PATNA : दो दिन पहले बिहार के वित्त मंत्री ने विधानसभा में अपने बजट पेश करने के दौरान यह जानकारी दी थी कि बिजली के क्षेत्र में बिहार सरप्लस की स्थिति में आ गया है। मतलब, अब हम दूसरों को बिजली बेच सकते हैं। लेकिन अब बिजली विभाग से यह खबर सामने आई है दो पावर कंपनियों से अब बिजली खरीदारी के लिए करार खत्म किया जा रहा है। इन दो पावर कंपनियों में फरक्का और कहलगांव शामिल हैं, जहां से बिहार लगभग 850 मेगावाट बिजली खरीदता है। लेकिन अब बिहार बिजली विभाग यह बिजली नहीं खरीदेगा।
25 साल पुराना करार, मियाद पूरी
एनटीपीसी की ईकाई कहलगांव और फरक्का से 25 साल का करार किया गया था। बताया जा रहा है कि अब यह मियाद पूरी हो गई है। जिसके बाद अब बिहार सरकार इस करार को आगे बढ़ाने के लिए इच्छुक नहीं हैं। दरअसल, बीते दिनों सरकार के शीर्ष स्तर पर हुई समीक्षा बैठक में बिजली कंपनी का नुकसान कम करने की रणनीति पर मंथन हुआ। तय हुआ कि जिन इकाईयों से बिजली महंगी मिल रही है, उससे करार खत्म किया जाए। खासकर जिन बिजली घरों से करार की अवधि समाप्त होने वाली है, उसका करार रिन्युअल न हो। जिसमें सबसे पहले एनटीपीसी के इन्ही दोनों ईकाईयों के नाम सामने आए हैं।
दोनों बिजली घरों से 856 मेगावाट की खरीदारी
कहलगांव स्टेज एक में कुल उत्पादन क्षमता 800 मेगावाट की है। इसमें से बिहार को 348 मेगावाट आवंटित है। फरक्का स्टेज एक व दो को मिलाकर बिजली घर की क्षमता 2100 मेगावाट की है। इसमें से बिहार को 508 मेगावाट आवंटित है। अब बिहार 856 मेगावाट बिजली को सरेंडर करने की तैयारी में है।
राष्ट्रीय दर से भी अधिक कीमत चुका रहा है बिहार
करार खत्म का एक कारण बिजली खरीदारी की अधिक कीमत है। बिहार जिस कीमत पर आज बिजली की खरीदारी कर रहा है वह राष्ट्रीय औसत से अधिक है। केंद्र सरकार की ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार बिजली खरीद का राष्ट्रीय औसत 3.60 रुपए प्रति यूनिट है। बिहार का औसत खरीद 4.12 रुपए प्रति यूनिट है। जबकि इसकी तुलना में सस्ते दर पर पड़ोसी राज्यों को बिजली मिल रही है। इनमें ओडिशा को 2.77 रुपए प्रति यूनिट, झारखंड को 3.99 रुपए प्रति यूनिट तो पश्चिम बंगाल को 3.15 रुपए प्रति यूनिट ही बिजली मिल रही है।
फिक्सड चार्ज बना सबसे बड़ा कारण
कहलगांव और फरक्काल से करार खत्म करने के फैसले का एक बड़ा कारण इन दोनों कंपनियों को दिया जाने वाला फिक्सड चार्ज है। फिक्सड चार्ज में यह नियम होता है कि बिजली खरीदें या नहीं, बिहार को उत्पादन कंपनियों को फिक्सड चार्ज देना पड़ता है। चूंकि बिहार में होने वाली बिजली खपत हर महीने अलग-अलग होती है। ऐसे में हर महीने बिजली खपत का आंकड़ा अलग-अलग होता है। लेकिन फिक्सड चार्ज होने के कारण बिहार को बिजली की कम खपत होने के कारण उन पैसों का भुगतान करना पड़ता है। इस परिस्थिति में बिजली कंपनी को फिक्सड चार्ज के तौर पर हर महीने करोड़ों रुपए देने पड़ रहे हैं। फिक्सड चार्ज का भार कंपनी पर अधिक बढ़ चुका है। हर साल यह राशि बढ़ती जा रही है।
2020-21 में दिए 6296 करोड़ फिक्सड चार्ज
आंकड़ों के अनुसार वित्तीय वर्ष 2016-17 में कंपनी ने फिक्सड चार्ज के तौर पर 2716 करोड़ दिए थे। वित्तीय वर्ष 2017-18 में यह बढ़कर 3149 करोड़, वित्तीय वर्ष 2018-19 में 4335 करोड़ तो 2019-20 में बढ़कर 4988 करोड़ हो गए। वहीं 2020-21 में यह बढ़कर 6296 करोड़ हो गया। इस तरह चार साल में ही फिक्स चार्ज में 131 फीसदी की वृद्धि हो गई।
अब सस्ती बिजली खरीदेगा बिहार
ऊर्जा विभाग के प्रधान सचिव संजीव हंस का कहना है कि कंपनी का मकसद लोगों को सस्ती बिजली मुहैया कराना है। कहलगांव व फरक्का से बिजली लेने का करार खत्म होगा। कोशिश है कि जरूरत के अनुसार लोगों को बिजली देने के लिए एनटीपीसी की अन्य इकाइयों से 600 मेगावाट बिजली ली जाए, जो सस्ती हो।