पटना... बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में इस बार विपक्ष ने रोजगार और बेरोजगारी का एजेंडा सेट किया, जिसे सत्ता पक्ष समेत अन्य दलों ने भी बारी-बारी से ही प्रमुख मुद्दा माना। इस बीच जनता ने भी प्रमुख मुद्दा बेरोजगारी को ही मान कर वोट डाले, लेकिन चुनाव में राजनीतिक दलों ने प्रत्याशियों के चयन में जातिवाद को हावी रखा। बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में इस बार एनडीए ने भाजपा, जेडीयू, वीआईपी और हम को मिलाकर जातीय गठजोड़ बनाने की कोशिश की तो महागठबंधन में राजद, कांग्रेस, वामदलों ने मिलकर पुराने वोटर बैंकरों पर ही भरोसा किया। वहीं दूसरी तरफ बसपा, अवौसी और कुशवाहा की पार्टी ने मिलकर चुनाव को रोचक बनाने का प्रयास किया।
दोनों गठबंधन समेत अन्य दलों ने सबसे अधिक यादव जाति को टिकट बंाटे थे, लेकिन विधानसभा में पिछली बार जहां 61 यादव पहुंचे तो इस बार इसकी संख्या में कमी आ गई और सिर्फ 55 यादव विधायक विधानसभा पहुंचे।
इस विधानसभा चुनाव में जाति का बंधन के साथ एजेंडे में मुद्दे ही प्रमुख रूप से शामिल रहे। वोट भी लोगों ने मुद्दों के आधार पर ही दिया। एनडीए जहां अपने 15 साल के कामों को गिना रहा था तो वहीं महागठबंधन ने बेरोजगारी को प्रमुख मुद्दा बनाया। हालाकि प्रत्याशियों के चयन में सीटों के आधार पर जहां जिस जाति की बहुलता थी, वहां उसके आधार पर टिकट दिए गए, लेकिन वोट का रूझान देखने से स्पष्ट हो रहा है कि जाति बंधन का फैक्टर काम नहीं आया।
उपेंद्र कुशवाहा विशुद्ध रूप से जाति आधारित राजनीति को केंद्र बिंदु बनाकर मैदान में उतरे थे और प्रत्याशी भी जाति के आधार पर उतारे थे। उन्होंने 104 में 48 कुशवाहा को टिकट दिया, लेकिन सीटों पर उम्मीद के हिसाब से कामायाबी नहीं मिली।
यही हाल कुछ जाप प्रमुख पप्पू यादव का भी रहा। हालाकि सीमांचल इलाके में जहां मुस्लिम बहुल सीटें हैं वहां औवेसी प्रभाव डालकर अपनी जाति के हिसाब से वोट पाने में कुछ हद तक कामयाब रहे, लेकिन यह भी आंशिक रहा। मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार के रूप में खुद को प्रचारित करने वाली पुष्पम प्रिया ने जाति की राजनीति से खुद को दूर बताया, लेकिन उनका हाल सबसे बुरा रहा।
किस जाति के कितने विधायक
जाति 2020 2015
यादव 55 61
कुर्मी 10 16
कुशवाहा 16 20
वैश्य 22 13
राजपूत 18 20
भूमिहार 17 17
ब्राहमण 12 10
कायस्थ 03 04
पिछड़ा 21 18
दलित 38 38
एसटी 02 02
मुस्लिम 14 24