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बिहार में उच्च शिक्षा का बंटाधार, सूबे के लाखों छात्र-छात्राओं के भविष्य को दांव पर लगाने का कौन है जिम्मेवार ?

बिहार में उच्च शिक्षा का बंटाधार, सूबे के लाखों छात्र-छात्राओं के भविष्य को दांव पर लगाने का कौन है जिम्मेवार ?

PATNA: बिहार में उच्च शिक्षा का हाल बेहाल है ।इसका सबसे बड़ा उदाहरण है बिहार सरकार द्वारा नियंत्रित विश्विद्यालयों का बेपटरी होना। उसका सीधा असर विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले छात्रों पर हो रहा है ।बता दें कि बिहार सरकार सीधे तौर पर 13 विश्वविद्यालयों को नियंत्रित करती है।जहां सत्र के विलंब होने से वहां पढ़ने वाले बच्चे अच्छे अवसरों से वंचित हो जा रहे हैं ।खुद विश्वविद्यालय प्रशासन अपना सत्र निर्धारित करती है और उस मुताबिक परीक्षाओं का आयोजन नहीं कर पाती,जिसका सीधा भुक्तभोगी वहां के छात्र होते हैं ।

गौरतलब है कि बिहार के तकरीबन 8 विश्वविद्यालयों में स्नातक-स्नातकोत्तर और व्यवसायिक कोर्सों की परीक्षा अभी तक आयोजित नहीं की गई है। मतलब साफ है की परीक्षा के आयोजन और उसके परिणाम आने में तयशुदा समय का ख्याल नहीं किया जाता। पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय पटना, भीमराव अंबेडकर बिहार विश्वविद्यालय मुजफ्फरपुर, भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय मधेपुरा, तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय, पूर्णिया विश्वविद्यालय पूर्णिया, मगध विश्वविद्यालय, जयप्रकाश विद्यालय छपरा और वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय आरा में सत्र काफी विलंबित है। इसे देखते हुए बिहार के राज्यपाल फागू चौहान ने भी सभी विश्वविद्यालयों को समय पर परिणाम घोषित करने और परीक्षाओं का आयोजन करने का टास्क सौंपा है ।

गौरतलब है कि विश्वविद्यालयों से संबंधित समीक्षा बैठक के दौरान जब परीक्षाफल में प्रकाशन में देरी को लेकर दैनिक सवाल पूछा गया तो विश्वविद्यालय प्रशासन की तरफ से कहा गया कि कई वर्षों से सत्र लंबित रहने के कारण अभी भी सत्र भी पटरी है।

 अब भला सोचिए यह जवाब कितना जवाबदेही से दिया गया।विश्वविद्यालय प्रशासन के गैरजिम्मेदाराना व्यवहार का असर  बिहार के छात्रों के भविष्य पर पड़ रहा है।

 लाखों छात्र-छात्राओं का भविष्य विश्वविद्यालयों में सत्र विलम्बित रहने से दांव पर लगा हुआ है। सही समय पर सत्र नहीं चलने की वजह से परीक्षाओं के आयोजन में देर होता है। परिणाम यह होता है कि परीक्षा फल समय से नहीं निकल पाता।इस वजह से लाखों छात्र विभिन्न प्रतियोगिता परीक्षाओं में बैठने से वंचित रह जाते हैं। सवाल यह उठता है कि लगातार प्रयास के बाद भी बिहार के ऊंच शिक्षा के बंटाधार का जिम्मेवार कौन है,विश्वविद्यालय प्रशासन या फिर बिहार सरकार।

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