गया जी- धार्मिक मान्यता है कि गया जी में पितरों के निमित्त पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध करने से पितरों की आत्मा तृप्त हो जाती है. हिन्दू शास्त्रों के अनुसार पितर पक्ष में यमराज भी पितरों की आत्मा को बंधन मुक्त कर देते हैं ताकि वे पृथ्वी पर अपने वंशजों के बीच रहकर अन्न और जल ग्रहण कर सकें. पितृ पक्ष के दौरान कई स्थानों पर तर्पण और पिंडदान करने की परंपरा है. लेकिन गया जी में पिंडदान और तर्पण का अपना विशेष महत्व है. मान्यता है कि गया में पितरों के निमित्त पिंडदान, तर्पण या श्राद्ध कर्म करने से 7 पीढ़ी और 108 कुल का उद्धार होता है. साथ ही उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है.
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गयाजी प्रत्येक वर्ष पितृपक्ष मेले का आयोजन प्राचीन काल से होता आ रहा है. यहां आने वाले श्रद्धालु अपने पितरों के मुक्ति के लिए शहर के अलग-अलग जगहों पर स्थित 54 पिंडवेदियों पर पिंडदान, श्राद्ध कर्म व तर्पण का कर्मकांड अपने पुरोहित के निर्देशन में संपन्न करते हैं.
गरुड़ पुराण में गया जी में किए जाने वाले पिंडदान के महत्व के बारे में बताया गया है. मान्यता है कि गया में भगवान श्रीराम और माता सीता ने पिता राजा दशरथ के निमित्त पिंडदान किया था. गरुड़ पुराण के मुताबिक अगर मरणोपरांत पितरों के निमित्त गया जी में पिंडदान किया जाता है उनकी आत्मा को स्वर्ग की प्राप्ति होती है. पौराणिक मान्यता है कि भगवान श्रीहरि यहां पर पितृ देवता के रूप में विराजमान रहते हैं. इसलिए इसे पितृ तीर्थ के रूप में भी जाना जाता है. गया जी की इसी महत्व के कारण पितृ पक्ष में हर साल लाखों लोग अपने पूर्वजों के निमित्त पिंडदान करते हैं.