PATNA : 28 साल बाद.. 1 महीने की तैयारी के बाद बिहार कांग्रेस एक बार फिर से उसी पुराने सवाल के दरवाजे पर खड़ी है जो शायद उसके लिए नियति बन चुकी है। सवाल यही कि क्या बिहार कांग्रेस में भितरघात का दौर कभी खत्म नहीं होगा? क्या पार्टी में आगे बढ़ते नेताओं की टांग खींचना बिहार में कांग्रेसियों का स्वभाव बन चुका है। जन आकांक्षा रैली की पूरी कहानी तो इसी तरफ इशारा करती है.
यह बात सबको मालूम है कि कांग्रेस ने बिहार की धरती पर जब अपने बूते रैली करने का फैसला लिया तो उसकी अगुआई बिहार में पार्टी के चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद अखिलेश सिंह ने की। जन आकांक्षा रैली को सफल बनाने के लिए अखिलेश सिंह ने ना तो बाहुबली निर्दलीय विधायक अनंत सिंह से सहयोग लेने में संकोच किया और ना ही लवली आनंद जैसी नेता को कांग्रेस का सदस्य बनाने में। बावजूद इसके उन्हें उम्मीद के मुताबिक नतीजे नहीं मिले।
जानकार बताते हैं कि जन आकांक्षा रैली को सफल बनाने के लिए अखिलेश सिंह ने जिस तरह कमर कस रखी थी उसे लेकर पार्टी के दूसरे नेता सकते में थे। बिहार कांग्रेस के अंदर ही कई नेताओं को यह डर सता रहा था की रैली सफल हुई तो अखिलेश सिंह की पकड़ पार्टी पर और मजबूत हो जाएगी। अब रैली खत्म होने के बाद कांग्रेस के गलियारे में दबी जुबान से यह चर्चा होने लगी है कि भितरघात ने ही कांग्रेस की आकांक्षा पूरी नहीं होने दी। पार्टी के विधायकों और दूसरे नेताओं ने प्रदेश मुख्यालय को जितनी भीड़ लाने का भरोसा दिया था वह उसपर खरे नहीं उतरे। चंद नेताओं को छोड़ दें तो जन आकांक्षा रैली में कांग्रेस के ज्यादातर नेताओं ने अपनी तरफ से पूरा एफर्ट नहीं लगाया। यह कहना गलत नहीं होगा कि ढाई दशक बाद अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए कांग्रेस ने जो कोशिश की दरअसल वह लेग पुलिंग की भेंट चढ़ गया।