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बिहार के पहले मुख्यमंत्री श्री बाबू के अचानक CM बनने की बेहद रोचक कहानी,कैसे बन गए अबतक के प्रदेश के सबसे सफलतम मुख्यमंत्री

बिहार के पहले मुख्यमंत्री श्री बाबू के अचानक CM  बनने की बेहद रोचक कहानी,कैसे बन गए अबतक के प्रदेश के सबसे सफलतम मुख्यमंत्री

ऐसा नहीं कि बिहार में स्थापित चेहरे ही मुख्यमंत्री पद के लिए योग्य माने जाते रहे हैं.अचानक नए चेहरे को लाकर भी मुख्यमंत्री बनाया गया और वे राज्य के सबसे सफलतम मुख्यमंत्री बन गए. बिहार के पहले सीएम डॉ श्री कृष्ण सिंह इसके उदाहरण हैं. दरअसल 1935 ईस्वी में गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट पास हुआ था जिसमें प्रांतीय स्वायत्तता और केंद्र में संघीय सरकार बनाने की व्यवस्था थी. प्रांतीय स्वायत्तता के प्रारंभ होने के बाद जो पहले चुनाव हुए उनमें कांग्रेस ने भारी विजय प्राप्त की थी. कांग्रेस को पांच बड़े -बड़े प्रांतों में पूर्ण बहुमत प्राप्त हुआ और चार प्रांतों में कांग्रेस के प्रतिनिधियों की संख्या तो इतनी ज्यादा थी जितनी किसी और दल के प्रतिनिधियों की भी ना थी केवल पंजाब और सिंध में कांग्रेस को सफलता नहीं मिली थी.इसी दौरान बिहार में कांग्रेस की बड़ी जीत हुई तो यह असमंजस की स्थिति पैदा हो गई थी आखिरकार मुख्यमंत्री किसको बनाया जाए? 

इन दिनों इंडिया विंस फ्रीडम पढ़ रहा हूँ जिसमें मौलाना अबुल कलाम आजाद ने एक ऐसे ही दिलचस्प वाकये का जिक्र किया है.डॉक्टर सैयद महमूद बिहार प्रांत के उस समय शीर्ष नेता थे जब चुनाव हुए. वे अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव भी थे और इस प्रकार प्रांत के अंदर और बाहर दोनों ही स्थानों में उनका प्रमुख स्थान था.जब कांग्रेस को पूर्ण बहुमत प्राप्त हुआ तब यह मान लिया गया था कि डॉक्टर सैयद महमूद को नेता चुना जाएगा और वे प्रांतीय स्वायत्तता के अधीन बिहार के मुख्य मंत्री होंगे. इसके अलावा श्री कृष्ण सिन्हा और अनुग्रह नारायण सिन्हा जो उस समय केंद्रीय सभा के सदस्य थे, को बिहार में वापस बुला लिया गया और उनको मुख्य मंत्री बनाने की तैयारी की गई.डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने बिहार में श्री बाबू को मुख्यमंत्री बनाने में अहम भूमिका निभाई थी।जब श्री कृष्ण सिंह ने सरकार बनाई तो डॉक्टर सैयद महमूद को मंत्रिमंडल में स्थान दे दिया गया.

इसी प्रकार की घटना बंबई में भी घटी थी जहां बीजी खरे को सीएम बना दिया गया था. जबकि वहां श्री नरीमन स्थानीय कांग्रेस के मान्य नेता रहे.जब प्रांतीय सरकार के बनाने का प्रश्न उठा, उस समय सबको यह आशा थी कि श्री नरीमन को उनकी प्रतिष्ठा और पुरानी सेवाओं को ध्यान में रखकर उनसे कहा जाएगा कि वे सरकार का नेतृत्व करें। हालांकि इसके पीछे भी बड़ी राजनीति रही, जिसकी चर्चा फिर कभी .

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