AURANGABAD: मनुष्यों ने पहले ही जंगलों का अस्तित्व खत्म कर दिया है। प्रकृति द्वारा दी गई हर चीज का लोगों ने केवल अपने फायदे के लिए किया है। धीरे-धीरे प्रकृति कंक्रीट के जंगल बनती जा रही है। नदियों, जलाशयों को प्रदूषित कर बर्बाद किया जा रहा है। गंगा नदी भी अपने उद्गम स्थल पर जितनी साफ, स्वच्छ और पवित्र है, मैदानी इलाकों में उतनी ही गंदी और प्रदूषित है।
हम बात करेंगे बिहार के औरंगाबाद जिले की, जहां से गुजरने वाली अदरी नदी खुद को दयनीय हालत के लिए कोस रही है। औरंगाबाद शहर के बीचोबीच स्थित अदरी नदी का अस्तित्व खतरे में है, क्योंकि इसके दोनों किनारों पर शहर से प्रतिदिन लगभग 8 टन कचरा डंप किए जा रहा है। कचरे के डंप होने से घाट किनारे के इलाके दूषित और रास्ते बर्बाद हो चुके हैं। नदी किनारे श्मशान घाट में बने मोक्ष धाम तक के रास्ते भी कचरे के ढेर से पट गया है। हालात यह है कि वहां तक शव को ले जाना मुश्किल हो रहा है। कचरे की डंपिंग से जहां नदी का अस्तित्व समाप्त हो रहा है, वहीं इससे निकलने वाली दुर्गंध से पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है। नदी के किनारों को कचरो से मुक्त कराने को लेकर पूर्व विधायक व पूर्व सहकारिता मंत्री के साथ साथ सामाजिक संगठनों के लोगों ने भी आवाज उठाया है। बावजूद इसके अभी तक ढाक के तीन पात वाली कहावत चरितार्थ हो रही है।
हालांकि कचरे की डंपिंग के लिए जिला प्रशासन द्वारा मदनपुर के शिवगंज में जमीन आवंटित कराई गई है, लेकिन वह भी विवादों के घेरे में आ गई है। अब देखना यह है कि प्रशासनिक पहल और नगर परिषद की कवायद कब तक सफल होती है। कबतक अदरी नदी के किनारे डंपिंग जोन से कब तक मुक्त होते हैं।