MUZAFFARPUR: बिहार की बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था के किस्से तो सरेआम हो चुके हैं। लोगों से यह बात कहीं भी छुपी नहीं है कि बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था का स्तर कितना गिर चुका है। बावजूद इसके स्वास्थ्य व्यवस्था को सुधारने की भी पहल नहीं की जा रही है। इन सबके बीच कोरोना किस तरह से अन्य मरीजों और के लिए घातक साबित हो रहा है, यह जानना जरूरी है। मुजफ्फरपुर में एक ऐसी घटना सामने आई है, जहां एक बच्ची जिंदगी और मौत के बीच जूझ रही थी और अस्पताल के स्वास्थ्य कर्मी उसे कोरोना जांच के लिए दौड़ाते रहते हैं और उसकी पीड़ा भी नहीं देखते। समय पर इलाज ना मिलने की वजह से बच्ची की मौत हो जाती है।
यह मामला है मुजफ्फरपुर के सदर अस्पताल का, जहां मंगलवार को एक पिता अपनी 8 साल की बच्ची को लेकर अस्पताल आया था। उन्होंने स्वास्थ्य कर्मी को बताया कि उनकी बेटी के गले में लीची का बीज अटक गया है। लीची का बीज फंस जाने से बच्ची की हालत काफी गंभीर थी। बावजूद इसके अस्पताल के स्वास्थ्य कर्मियों ने उन्हें कोरोना जांच करवाने के नाम पर यहां वहां दौड़ाया। इस दौरान पिता ने काफी मिन्नतें की और स्वास्थ्य कर्मियों के पैर पकड़ कर उनसे पहले बच्ची को देख लेने की जिद की, क्योंकि बच्ची की हालत काफी खराब होती जा रही थी। सारी हालात अपनी आंखों के सामने देखते हुए भी स्वास्थ्य कर्मी अपनी ही रट लगाए बैठे रहे और मजबूरन बच्ची के पिता को यहां-वहां कोरोना टेस्ट के लिए दौड़ना पड़ा। इसी दौरान ढंग से सांस नहीं पाने की वजह से बच्ची की मौत हो गई।
बड़ा सवाल यह उठता है कि बच्चे की इस मौत की जिम्मेदारी कौन लेगा? क्या इस बच्ची की मौत कोरोना से हुई है? या कोरोना के कारण लाचार सिस्टम की वजह से हुई है? अगर स्वास्थ्य कर्मी चाहते तो बच्ची का इलाज वक्त पर कर उसी की जान बचा सकते थे। कोरोना कहें या लापरवाही, उन्होंने पिता के चेहरे की पीड़ा को भी नहीं देखा और ना ही तड़पते बच्चे को, बस अपनी धुन में लगे रहे और इसका फल उस मासूम को भुगतना पड़ा।