DESK : बिहार विधानसभा के पहले चरण का चुनाव समाप्त हो गया है. 10 नवम्बर को मतों की गिनती के बाद तय हो जायेगा की बिहार का मुख्यमंत्री कौन होगा. इसके पहले भी यहाँ कई मुख्यमंत्री हुए हैं. जिनमे श्रीकृष्ण सिंह से लेकर कर्पूरी ठाकुर तक का नाम लिया जाता है. लेकिन बिहार में एक ऐसे भी मुख्यमंत्री हुए जिन्हें एक बस कंडक्टर के लिए अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी थी. अब आपके मन में यह कौतुहल होगा की आखिर वे मुख्यमंत्री कौन थे.
दरअसल बात 1970 की है. जब बिहार में मुख्यमंत्री के पद पर दारोगा प्रसाद राय विराजमान थे. वे बिहार में मात्र मात्र दस महीने तक ही मुख्यमंत्री रहे. एक बस कंडक्टर का निलंबन उनके लिए जी का जंजाल बन गया. इस मामले को लेकर दारोगा प्रसाद राय को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी थी. 1970 में जब वह इंदिरा गांधी और हेमवती नंदन बहुगुणा के वीटो से मुख्यमंत्री बने तब बिहार राजपथ परिवहन के एक आदिवासी कंडक्टर के निलंबन की घटना हुई. इस कंडक्टर ने सरकार में शामिल झारखंड पार्टी के आदिवासी नेता बागुन सुम्ब्रई से कार्रवाई वापस लेने की गुहार की.
कंडक्टर की फ़रियाद लेकर बागुन सीएम दारोगा से मिले और कंडक्टर का निलंबन वापस लेने का निवेदन किया. इसके बाद भी मामला जस का तस रहने पर एक सप्ताह बाद बागुन दोबारा सीएम से मिले. इसके बाद भी दारोगा प्रसाद राय ने उनकी बातों को अनसुना कर दिया. उससे नाराज होकर बागुन ने सरकार से समर्थन वापसी की घोषणा कर दी.
झारखंड के 11 विधायक थे. दारोगा प्रसाद ने इसे हल्के में लिया क्योंकि उन्हें लगा कि उनके पास पर्याप्त संख्या में विधायक हैं. लेकिन दिसंबर के आखिरी सप्ताह में हुए फ्लोर टेस्ट में दारोगा फेल साबित हुए. लेफ्ट पार्टी ने भी झारखंड पार्टी की तरह समर्थन नहीं दिया. सरकार के समर्थन में 144 मत थे. जबकि विपक्ष में 164 मत पड़े.इस तरह दारोगा प्रसाद राय को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ गयी.