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बिहार में चुनावी चर्चा परवान पर, विप की शिक्षक सीट को लेकर शिक्षकों को लुभाने की रणनीति नहीं हो रही कामयाब

बिहार में चुनावी चर्चा परवान पर, विप की शिक्षक सीट को लेकर शिक्षकों को लुभाने की रणनीति नहीं हो रही कामयाब

PATNA: बिहार में विधान सभा के साथ-साथ विधान परिषद चुनाव का पारा धीरे-धीरे चढ़ने लगा है। विप की शिक्षक व स्नातक निर्वाचन क्षेत्र के चुनाव की सरगर्मी बढ़ गई है। अभी सिर्फ हर चौक-चौराहों से लेकर खेत-खलिहान, दुकानों से लेकर कार्यालयों, बसों से लेकर प्लेन तक में सिर्फ चुनावी चर्चा है। अभई सारे लोग चुनावी गणित बिठाते नजर आ रहे हैं. बिहार के साथ साथ राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली तक में बिहार की  चुनावी चर्चा है।

इन्हीं वर्गों में एक बड़ा वर्ग है जो आम चुनाव के संचालन से लेकर जीत-हार में अपनी महत्वपूर्ण भागीदारी निभाता है। वह है सूबे के प्राथमिक से लेकर विश्वविद्यालय स्तर के शिक्षक। इस बार विधान सभा के साथ साथ विधान परिषद के स्नातक और शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र चुनाव भी इसी अवधि में होने से मामला दिलचस्प हो गया है। आम मतदाता तो सिर्फ विधान सभा के चुनाव में ही भाग लेगी। वहीं स्नातक मतदाता विधान सभा और विधान परिषद् के स्नातक निर्वाचन के चुनाव में मगर शिक्षक तो विधान सभा के साथ-साथ विधान परिषद् के शिक्षक और स्नातक निर्वाचन में भी भाग लेंगे यानी उन्हें तीन-तीन मत देने का अधिकार और मौका मिलेगा।

 विधान सभा और विधान परिषद चुनाव दलीय होने से मामला और दिलचस्प हो गया है। क्योंकि शिक्षकों और स्नातक मतदाताओं की पसंद अलग अलग चुनाव में अलग अलग है। जिसके पीछे शिक्षक व स्नातक मतदाताओं का अपना तर्क है कि तीनों स्तर के चुनाव में मुद्दे और प्राथमिकताएं अलग अलग हैं पर शिक्षकों को तो अपने मुद्दे भी दिखते हैं। राजनीतिक दलों के लिए भले ही शिक्षा महत्वपूर्ण मुद्दा न रहता हो पर बिहार के शिक्षा का इतिहास काफी गौरवशाली रहा है। बिहार की पहचान मेधा और परिश्रम से होती है। यहां के मेधावी लोगों ने देश व विदेशों में कई इतिहास रचे हैं। 

बिहार के नेताजी गुरूजी को लेकर कितने संवेदनशील हैं यह तो उनके चुनावी घोषणा पत्र जारी होने के बाद पता चलेगा। यह बात अलग है कि अभी तक किसी दल ने घोषणा पत्र जारी नहीं किया है। मगर इस बार के चुनाव में शिक्षकों के मत का अहम रोल होगा। शिक्षा में स्कूल से लेकर विश्वविद्यालय के विभिन्न मुद्दों का भी सभी चुनावों में असर दिखेगा। राज्य के  लगभग चार लाख शिक्षकों के हाल ही के आंदोलन व सरकार द्वारा उनके लिए जारी सेवा शर्त नियमावली, ईपीएफ का लाभ आदि को लेकर शिक्षकों में काफी आक्रोश है और इस बार सत्ताधारी पार्टी के साथ साथ स्नातक और शिक्षक एमएलसी प्रतिनिधियों को सबक सिखाने की ठान रखीं है।  राजनीतिक दलों के बीच इसको लेकर चर्चा और राजनीति का बाजार भी गर्म  है। नेताओं के अपने अपने वादे और आश्वासन भी शिक्षकों को लुभाने में कामयाब नहीं हो रहे हैं। अब देखना होगा कि शिक्षकों का रुख और मिजाज क्या गूल खिलाता है।

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