Bihar News: बिहार में अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव के पहले एनडीए के सभी घटक दलों में राज्य में एक दूसरे से आगे जाने की होड़ वाली स्थिति देखी जा रही है. जदयू, लोजपा (रा), हम, रालोमो जैसे दलों की लोकसभा चुनाव के बाद राज्य में बढ़ी सियासी सक्रियता को देखें तो यह भाजपा के लिए सहयोगियों से बढ़ती परेशानी के रूप में है. इतना ही नहीं भाजपा के सहयोगी दलों के नेताओं ने पिछले कुछ समय में कई मुद्दों पर अपनी आंखें तरेरी है. जैसे जनता दल (यूनाइटेड) के केसी त्यागी ने 1 सितंबर को पार्टी के मुख्य प्रवक्ता को अचानक से छोड़ दिया. माना गया इसका कारण उनके कुछ ऐसे बयान रहे जो भाजपा की सोच से भिन्न थे. इससे जदयू और भाजपा में मतभेद वाली स्थिति दिखी और अंत में त्यागी ने इस्तीफा दे दिया. वहीं लेटरल एंट्री और समान नागरिक संहिता, एससी-एसटी के आरक्षण जैसे मुद्दों पर एलजेपी (रामविलास) प्रमुख और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान भी विरोध जता चुके हैं. जीतन राम मांझी भी नीतीश कुमार की शराबबंदी के खिलाफ लगातार बयान दिए जा रहे हैं. वहीं पशुपति कुमार पारस की भाजपा से बढती नजदीकियां भी अलग सियासी चर्चाओं के केंद्र में है.
हनुमान की आपत्ति : देखा जाए तो खुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का “हनुमान” होने का गर्व से दावा करने वाले चिराग पासवान ने पिछले दो महीनों में मोदी सरकार के कई फैसलों के खिलाफ खुले तौर पर अपनी राय व्यक्त की थी. अगस्त में जब 45 संयुक्त सचिवों, निदेशकों और उप सचिवों की भर्ती के लिए लेटरल एंट्री की अधिसूचना आई, तो पासवान ने कहा कि यह “पूरी तरह से गलत” है और उनकी पार्टी “इसके बिल्कुल पक्ष में नहीं है”. पासवान, जिनकी पार्टी निजी क्षेत्र में भी कोटा की वकालत करती रही है, चाहते हैं कि सरकार जब भी नौकरियों के लिए अधिसूचना जारी करे, तो आरक्षण का पालन करे. इतना ही नहीं चिराग पासवान ने जाति जनगणना की भी वकालत की है जिसकी मांग कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल आक्रामक तरीके से कर रहे हैं. मानसून सत्र में सरकार द्वारा लाए गए वक्फ संशोधन विधेयक के खिलाफ भी उनका विरोध उतना ही मुखर था. इस सब के बीच, पासवान के चाचा पशुपति कुमार पारस, जो 2024 के चुनाव से पहले भाजपा द्वारा पासवान के पक्ष में उन्हें छोड़ने के बाद से राजनीतिक वनवास में थे, अचानक अमित शाह से मिले. संकेत मिल रहे हैं कि पारस को अब कोई अहम पद मिल सकता है.
मांझी ने जताया विरोध : इसी तरह जीतन राम मांझी ने हालिया दिनों में शराबबंदी को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के फैसले पर खुलेआम आपत्ति दर्ज की है. इससे जदयू और हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा के बीच तनातनी देखी गई है. साथ ही अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनावों में बड़े स्तर पर हम से उम्मीदवार उतारने को लेकर भी जीतन राम मांझी के बयान अभी से आने लगे हैं. यह जदयू और हम के बीच की दूरियों को दिखाने के लिए काफी है.
नीतीश ही सीएम : भाजपा अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर जहां सक्रियता से जुट गई हैं वहीं जदयू ने ऐलान कर दिया है कि नीतीश कुमार भी वर्ष 2025 से 2030 तक राज्य के मुख्यमंत्री होंगे. इसे लेकर पटना की सड़कों पर बैनर लगाए गए हैं. जदयू नेताओं की ओर से लगाए गए पोस्टर में लिखा गया है - '2025 से 30 , फिर से नीतीश'. माना जा रहा है कि इस पोस्टर पॉलिटिक्स का मकसद भाजपा सहित एनडीए के अन्य सहयोगी दलों पर जदयू का अभी से दबाव बनाना है कि राज्य में सीएम की कुर्सी खाली नहीं है. सबसे खास बात है कि इस पोस्टर में एनडीए के किसी अन्य दल के नेता को भी जगह नहीं दी गई है. यानी संदेश साफ़ है कि नीतीश के लिए हर प्रकार की सियासी रणनीति बनाई जाएगी जिससे वे '2025 से 30 , फिर से नीतीश' को साकार करें.
कुशवाहा की यात्रा : वहीं राज्यसभा सांसद और राष्ट्रीय लोक मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा भी अब बिहार की यात्रा पर निकल रहे हैं. 25 सितंबर से यात्रा पर निकल रहे उपेन्द्र कुशवाहा इसकी शुरुआत कुर्था अरवल जिले से करेंगे. 'बिहार यात्रा' से शुरू हो रही उपेन्द्र कुशवाहा की यात्रा का मकसद भी अगले विधानसभा चुनाव में अपने दल को मजबूत करना है.
भाजपा की टेंशन : एनडीए के इन तमाम दलों की सियासी बयानबाजी, यात्राओं तथा पोस्टर पॉलिटिक्स से सबसे ज्यादा टेंशन भाजपा की बढ़ेगी. भाजपा राज्य में खुद को एनडीए में बड़े भाई की भूमिका में रखना चाहती है. लेकिन अन्य सहयोगी दलों की हालिया गतिविधियों से जरुर अब भाजपा को यह सोचना पड़ेगा कि एनडीए में किस दल को कितना वजन दिया जाए.