन याचिकाकर्ताओं को कोई अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया, जिन्होंने जाति सर्वेक्षण और इस तरह की कवायद करने के बिहार सरकार के फैसले को बरकरार रखने वाले पटना हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती दी है। पीठ ने कहा कि अंतरिम राहत का कोई सवाल ही नहीं है, क्योंकि उनके (सरकार के) पक्ष में उच्च न्यायालय का आदेश है। अब, जब विवरण सार्वजनिक मंच पर डाल दिया गया है, तो दो-तीन पहलू बचे हैं। पहला कानूनी मुद्दा है- उच्च न्यायालय के फैसले का औचित्य और इस तरह की कवायद की वैधता के बारे में।न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने कहा कि मैं जिस चीज को लेकर अधिक चिंतित हूं, वो डेटा के अलग-अलग विवरण की उपलब्धता है। सरकार किस हद तक डेटा को रोक सकती है। आप देखिए, डेटा का पूरा डिटेल सार्वजनिक होना चाहिए, ताकि कोई भी इससे निकले निष्कर्ष को चुनौती दे सके। जब तक ये सार्वजनिक नहीं होगा, वे इसे चुनौती नहीं दे सकते। 

सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार से कहा कि, जाति सर्वेक्षण डेटा ब्रेकअप को सार्वजनिक डोमेन में रखा जाए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा वह बिहार जाति सर्वेक्षण में डेटा के टूटने को जनता के लिए उपलब्ध नहीं कराए जाने को लेकर चिंतित है, क्योंकि अगर कोई निकाले गए किसी विशेष निष्कर्ष को चुनौती देने को तैयार है तो उसे वह डेटा प्राप्त करने में सक्षम होना चाहिए। वहीं, याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि, सर्वे का डेटा प्रकाशित हो चुका है, उस आधार पर आरक्षण 50 से बढ़ाकर करीब 70% तक कर दिया गया है, इसको लेकर पटना हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि सर्वे के डेटा का वर्गीकरण करके ये डेटा आम जनता को उपलब्ध कराया जाना चाहिए। सर्वे के बजाए हमारी चिंता इस बात को लेकर ज़्यादा है।

सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि बिहार सरकार ने जातिगत सर्वे किया है, इसे जनगणना नहीं कहा जा सकता। इससे पहले केन्द्र सरकार कोर्ट में दाखिल जवाब में कह चुकी है कि जनगणना जैसी प्रकिया को अंजाम देने का अधिकार सिर्फ केन्द्र को ही है।

बिहार में मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने नीतीश कुमार सरकार पर जाति सर्वेक्षण कराने में अनियमितताओं का आरोप लगाया है और एकत्र किए गए आंकड़ों को ‘फर्जी’ बताया है। इसके बाद, पीठ ने बिहार सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान से जाति सर्वेक्षण पर एक रिपोर्ट दाखिल करने को कहा और मामले की अगली सुनवाई के लिए पांच फरवरी की तारीख निर्धारित कर दी। दरअसल संविधान के अनुसार जनगणना करवाने की जिम्मेदारी केंद्र सरकार की है. जनणना का विषय संविधान की सातवीं अनुसूची की लिस्ट-1 में आता है. इतना ही नहीं, 1948 का जनगणना एक्ट भी यही कहता है कि इससे जुड़े नियम बनाने, जनगणना कर्मचारी नियुक्त करने और जनगणना की जानकारी इकट्ठा करने का अधिकार केंद्र सरकार के पास है.

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