SAHARSA : कोरोना ने उन डोर को भी तोड़ दिया है, जिसे रिश्ता कहा जाता है। एक व्यक्ति की कोरोना से मौत होती है। पति से नाराज होकर अपने बेटे के साथ मायके में रह रही पत्नी उसे देखने भी नहीं आती है। हद तो यह कि गांव वालों ने शव को श्मशान में जलाने भी नहीं दिया। घर में सिर्फ बुजुर्ग पिता और छोटी बहन मौजूद थी. जिसने अपने बड़े भाई के अंतिम संस्कार की रस्म अदाएगी की और घर के पीछे मुखाग्नि दी और लाश को दफन किया।
मामला सोनबर्षा राज प्रखंड के बसनही थाना अंतर्गत रघुनाथपुर पंचायत के पामा गोदरामा गांव का है। जहां मजदूरी कर गुजारा करनेवाले 25 वर्षीय पुत्र अमरीश कामत की मौत बीते शनिवार की रात कोरोना संक्रमण से हो गई थी। मृतक के अंतिम संस्कार में प्रशासन व ग्रामीणों की मदद की बात तो दूर समाज के लोगों ने श्मशान घाट में शव को जलाने से मना कर दिया। घर में शव 24 घंटे से अधिक समय तक पड़ा रहा लेकिन कोरोना प्रोटोकॉल में सरकारी व्यवस्था के नाम पर अंतिम संस्कार की जगह पीएचसी प्रशासन द्वारा मृतक के घर पहुंच कर परिजनों को सिर्फ एक अदद पीपीई किट उपलब्ध कराया गया। लेकिन गांव वालों से मदद नहीं मिलने के कारण सात साल की छोटी बहन ने घर के पिछवाड़े में ही मुखाग्नि की रस्म पूरी कर गड्ढा खोद शव को दफन कर दिया।
एंबुलेंस नहीं मिलने के कारण घर लेकर आ गए
गरीब मजदूर के इलाज के नाम पर भी सोनबर्षा पीएचसी की लापरवाही खुलकर सामने आयी। जब उसे गंभीर स्थिति में सोनबर्षा पीएचसी ले जाया गया तो उसे सहरसा रेफर कर दिया गया। लेकिन पीएचसी द्वारा एम्बुलेंस उपलब्ध नहीं कराया गया। कोई निजी वाहन चालक सहरसा ले जाने को तैयार नहीं हुआ फिर उसे वापस घर लौटा कर ले गए। जहां उसकी मौत हो गयी।
लॉकडाउन से पहले आया था घर
अमरीश कामत दूसरे प्रदेश में मजदूरी करता था। लॉकडाउन से ठीक पहले घर आया और कोरोना संक्रमित हो गया। घर में खाने के लिए अन्न भी नहीं था। कई दिनों से चूल्हा भी नहीं जला। वह तीन भाई और तीन बहनों में सबसे बड़ा था। जब उसकी मौत हुई तो दोनों छोटा भाई घर से बाहर था। ऐसे में छोटी बहन 7 वर्षीय राधा कुमारी द्वारा ही मुखाग्नि देकर दफनाया गया। वहीं कोरोना के डर से रिश्ते इतने बदल गए हैं कि संक्रमित पति की मौत की जानकारी मिलने के बाद भी चार साल के बेटे के साथ मायके में रह रही पत्नी उसे देखने तक नहीं आयी।